मोदी

भारतीय और चीनी अधिकारियों के बीच उच्च स्तरीय बैठकों को देखते हुए, २०१७ की गर्मियों में हिमालयी सीमावर्ती क्षेत्र में जो कुछ भी हुआ वह एक बार फिर जांच के अधीन आ गया है। इस सप्ताह, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के मंत्रिस्तरीय बैठकों में भाग लेने के लिए भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन चीन में थीं, जबकि प्रधान मंत्री मोदी भी एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए जून में चीन जाएँगे। स्वराज चीन के विदेश मंत्री और राज्य परिषद वांग यी से भी मिलीं, जो क्षेत्रीय विवादों पर भारत के साथ बातचीत की देखरेख करते हैं।

इन उच्च स्तरीय बैठकों को देखते हुए, प्रश्न यह है कि भारत-चीन-भूटान त्रिपक्षीय क्षेत्र में स्थित डोकलाम  पठार पर पिछली गर्मियों के ७३ दिनों का सैन्य गतिरोध किस हद तक दोनों पक्षों के बीच चर्चा का विषय रहेगा? हाल ही में एक इंटरव्यू में, बीजिंग में नई दिल्ली के राजदूत गौतम बंबावले ने इस गतिरोध के लिए चीन को दोषी ठहराते हुए कहा कि चीन ने क्षेत्र में यथास्थिति बदल दी है। बंबावले की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए, चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा कि डोंगलांग ( डोकलाम) चीन का है, क्योंकि उनके पास ऐतिहासिक करार हैं… इसलिए चीन की गतिविधियाँ उनके संप्रभु अधिकारों के अंतर्गत हैं और वहां यथास्थिति बदलने जैसी कोई चीज नहीं है।

ये कड़े बयान आधी शताब्दी से भी अधिक समय से चले आ रहे क्षेत्रीय विवाद का द्विपक्षीय संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव दर्शाते हैं। २०१७ में जो मुद्दे सामने आए थे–अर्थात भारत की ओर से दलाई लामा की मेजबानी, नदी का पानी बाँटने पर विवाद, और चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट और रोड पहल (बीआरआई)–उन्होंने पहले ही जटिल सीमा के मुद्दे को और जटिल बना दिया है। परन्तु, डोकलाम ने उन नकारात्मक परिणामों को सामने लाया है जो चीन और भारत के राष्ट्रीय हितों के टकराने से उभरते हैं। लेकिन दोनों नई दिल्ली और बीजिंग के पास डोकलाम विवाद से आगे बढ़ने के कारण हैं, ताकि राजनीतिक और आर्थिक मोर्चों पर परस्पर लाभकारी परिणामों के लिए संबंधों को संतुलित किया जा सके।

चीन-भारतीय संबंधों में एक कठिन वर्ष

 यदि डोकलाम द्विपक्षीय संबंधों को परिभाषित करता रहा तो दोनों देशों के पास खोने के लिए बहुत कुछ है।

डोकालम संकट को २०१७ के पूर्ण संदर्भ में देखा जाना चाहिए; एन वर्ष जिसमें  चीन-भारत संबंधों में कई उतार चढ़ाव आए। रिश्ते में तनाव तब बढ़ा जब दलाई लामा ने अरुणाचल प्रदेश के विवादित राज्य की यात्रा की, हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा दुविधा बढ़ी, चीन ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की सदस्यता के भारत के दावे पर रोक लगाई, और संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह के प्रमुख पर प्रतिबंध लगाने के भारतीय प्रयासों पर पानी फेर दिया। इसके अतिरिक्त, भारत ने शी के महत्वपूर्ण बीआरआई शिखर सम्मेलन का बहिष्कार करने का निर्णय इस आधार पर लिया कि इस परियोजना से भारतीय संप्रभुता का उल्लंघन होता है, क्योंकि बीआरआई का एक हिस्सा पाकिस्तान-प्रशासित कश्मीर से होकर गुज़रता है।

