वैश्विक स्तर पर बदलती शक्ति व्यवस्था और दक्षिण एशिया में विकसित होने वाले रणनीतिक वातावरण से कुछ अजीब लेकिन महत्वपूर्ण गठबंधन उभरे हैं। रूस और पाकिस्तान, जो शीत युद्ध के दौरान एक दूसरे के विरोधी थे, आज विविध क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत कर रहे है। मॉस्को और इस्लामाबाद के बीच संबंधों की मज़बूती ताज़ा विदेशी नीति निर्देशों और पड़ोसी देशों में पाकिस्तान की बढ़ती भूमिका का अभिव्यक्ति हैं। पर यह इस बात का संकेत भी हो सकता है कि इस्लामाबाद “पश्चिम” की ओर देखने की अपनी परंपरागत नीति को छोड़ कर अमेरिका पर अपनी भारी निर्भरता कम करना चाहता है। इसके अलावा, पाकिस्तान युद्ध-प्रभावित अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के लिए रूस की रचनात्मक भूमिका चाहता है।
पाकिस्तान और रूस के बीच बढ़ती नज़दीकी के पीछे कई संभावित प्रेरणाएँ हो सकती हैं, लेकिन अफगानिस्तान में जारी अराजकता उनमें मुख्य है। अपने रूसी समकक्ष सर्गेई शूगू के साथ एक बैठक में, पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा असिफ़ ने अफगान शांति प्रक्रिया में रूसी भाग्यदारी पर जोर दिया। पाकिस्तान के लिए, शांति निर्माण में रूस की रचनात्मक भागीदारी दाएश को पराजित करने के लिए प्रासंगिक है, जो पूरे एशियाई क्षेत्र के लिए एक खतरा बन गया है।
१४ अप्रैल को, रूस ने शांति, स्थिरता, और अफगानिस्तान में सामंजस्य प्रक्रिया पर तीसरा सम्मेलन आयोजित किया। हालांकि, अमेरिका और नेटो सहित प्रमुख हितधारकों की अनुपस्थिति सामंजस्य प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में प्रमुख शक्तियों की भिन्न प्राथमिकताओं को दर्शाती है। इस शक्ति प्रदर्शन से केवल अफगानिस्तान की नाज़ुक स्थिति और बिगड़ेगी तथा शांति प्रक्रिया को और नुकसान होगा । अफगानिस्तान के मुद्दे पर अमेरिका और रूस का मतभेद दाएश को अपना गढ़ मज़बूत करने के लिए आदर्श स्थिति प्रदान करता है।
तालिबान के जो स्दस्य दाएश का विरोध करते हैं और राजनीतिक व्यवस्था में भाग लेना चाहते हैं, उन्हें समायोजित करने के लिए मॉस्को और इस्लामाबाद का सहयोग अफ़गानिस्तान के सुरक्षा स्थिति में सुधार ला सकता है। इसके अलावा, भविष्य की सरकार में बहुपक्षीय पहल द्वारा तालिबान का समाधान, जिसमें रूस, नेटो, चीन, और अमेरिका शामिल हों, अफ़गानिस्तान में लोकतांत्रिक मूल्यों को मज़बूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
रूसी-पाकिस्तानी सहयोग के संचालक
दो प्रमुख घटनाओं ने पाकिस्तान और रूस के बीच संबंधों की मज़बूती में योगदान दिया है: अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती रणनीतिक साझेदारी, और अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों की नाज़ुक हालत।
पिछले कुछ सालों में, अमेरिका-भारत संबंधों में अभूतपूर्व विकास हुआ है जिसने रूस के साथ भारत के रक्षा सहयोग को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। रूस पारंपरिक रूप से भारत का सबसे बड़ा रक्षा साझेदार था पर पिछले तीन से पांच सालों में स्थिति बदल गई है। जैसा कि कई जगह तर्क दिया गया है, भारत और अमेरिका के संबंधों में मज़बूती चीन को टक्कर देने के लिए है। इसी तरह, अमेरिका ने भारत के सैन्य आधुनिकीकरण में अपना समर्थन बढ़ा दिया है।
अपनी दक्षिण एशिया नीति की अस्पष्टता के बावजूद, अमेरिकी प्रशासन ने पहले ही बता दिया है कि वह भारत के साथ मिलकर काम करने के लिए उत्सुक है। उदाहरण के लिए, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के साथ भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की बैठक के बाद संयुक्त वक्तव्य में, दोनों देशों ने इस बात पर ध्यान दिया कि वे रक्षा संबंधों को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे जो अमेरिका के सबसे करीबी सहयोगियों और भागीदारों के अनुरूप हो। यू.एस. हाउस ऑफ़ रिप्रजेंटेटिवज़ में पारित एक बिल में भी इस पहल को रेखांकित किया गया है और भारत और अमेरिका के बीच घनिष्ठ सहयोग के लिए एक रणनीति तैयार करने के लिए राज्य और रक्षा सचिवों को अपील की गई है । 2016 में, भारत सरकार ने लौजिसटिक्स एक्सचेंज मेमोरेन्डम ऑफ एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए, जिससे दोनों देशों के सैनिकों को आपूर्ति और मरम्मत के लिए एक दूसरे की सुविधाएं मिल सकेंगीं ।
