दिसंबर के महीने में, पाकिस्तान, चीन और रूस अफगानिस्तान पर त्रिपक्षीय परामर्श के तीसरे दौर के लिए मॉस्को में मिले। मीटिंग के बाद तीनों देशों के प्रतिनिधियों की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति ने अफगानिस्तान के बिगड़ते सुरक्षा माहौल पर सहमति जताई और इसके लिए चरमपंथी समूहों को जिम्मेवार ठहराया। विशेष रूप से इस्लामिक स्टेट (दाएश) की अफगान शाखा का उल्लेख किया गया। रूस और चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की प्रतिबंधित व्यक्तियों की सूची में से कुछ लोगों को हटाने के लिए लचीली दृष्टिकोण की ज़रूरत को दोहराया, ताकि काबुल और तालिबान आंदोलन के बीच शांतिपूर्ण वार्ता को बढ़ावा दिया जा सके। इस विचार को तालिबान ने प्रशंसात्मक ढंग से स्वीकार किया। इसके अलावा, हाल ही में अफगानिस्तान पर छह पार्टी वार्ता के लिए रूस, अफगानिस्तान, भारत, चीन, ईरान और पाकिस्तान मॉस्को में इकट्ठा हुए। निरंतर अस्थिरता को देखते हुए, यह घटनाक्रम अफगानिस्तान में मॉस्को की नयी रुचि का संकेत देते हैं। अफगान राज्य और गैर-राज्य एक्टर के साथ-साथ क्षेत्रीय खिलाड़ियों के साथ भी बात चीत के लिए मॉस्को कई मोर्चों पर काम कर रहा है। यह स्पष्ट रूप से इस बात का सबूत है कि रुस अफगानिस्तान में अपने क़दम बढ़ा रहा है।
तालिबान को शक्तिशाली राजनीतिक सशस्त्र बल के रूप में देखते हुए, हाल ही में रूस ने उससे बात चीत की आवश्यकता को स्वीकार कर लिया है। हालांकि ये माना जाता है कि 9/11 के पश्चात, दोनों के बीच संबंधों की शुरुआत 2007-2008 में हुई, लेकिन उनके बीच हालिया बैठकों की संख्या में बढ़ोतरी नई गतिशीलता का संकेत हो सकता है। मॉस्को का तर्क है कि यह बात-चीत रूसी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और अफगान शांति प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए है, पर खबरों के अनुसार तालिबान के अधिकारियों ने यह दावा किया है कि रूसी समर्थन से उन्हें नैतिक और राजनीतिक बल मिला है। पहला नैरेटिव अधिक उपयोगितावादी दृष्टिकोण को दर्शाता है लेकिन दूसरे नैरेटिव से लगता है कि यह संगति तालिबान के लिए नैतिक और राजनीतिक समर्थन है। अफगानिस्तान में रूस के राष्ट्रपति के विशेष दूत ज़मीर काबुलोव ने बयान दिया है कि दाएश से लड़ने में रूस और तालिबान का सामूहिक हित है, और इस बात को काबुल में रूस के राजदूत अलेक्जेंडर मैन्ट्सस्की द्वारा भी दोहराया गया है।
अफगानिस्तान में इस बयान का प्रभाव गलत पड़ा है। वोलिसि जिरगा ने पारित एक प्रस्ताव में राष्ट्रीय एकता सरकार से आग्रह किया है कि वे दाएश के खिलाफ तालिबान के समर्थन के बहाने देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से अन्य देशों को रोके।
काबुलोव ने दिसंबर में ‘हार्ट ऑफ एशिया’ मंत्रिस्तरीय बैठक में यह भी कहा कि उपमहाद्वीप से दाएश को समाप्त करने में पाकिस्तान का सहयोग अभिन्न है। इससे पाकिस्तान के साथ रुस के हालिया समझौते या दोस्ती को समझा जा सकता है, जिसमें सितंबर 2016 में पहला संयुक्त सैन्य अभ्यास, दिसंबर 2016 में क्षेत्रीय मुद्दों पर पहली बार द्विपक्षीय परामर्श और 2017 में चार एमआई -35 हेलीकाप्टरों का अभिप्रेत वितरण शामिल है। पर भारत इस क्षेत्र में आतंकवाद को समर्थन देने में पाकिस्तान की भूमिका पर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करना चाहता है। नतीजतन, इस्लामाबाद और मॉस्को के बीच उभरती हुई गतिशीलता और साथ में तालिबान के साथ रूस की बात-चीत, जिसको भारत एक बड़ा खतरा मानता है, नई दिल्ली द्वारा सकारात्मक रूप से नहीं देखे गए हैं।
