कुछ समय से बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन चल रहे थे, जिसके चलते सैकड़ों लोग हताहत थे और प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी अपना त्यागपत्र देना पड़ा| मूल रूप से, बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन देश की आरक्षण प्रणाली के विरुद्ध प्रारम्भ हुए थे, जिसके तहत विभिन्न श्रेणियों के लोगों के लिए 56 प्रतिशत सरकारी नौकरियों को आरक्षित किया गया — जिसमें 1971 में देश की स्वतंत्रता सेनानियों के वंशज भी शामिल थे | सरकारी कार्रवाई के कारण, विरोध प्रदर्शन तेज़ गति से बढ़ने लगे, और अंत में, हसीना सरकार की वैधता की परीक्षा में परिवर्तित हो गए |
यह देखते हुए कि शेख हसीना भारत की करीबी रणनीतिक सहयोगी रह चुकी थीं, हसीना का जाना भारत के रणनीतिक हितों को ख़तरे में डाल सकता है | इस सन्दर्भ में, अंतरिम सरकार के कार्यभार संभालने के पश्चात्, भारत को हसीना से दूरी बना लेनी चाहिए तथा बांग्लादेश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों सहित लोकतंत्र की बहाली का पूर्ण समर्थन करना चाहिए। इसके साथ ही, भारत को अंतरिम सरकार के साथ परामर्श कर, बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए, तथा संभावित शरणार्थी संकट को रोकने के लिए अंतरिम सरकार के साथ जुड़ना चाहिए।
शेख़ हसीना का राजनैतिक पतन
बांग्लादेश में, विरोध प्रदर्शन जून 2024 में, बांग्लादेशी छात्रों के नेतृत्व में एक विवादास्पद आरक्षण (quota) प्रणाली के विरुद्ध प्रारम्भ हुआ था, जो स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों सहित विभिन्न श्रेणियों के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों को आरक्षित करने के उद्देश्य से संयोजित रूप से लाया गया था | मूल रूप से, यह प्रणाली 1972 में, बांग्लादेश के स्वतंत्र राष्ट्र बनने के एक साल बाद, स्थापित हुई थी | उस समय, इस प्रणाली के अंतर्गत, बांग्लादेश सिविल सेवा में, 30 प्रतिशत नौकरियाँ उन व्यक्तियों के लिए आरक्षित कर दी थीं, जिन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था |
2010 तक, स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चे एवं पोते-पोतियाँ इस प्रणाली के लाभार्थियों के रूप में उभरने लगे, जिससे यह चिंता पैदा हो गई कि हसीना सरकार अपने समर्थकों को गलत तरीके से, प्रणाली का उपयोग कर लाभ प्रदान कर सकती है| 2018 में, सरकार ने व्यापक विरोध के पश्चात्, नौकरियों के कुछ वर्गों के लिए, आरक्षण रद्द कर दिया था| परन्तु जून 2024 में, बांग्लादेश उच्च न्यायालय द्वारा 30 प्रतिशत आरक्षण बहाल कर दिया गया, जिसके उपरांत, विरोध प्रदर्शनों का नवीनतम दौर प्रारम्भ हो गया था | यद्यपि प्रदर्शनकारियों ने शुरू में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया था, परन्तु सरकारी दमन के जवाब में उनकी मांगें जल्द ही व्यापक हो गईं | यहाँ तक कि जुलाई 2024 के अंत में, बांग्लादेश के उच्च न्यायालय ने विरोध के जवाब में प्रणाली के कुछ प्रावधानों को वापस ले लिया।
लेकिन सरकार द्वारा देश भर में, कर्फ़्यू लगाने, इंटरनेट सेवाएँ बंद करने और कुछ इलाकों में देखते ही गोली मारने के आदेश जारी करने के बाद, बांग्लादेश सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे | सरकार के इस कड़े रुख की वजह से, हसीना के ऊपर, सत्तावादी होने, तथा सत्तावाद की ओर वर्षों से उनके बढ़ते झुकाव को लेकर लंबे समय से चल रही नाराज़गी में वृद्धि हो गई — जिसके परिणाम स्वरुप, हसीना सरकार ने और कड़ा रुख अपनाया और राजनीतिक असंतुष्टों को सलाखों के पीछे डाल दिया | इसके अतिरिक्त, सरकार द्वारा चुनावों में कथित अनियमिताओं में वृद्धि भी देखने को मिली | इन सभी कारणों से, हसीना से प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने की मांग उठने लगी | अंत में, हसीना को बांग्लादेश की जनता के सामने झुकना पड़ा और अपना त्याग पत्र प्रस्तुत करना पड़ा | इसके उपरांत, हसीना एक हेलीकॉप्टर लेकर भारत के लिए रवाना हो गईं|
भारत का एक परम सहयोगी को खोना