इस तरह की घटनाओं ने रूस को भारत के विशेष रक्षा साथी से सिर्फ पसंदीदा रक्षा साथी बना दिया है। दशकों तक, रूस रक्षा की ज़रूरतों के लिए नई दिल्ली की पहली पसंद और प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहा है । हालांकि, पिछले कुछ वर्षों के दौरान अमेरिका के साथ नई दिल्ली के बढ़ते रणनीतिक सहयोग से रूसी हथियारों की बिक्री पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। और इसने रूस को रक्षा निर्यात को पाकिस्तान सहित अन्य देशों में खोलने के लिए प्रेरित किया है।
बदलते भू-राजनीतिक, सुरक्षा, और आर्थिक परिदृश्य
2014 में, रूस ने पाकिस्तान के खिलाफ़ अपने हथियार प्रतिबंध को ख़तम किया, जिसके बाद अंततः दो देशों के बीच सैन्य सहयोग का पहला उदाहरण सामने आया । 2016 में, पाकिस्तान और रूस ने अपना पहला संयुक्त सैन्य अभ्यास किया और इसको ड्रज़भा 2016 का नाम दिया, जिसका मतलब रूसी भाषा में “दोस्ती” है। हालांकि, पहले से ही दोनों देशों के बीच सहयोग की बुनियाद मौजूद थी, क्योंकि दोनों देशों की नौसेना ने 2014 और 2015 में “अरबी मॉनसून” जैसे अभ्यासों में भाग लिया था। इसके अलावा, संयुक्त अभ्यास के लिए पाकिस्तान के खैबर-पख्तुनख्वा प्रांत में रूसी सेना की लैंडिंग को भविष्य में बड़े पैमाने पर रक्षा सहयोग के लिए एक प्रस्ताव के रूप में देखा गया है। अगस्त 2015 में, रूस ने पाकिस्तान के साथ एक ऐतिहासिक रक्षा सौदे पर हस्ताक्षर किया, जिसमें चार एमआई-35 “हिंद ई” लड़ाकू हेलीकाप्टरों की बिक्री शामिल थी।
पाकिस्तान के आतंकवाद विरोधी कार्रवाई को देखने के लिए उत्तर और दक्षिण वज़ीरिस्तान में रूसी जनरल इस्त्राको सर्गी युरीवीच की यात्रा मात्र प्रतीकात्मकता नहीं थी। यह यात्रा एक दिलचस्प घटना है क्योंकि इससे यह संकेत मिलता है कि दोनों देशों के शीत युद्ध के कठिन इतिहास को देखते हुए, चीन पाकिस्तान और रूस के बीच सहायक की भूमिका निभा रहा है। क्योंकि चीन अफगान सामंजस्य प्रक्रिया की मध्यस्थता में पाकिस्तान और रूस दोनों की सहभागिता की मांग करता है, विश्लेषकों का अनुमान है कि पाकिस्तान और रूस के संबंधों में विकास के लिए चीन की भूमिका प्रभावशाली होगी।
रिश्ते केवल रक्षा क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि आर्थिक और विकास के क्षेत्रों में भी बढ़ रहे हैं। अक्टूबर 2015 में, पाकिस्तान और रूस ने लाहौर से कराची तक की 1,100 किलोमीटर की गैस पाइपलाइन के निर्माण के लिए 2.5 अरब डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किया। इसके अतिरिक्त, शंघाई सहयोग संगठन की सदस्यता के लिए रूस ने लगातार पाकिस्तान का समर्थन किया है।
रूस ने न केवल चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का हिस्सा बनने की इच्छा व्यक्त की है, बल्कि सीपीईसी को अपने यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन परियोजना के साथ जोड़ने का इरादा भी दिखाया है। इतने बड़े अस्तर पर इंफ़्रास्ट्रक्चर संबंधित परियोजनाएं पाकिस्तान को ट्रांज़िट हब में बदल सकती हैं।
निष्कर्ष
रूस और पाकिस्तान के बीच चल रही दोस्ती के पीछे प्राथमिक तर्क अफगानिस्तान है, स्थायी सामंजस्य प्रक्रिया शुरू करने के लिए जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। हालांकि, अन्य क्षेत्रीय घटनाएं और नए गठबंधन निर्माण पाकिस्तान और रूस को एक एकीकृत प्रक्षेपवक्र में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पाकिस्तान का राजनीतिक नेतृत्व रूस के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने के लिए उत्सुक है। हालांकि, पाकिस्तान और रूस दोनों को सहयोग के लिए एक संरचनात्मक तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है, चाहे यह एक वार्षिक पूर्ण बैठक या प्रमुख पहल के रूप में हो, विशेष रूप से रक्षा, अर्थशास्त्र, शिक्षा, और विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में । संरचनात्मक तंत्र के बिना, प्रगति कई क्षेत्रों में धीमी गति का शिकार हो सकती है।
उसी समय पर, यह आवश्यक है कि क्षेत्रीय अस्थिरता और अफगानिस्तान में शांति कायम रखने की संभावनाओं को दक्षिण एशियाई क्षेत्र के भू-राजनीतिक परिदृश्य के संदर्भ में निपटा जाए। संक्षेप में, पाकिस्तान और रूस की मज़बूत दोस्ती क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाने की क्षमता रखती है, आतंकवाद विरोधी सहयोग, आर्थिक संबंध, और अन्य क्षेत्रीय गठबंधनों के खिलाफ़ संतुलन बनाने के ज़रिए।
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Image 1: President of Russia, via Flickr.
Image 2: philmofresh via Flickr.