ये मुद्दे और भी गंभीर हो गए जब डोकलाम संकट के तुरंत बाद, बीजिंग ने भारत को हाइड्रोलॉजिकल डेटा, जो कि बाढ़ के पूर्वानुमान और चेतावनी के लिए अधिक महत्वपूर्ण है, देने पर रोक लगा कर द्विपक्षीय समझौते का उल्लंघन किया जबकि वही डेटा सबसे निचली तट पर स्थित बांग्लादेश के साथ बाँटा समझौते के अनुसार, मई और अक्टूबर के बीच मानसून के दौरान सबसे उपरी तट पर स्थित चीन को ये हाइड्रोलॉजिकल डेटा भारत के साथ साझा करना होता है। परन्तु भारतीय अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है कि पिछले साल अगस्त में चीन से कोई भी डेटा प्राप्त नहीं हुआ। चीनी अधिकारियों ने डेटा न देने के लिए तकनीकी कारणों का हवाला दिया, लेकिन बांग्लादेश ने इस बात की पुष्टि कि है कि उसे चीन से डेटा प्राप्त हुआ है। भारत की कुल ताजा पानी की आपूर्ति का एक तिहाई हिस्सा तिब्बत से निकलने वाली नदियों से आता है। अगर चीन ने आवश्यक डेटा प्रदान किया होता तो भारत के पूर्वोत्तर में आई बाढ़ से हुई कुछ मौतों को रोका जा सकता था।

मामला और भी बिगड़ गया जब डोकलाम गतिरोध ने भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन सेना के बीच महत्वपूर्ण सैन्य आत्मविश्वास निर्माण उपायों को भी बाधित कर दिया। दोनों सेनाओं ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अपनी पारंपरिक सीमा कर्मी बैठक (बीपीएम) नहीं रखी और न ही वार्षिक “हैंड-इन-हैंड” अभ्यास किया।

डोकलाम के बाद की यथास्थिति

एक अभूतपूर्व कदम लेते हुए, जो भारत में तिब्बत गतिविधियों की ओर नई दिल्ली के पिछले सहायक दृष्टिकोण से काफी अलग था, सरकार के एक निर्देश ने अधिकारियों से आग्रह किया कि वे इस वर्ष मार्च में दलाई लामा के ६० वर्षों के भारत में निर्वासन के जश्न समारोह में भाग न लें। इस निर्देश ने साफ साफ कहा कि यह जश्न बीजिंग के साथ नई दिल्ली के संबंधों मे एक संवेदनशील समय पर आया है।

इस निर्देश को इस प्रकार देखा जा सकता है कि भारत ने चीन के प्रति अपनी आक्रामक भाषा को नर्म करने के लिए यह निर्णय लिया ताकि संबंधों को फिर से ठीक किया जा सके, न की इसलिए क्योंकि एलएसी पर चीनी आक्रामकता नें भारत को मजबूर किया। और अंत में भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान भी जारी किया, यह स्पष्ट करने के लिए कि तिब्बत के प्रति भारत की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है और आदरणीय दलाई लामा को भारत में अपनी धार्मिक गतिविधियों को पूरा करने की पूरी आज़ादी है। इसके अतिरिक्त, चीन का मुकाबला करने और उसे लुभाने की अपनी प्रतिस्पर्धी जरूरतों को संतुलित करने के लिए, भारत ने जापान, अमेरिका, और ऑस्ट्रेलिया जैसी शक्तियों के साथ क्वाड जैसी रणनीतिक साझेदारी बनाई है और उसी समय वह चीन से ब्रिक्स और एससीओ जैसे बहुपक्षीय मंचों में बात भी कर रहा है।

 आने वाले महीने इस बात का निर्णयात्मक परीक्षण होंगे कि डोकलाम के बाद भारत और चीन अपने द्विपक्षीय संबंधों को तोड़े बिना अपने रिश्ते को कैसे प्रबंधित कर पाते हैं।

ऐसा लगता है कि दोनों तरफ से २०१७ में संबंधों में आई कड़वाहट को जल्द से जल्द ख़तम करके आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त राजनीतिक इच्छाशक्ति उपलब्ध है। नई दिल्ली ने पहले ही यह स्वीकार करके संकेत दे दिया है कि तिब्बत बीजिंग के लिए एक गंभीर विषय है। जवाब में, लगभग उसी समय, चीन भारत के साथ फिर से हाइड्रोलॉजिकल डेटा बाँटने के लिए सहमत हो गया। अमेरिका के साथ एक व्यापार युद्ध के बीच, चीन ने भारत के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने और भारत के साथ चीन के विशाल व्यापार घाटे को हल करने की अपनी उत्सुकता का संकेत दिया है। इसके अतिरिक्त, इस साल की शुरुआत में, चीन ने भारत द्वारा समर्थित एक कदम में एफएटीएफ के अंतर्गत आतंक को वित्तपोषण करने के लिए पाकिस्तान को ग्रे सूची में डाला।

