6275448715_ece2255f37_o_edited

भारत और पाकिस्तान की जासूसी एजेंसियों के प्रमुखों द्वारा मिल कर लिखी गई द स्पाई क्रॉनिकल्स: रॉ, आईएसआई एंड द इल्यूज़न ऑफ पीस नामी किताब ने पाकिस्तान के खुफिया और सैन्य समुदाय में उथल-पुथल मचा दी है। यह किताब पाकिस्तानी इंटरसर्विसेस इंटेलिजेंस (आईएसआई) के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) असद दुर्रानी और पूर्व भारतीय अनुसंधान और विश्लेषण विंग (रॉ) प्रमुख एएस दुल्लत के बीच बातचीत की एक श्रृंखला है, जिसकी मध्यस्थता पत्रकार आदित्य सिन्हा ने की है।

जनरल दुर्रानी लंबे समय से पाकिस्तान में विवादास्पद व्यक्ति रहे हैं, उस घटना के बाद से जब उन्होंने २०१४ के आर्मी पब्लिक स्कूल हमले और पाकिस्तान में हुए अन्य आतंकवादी हमलों को अफगानिस्तान में तालिबान का समर्थन करने की बड़ी कीमत चुकाना कहा था। अगस्त १९९० से मार्च १९९२ तक आईएसआई की अध्यक्षता करने वाले दुर्रानी को पाकिस्तान आर्मी के जनरल मुख्यालय में इस किताब को प्रकाशित करके सैन्य आचार संहिता का उल्लंघन करने के लिए तलब किया। चूंकि दुर्रानी को एग्जिट कंट्रोल लिस्ट पर रखा गया है, और उनको औपचारिक अदालत का सामना करना होगा जो इस मामले की जांच करेगी, इस विवाद के असल कारण की समीक्षा करना जरूरी है। स्पाई क्रॉनिकल्स में ऐसा क्या है जिससे इस तरह की सख्त प्रतिक्रिया आ रही है?

क्षेत्रीय हित

भारत और पाकिस्तान के दो पूर्व जासूसी प्रमुख होने के कारण, लेखकों से यह उम्मीद थी कि वह कश्मीर मुद्दे पर विस्तार से चर्चा करेंगे। पुस्तक का अधिकतर भाग कश्मीर पर दुर्रानी और दुल्लत की वार्ताओं पर आधारित है,  जिसमें छह अध्याय विशेष रूप से विवादित क्षेत्र में भारत और पाकिस्तान की भूमिकाओं पर केंद्रित हैं। दिलचस्प बात यह है कि पुस्तक में दुर्रानी ने कहा है कि कश्मीर की वर्तमान स्थिति पाकिस्तान के लिए प्रतिकूल नहीं है और पाकिस्तान इस अशांति के साथ सहज हो सकता है, इस बात को छोड़ कर कि कुछ कश्मीरियों की मृत्यु हुई है। उनकी प्रस्तावित कश्मीर नीति आकार लेती है जब वे सुझाव देते हैं कि घाटी में जो कुछ हो रहा है उसका पाकिस्तान को बस बैठकर मज़ा लेना चाहिए। दूसरी ओर दुल्लत घोषणा करते हैं कि अगर कश्मीरी खुश रहते तो वे पाकिस्तान की ओर न जाते, क्योंकि कश्मीरियों को पाकिस्तान की जरूरत तब ही होती है जब वे परेशानी में होते हैं।

इस तरह, दो जासूस प्रमुख इस बात पर सहमत हैं कि भारत ने कश्मीर पर अपना दावा सफलतापूर्वक रखा है, और पाकिस्तान इस विवादित क्षेत्र से उतना जुड़ा नहीं है जितना वह दिखाता है। पर यह कश्मीर के प्रति पाकिस्तान के आधिकारिक रुख के विपरीत है, जिसके अनुसार यह क्षेत्र भारत का एक अभिन्न अंग नहीं है, और जिसके कारण पाकिस्तानी सरकार कश्मीरियों को राजनीतिक, नैतिक, और राजनयिक समर्थन देती है।