समाचार रिपोर्टों के अनुसार, रूसी उप विदेश मंत्री ओलेग साइरोमोलोटोव ने जाहिरा तौर पर यह दावा किया है कि अफगानिस्तान की तुलना में दाएश को मध्य एशिया में ज्यादा रुचि है। यदि यह सच है, तो मध्य एशिया के साथ रूस की भौगोलिक निकटता और दाएश की गतिविधियों के फैलाव की संभावना को देखते हुए यह रुस के लिए अच्छा शगुन नही होगा। इस प्रकार, रूस अफगानिस्तान-मध्य एशियाई सीमा पर दाएश की बढ़ती गतिविधियों को खतरा मानता है और इस दावे के साथ उसने यह चिंता भी व्यक्त की है कि 700 से ज्यादा दाएश आतंकवादी परिवार सीरिया से अफगानिस्तान पहुंच गए हैं।
अफगान सरकार और हिज्ब-ए-इस्लामी अफगानिस्तान (HIA) के गुलबूद्दीन हिक्मतेयार के बीच एक समझौते के मुताबिक, अफगान सरकार ने औपचारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंध सूची से हिक्मतेयार को हटाने का अनुरोध किया है। रूस ने अनुरोध को ख़ारिज नही किया लेकिन कथित तौर पर कहा कि अनुरोध पर विचार-विमर्श के लिए 10-दिवसीय प्रतिक्रिया अवधि से अधिक समय की आवश्यकता है। रूस की कार्रवाई संभवतः उसकी इस धारणा का परिणाम हो सकती है कि HIA समझौता संयुक्त राज्य अमेरिका के हित में है। अमेरिकी और अफगान अधिकारी तब से हिजब-ए-इस्लामी समझौते के लिए जोर डालते रहे हैं जब उन्हें लगा कि अफगानिस्तान में अधिक शक्तिशाली अभिनेताओं के साथ शांति समझौते के लिए यह एक नमूना हो सकता है। परन्तु आखिरकार हिक्मतेयार को अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध सूची से हटाने की रुस की मंजूरी महत्वपूर्ण है क्योंकि वह यह दर्शाती है कि रूस ने अन्य बातों पर ध्यान देने के बजाए दाएश से निपटने पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया है।
रूस का दावा है कि उसके प्रयासों का उद्देश अफ़ग़ान विवाद से रुस पर पड़ने वाले प्रभाव को सीमित करना है। लेकिन कुछ लोगों के अनुसार अफगानिस्तान में रूसी उपस्थिति अमेरिकी प्रभाव को संतुलित करने के लिए है। कुछ अन्य लोगों का तर्क यह भी है कि यह अंतरराष्ट्रीय पहुँच में वृद्धि के लिए रूस के प्रयासों का एक हिस्सा है। कुछ लोगों का यह भी अनुमान है कि ट्रम्प के राज्य में अमेरिका और रूस के बीच संबंधों में सुधार अफगानिस्तान के लिए अच्छे साबित हो सकता हैं। अमेरिका और रूस के बीच संबंध सुधारते हैं या नहीं, अफगानिस्तान में रूस की उपस्थिति दिखाती है कि पुटिन अब उन मामलों पर चुप नही बैठेगा जो मॉस्को के लिए महत्वपूर्ण हैं।
हाल ही में अफगानिस्तान की यात्रा के दौरान, अमेरिका के राजनीतिक मामलों के अवर सचिव थॉमस शैनन ने दावा किया कि अफगानिस्तान के प्रति अमेरिकी प्रतिबद्धता डोनाल्ड ट्रम्प के कार्य काल में और मजबूत होगी। यह सवाल बहुत सारे लोग पूछ रहे हैं कि क्या अफगानिस्तान में फिर ग्रेट गेम होने जा रहा है? ग्रेट गेम हो या न हो, लेकिन लगता है कि रूस अपनी उपस्थिति को महसूस कराने का इरादा रखता है और इसका मतलब अफ़ग़ानिस्तान में भाग लेने वाले क्षेत्रीय और अतिरिक्त-क्षेत्रीय खिलाड़ियों द्वारा रणनीति और नीतियों का पुन: अंशांकन हो सकता है।
Editor’s note: To read this article in English, click here.
***
Image 1: The Kremlin
Image 2: Getty Images, Andalou Agency