दोनों की इन चालों के पीछे राजनीतिक और आर्थिक विचार काम कर रहे हैं। एक तनावपूर्ण सैन्य गतिरोध, या उससे भी बदतर युद्ध, घरेलू स्तर पर मोदी या शी किसी के लिए भी अनुकूल नहीं होगा। २०१९ में चुनावों को देखते हुए, मोदी चीन के साथ किसी भी तरह की लड़ाई में उलझना नहीं चाहते, नहीं तो ऐसा समझा जाएगा कि उन्होंने चीन के हाथों डोकलाम खो दिया। इसी बीच, राष्ट्रपति शी ने एक दूसरा कार्यकाल जीता है और वह वैश्विक मुक्त व्यापार के हित में बोलने वाले नेता बनाने चाहते हैं। १७४ बिलियन डॉलर की बीआरआई परियोजना चीन को वैश्वीकरण का केंद्रिय अंग बनाती है, और इसलिए उसे हर क्षेत्र में और हर देश से सहयोग चाहिए। इसलिए चीन भारत से विरोध नहीं चाहता और नई दिल्ली हिंद महासागर में चीन की गतिविधियों पर नजर रखते हुए और डोकलाम में यथास्थिति बनाए रखने की उम्मीद में बीजिंग को विरोधी बनाना नहीं चाहती।

डोकलाम को भूल कर आगे बढ़ना

सड़क निर्माण को लेकर जो विवाद शुरू हुआ था वह एशिया के भूराजनीतिक वातावरण में एक बड़ा मुद्दा बन गया। आने वाले महीने इस बात का निर्णयात्मक परीक्षण होंगे कि डोकलाम के बाद भारत और चीन अपने द्विपक्षीय संबंधों को तोड़े बिना अपने रिश्ते को कैसे प्रबंधित कर पाते हैं। यदि पिछले महीने आयोजित सीमा वार्ता के नवीनतम दौर से अनुमान लगाएँ, तो नई दिल्ली और बीजिंग एक दूसरे के अपराधों के बारे में शिकायत करने से आगे नहीं बढ़ पाएंगे। फिर भी, यदि डोकलाम द्विपक्षीय संबंधों को परिभाषित करता रहा तो दोनों देशों के पास खोने के लिए बहुत कुछ है। यदि भारत और चीन को राजनीतिक और आर्थिक लाभ के लिए मौजूदा गतिरोध से आगे बढ़ना है, और लगता भी है कि वे ऐसा करना चाहते हैं, तो आने वाले दिनों में डोकलाम विवाद को वार्ता से अलग रखना होगा।

Editor’s note: To read a version of this article in English, please click here

***

Image 1: President of the Russian Federation via Wikimedia Commons

Image 2: Shailesh Bhatnagar via Getty

Share this:  

Related articles

کواڈ کو انڈو پیسیفک میں جوہری خطروں سے نمٹنا ہو گا Hindi & Urdu

کواڈ کو انڈو پیسیفک میں جوہری خطروں سے نمٹنا ہو گا

کواڈ کے نام سے معروف چار فریقی سیکیورٹی ڈائیلاگ کے…

بھارت اور امریکہ کی دفاعی شراکت داری  کے لئے رکاوٹیں اور مواقع  Hindi & Urdu

بھارت اور امریکہ کی دفاعی شراکت داری  کے لئے رکاوٹیں اور مواقع 


سرد جنگ کے دوران جغرافیائی سیاسی نقطہ نظر میں اختلافات…

پلوامہ – بالاکوٹ پانچ برس بعد جائزہ Hindi & Urdu

پلوامہ – بالاکوٹ پانچ برس بعد جائزہ

لمحۂ موجود میں پاکستان، بھارت کے تزویراتی بیانیے سے تقریباً…