जब  भारत और पाकिस्तान के जासूस अधिकारी मिलते हैं तो अफगानिस्तान की चर्चा अनिवार्य है। फिर भी, इस तरह के एक विवादास्पद विषय के लिए, द स्पाई क्रॉनिकल्स में दुल्लत और दुर्रानी के बीच आश्चर्यजनक हद तक सर्वसम्मति है।  रणनीतिक गणित के संदर्भ में, दुल्लत कभी इतने यथार्थवादी नहीं थे जितना यह सुझाव देते हुए हो कि अफगानिस्तान पाकिस्तान के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना नेपाल भारत के लिए है। इस बात पर दोनों पक्ष सहमत हैं कि अफगानिस्तान में किसी भी भारतीय हस्तक्षेप को नेपाल में पाकिस्तान के दखल देने के बराबर माना जाएगा।  

बिन लादेन की गिरफ्तारी

द स्पाई क्रॉनिकल्स में ऑपरेशन जेरोनिमो की कुछ पृष्ठभूमि की जानकारी भी है– यह वही ऑपरेशन है जिसमें पाकिस्तान में अल-कायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन को मारा गया था। जनरल दुर्रानी ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि पाकिस्तानी सेना ने ओसामा बिन लादेन को ढूंढने और मारने के लिए अमेरिकी सेना से सहयोग किया था, इस तथ्य के आधार पर कि उस समय पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी ने बिन लादेन के छापे से पहले अमेरिका के अधिकारियों से मुलाकात की थी। दुर्रानी के अनुसार, कयानी ८ अप्रैल, २०११ को सेंट्रल कमांड के चीफ़ जनरल जेम्स मैटिस से मिले, २० अप्रैल को जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ माइक मलन से, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि २६ अप्रैल को अफगानिस्तान के अमेरिकी कमांडर जनरल डेविड पेट्रियस के साथ मुलाकात की। परिप्रेक्ष्य के लिए, राष्ट्रपति ओबामा ने २९अप्रैल को ऑपरेशन जेरोनिमो के आदेश पर हस्ताक्षर किए।

शायद यह तर्क दिया जा सकता है कि अमेरिका के साथ सहयोग करने के बारे में बात करना पाकिस्तान के हित में नहीं था। यदि पाकिस्तानी प्रतिष्ठान ने अमेरिका के साथ बिन लादेन को मारने के लिए कथित सहयोग के बारे में खुल कर बात की होती, तो यह संभव है कि पाकिस्तानी समाज के कुछ हिस्सों में पाकिस्तान सेना के खिलाफ विरोध होता। अधिकतर पाकिस्तानियों ने बिन लादेन की हत्या को अस्वीकार किया था, और तब से इस्लामाबाद में स्थित एक प्रमुख मस्जिद और उससे जुड़े आसपास के मदरसों ने बिन लादेन को “हीरो बतलाया है। घरेलू निंदा से बचने के लिए, अमेरिका के साथ गुप्त सहयोग शायद उस समय पाकिस्तानी सेना के लिए सब से बेहतर विकल्प रहा होगा।

दुर्रानी की मुश्किलें

दुर्रानी ने दो मोर्चों पर पाकिस्तान के रुख से हट कर मुश्किल मोल ली है: कुलभूषण जाधव प्रकरण और १९४७ में भारत और पाकिस्तान विभाजन।

जाधव के मामले पर दुर्रानी और दुल्लत एक ही तरह की राय रखते हैं और कहते हैं कि जासूसी एक ऐसी वास्तविकता है जिसके समाप्त होने की संभावना नहीं है। दोनों इस बात पर भी सहमत हैं कि यह प्रकरण दोनों देश बेहतर तरीके से संभाल सकते थे। दुर्रानी तो यह भी कहते हैं कि आईएसआई को रॉ को एक संदेश भेजना चाहिए था कि हमारे पास जाधव है और सभी लाभ उठा लेने के बाद सही कीमत पर उसे लौटा देना चाहिए था। रॉ के पूर्व प्रमुख दुल्लत ने कहा कि यदि जाधव और उनके ऑपरेशन को वास्तव में खुफिया एजेंसी का समर्थन प्राप्त था तो यह एक बहुत ही ख़राब और ढीला ऑपरेशन था। पाकिस्तान में इस तरह के ध्रुवीकरण मुद्दे पर दुल्लत का दुर्रानी से सहमति जताना पाकिस्तान सेना द्वारा दुर्रानी की सख्त प्रतिक्रिया का एक संभावित कारण हो सकती है।

इसके अलावा, दुर्रानी का सेना के साथ विवाद होने का एक और कारण अखण्ड भारत (यानी ग्रेटर इंडिया या अविभाजित भारत) कन्फेडरेशन सिद्धांत पर उनके विचार हो सकते हैं। इस मामले पर आधारित द स्पाई क्रॉनिकल्स के एक अध्याय में, जनरल दुर्रानी ने भारत और पाकिस्तान के १९४७ में हुए विभाजन की व्यावहारिकता पर संदेह व्यक्त किया है और यह क्या है कि विभाजन ने कई सारी समस्याओं को जनम दिया जिसके कारण दोनों देश हमेशा लड़ते रहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अखण्ड भारत कोई कल्पना नहीं है जैसा कि कुछ लोग आजकल समझते हैं। यहां जनरल दुर्रानी शायद यह कहना चाह रहे हैं कि भारत और पाकिस्तान का विभाजन पाकिस्तान के हित के लिए शायद सबसे अच्छा विकल्प नहीं था और यह भी कि विभाजन शायद स्थायी न हो। जिस तरह जनरल दुल्लत पुस्तक में दुर्रानी को जवाब देते हैं, उसी तरह का विचार अक्सर भारत में दक्षिणपंथी कट्टरपंथियों द्वारा प्रस्तावित किया जाता है। शायद इस पाकिस्तानी प्रचलित विचार को देखते हुए कि विभाजन दक्षिण एशिया में मुस्लिमों के अधिकारों की रक्षा के लिए उचित और आवश्यक था, जनरल दुर्रानी के खिलाफ सेना द्वरा नयायिक जाँच का आदेश आया है।

उल्लेखनीय दोस्ती

भविष्य में जो भी हो, लेकिन तथ्य यह है कि भारत और पाकिस्तान के दो पूर्व जासूस प्रमुखों के बीच दोस्ती, इस राजनीतिक क्षण में जब संबंध तनावग्रस्त हैं, उल्लेखनीय है। द स्पाई क्रॉनिकल्स इस्लामाबाद और नई दिल्ली के नीति निर्माताओं के बीच बेहतर संबंधों के लिए आशा की किरण प्रदान कर ती है। यदि दुल्लत और दुर्रानी इस तरह के सौहार्दपूर्ण रिश्ते का निर्माण कर सकते हैं और एक-दूसरे के प्रति सम्मान और स्नेह रख सकते हैं, तो दोनों परमाणु पड़ोसियों के बीच नफरत के माहौल को बदला जा सकता है।

Editor’s note: To read this article in English, please click here.

***

Image 1: ResoluteSupportMedia via Flickr

Image 2: Aamir Qureshi via Getty

Share this:  

Related articles

سی پیک کو بچانے کے لیے، پاکستان کی چین پالیسی میں اصلاح کی ضرورت ہے Hindi & Urdu

سی پیک کو بچانے کے لیے، پاکستان کی چین پالیسی میں اصلاح کی ضرورت ہے

پاکستان کے وزیر اعظم شہباز شریف رواں ماہ کے اوائل میں صدر شی جن پنگ اور دیگر اعلیٰ چینی حکام سے ملاقاتوں کے بعد تقریباََ خالی ہاتھ وطن واپس پہنچ گئے ہیں۔ چین نے واضح انضباطِ اوقات ( ٹائم لائن) کے تحت پاکستان میں بڑے منصوبوں کے لئے سرمایہ کاری کا وعدہ نہیں کیا۔ اس […]

آبدوزیں بحرہند میں ہندوستان کی ابھرتی ہوئی قوت کی کلید ہیں Hindi & Urdu

آبدوزیں بحرہند میں ہندوستان کی ابھرتی ہوئی قوت کی کلید ہیں

شمال مغربی بحر ہند میں سمندری تجارت گزشتہ چھ ماہ…

بی جے پی کے زیرِقیادت گلگت بلتستان پر بھارتی  بیان بازی Hindi & Urdu

بی جے پی کے زیرِقیادت گلگت بلتستان پر بھارتی  بیان بازی

بھارتیہ جنتا پارٹی (بی جے پی) کے زیرِ قیادت بھارتی…