हसीना का त्यागपत्र देना भारत के लिए एक बड़ी रणनीतिक क्षति के रूप में देखा गया है | सत्ता में अपने 15 वर्षों के दौरान, हसीना ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित किए थे, जिसके बाद भारत और बांग्लादेश महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार बन गए थे| उदाहरण के तौर पर, वर्ष 2023 में, दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के साथ कम से कम दस बैठकों में हिस्सा लिया, और 2024 में, मोदी के अपना तीसरा कार्यकाल प्रारम्भ करने के बाद राजकीय यात्रा पर नई दिल्ली की ओर कूंच करने वाली, हसीना पहली विदेशी नेत्री थीं।
ये बैठकें भारत और बांग्लादेश के बीच वर्षों से चली आ रही उच्च स्तरीय भागीदारी का परिणाम थीं, जिन के माध्यम से, दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग और सुरक्षा सहकार्यता में वृद्धि आई थी | उदाहरण के लिए, 2021 में, दोनों देशों ने बांग्लादेश के ढाका को भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल में नई जलपाईगुड़ी से जोड़ने के लिए मिताली द्रुतगति लौहपथगामिनी शुरू की थी | दो साल बाद, दोनों देशों ने अखौरा-अगरतला सीमा पार रेल लिंक – जो बांग्लादेश को पूर्वोत्तर भारत से जोड़ती है, प्रारम्भ किया था |
ये उपाय, खासकर पूर्वोत्तर भारत में, आतंकवाद विरोधी प्रयासों और सीमा सुरक्षा सहयोग के समानांतर चलाए गए थे— जिसके परिणाम स्वरुप, 2015 में, बांग्लादेश ने ढाका में गिरफ्तारी के 18 साल बाद अनूप चेतिया, जो यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के संस्थापक सदस्य और भारत के सबसे वांछित उग्रवादियों में से एक थे— उसको भारत को प्रत्यर्पित (extradite) किया गया।
हसीना प्रशासन ने लंबे समय से चले आ रहे जल-बंटवारे और सीमा विवादों को सुलझाने में भी कामयाबी हासिल की थी | उदाहरण स्वरुप, 2022 में भारत और बांग्लादेश ने कुशियारा नदी के पानी के बंटवारे पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे | इससे पूर्व, 2015 में, एक दूसरे के क्षेत्रों में ‘एन्क्लेव’ की स्थिति का समाधान करने हेतु, भारत और बांग्लादेश ने एक ऐतिहासिक समझौता भी किया था | इन कार्रवाइयों ने द्विपक्षीय संबंधों, आर्थिक एकीकरण और क्षेत्रीय स्थिरता को दृढ़ता प्रदान की थी, जिसके बाद भारत और बांग्लादेश एक दूसरे के लिए मूल्यवान भागीदार बन गए थे |
चुनौतियों तथा अनिश्चिताओं का प्रारम्भ
राजनीतिक मोर्चे पर, भारत अब बांग्लादेश में अनिश्चित और तेज़ गति से परिवर्तित हो रहे भविष्य का सामना कर रहा है, जिसमें अनेक जोखिम और चुनौतियाँ सम्मिलित हैं | हसीना के इस्तीफे के बाद बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने संसद को भंग कर दिया था और विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की प्रमुख पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया को कारावास से रिहा करने का आदेश दिया था। इसके अलावा, नोबेल विजेता अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस की अध्यक्षता में एक अंतरिम सरकार का गठन भी किया गया था |
इन गतिविधियों के चलते, नई दिल्ली में चिंता के बादल छा गए थे | बीएनपी के कार्यकाल के समय, पूर्वोत्तर भारत में सक्रिय कई उग्रवादी समूहों, जैसे उल्फा, को बांग्लादेश में शरण मिली हुई थी | यह इतिहास अब इस संभावना से और भी जटिल हो गया है कि हसीना को लंबे समय से समर्थन देने के कारण भारत को बांग्लादेशी जनता की ओर से कुछ नाराज़गी का सामना करना पड़ सकता है। यूनुस ने स्वयं इस बात को स्वीकार किया है | ‘द इकोनॉमिस्ट’ के लिए लिखे गए एक लेख में यूनुस ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा है कि हसीना को समर्थन देने के कारण भारत ने “बांग्लादेशी लोगों की दुश्मनी अर्जित की है”।
भारत और आगे की कठिन राह
क्योंकि नई दिल्ली ने बांग्लादेश से प्रस्थान के तुरंत बाद हसीना को भारत आने का अवसर प्रदान किया, यह अत्यंत आवश्यक है कि वह अपने रणनीतिक हितों की अवहेलना किए बिना नए राजनीतिक परिदृश्य को सावधानीपूर्वक अपनाए। इस दिशा में भारत को अंतरिम सरकार के साथ संबंध बनाने तथा उसका विश्वास जीतने के लिए काम करना होगा | साथ ही, समग्र राजनीतिक परिदृश्य पर कड़ी नज़र रखनी होगी।
संभवतः भारत को इस बात पर भी तत्काल निर्णय लेने की आवश्यकता है कि वह बांग्लादेश सीमा पर संभावित शरणार्थी संकट से किस प्रकार से निपटना चाहेगा। विरोध प्रदर्शनों के मध्य में, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बांग्लादेश से आए शरणार्थियों और प्रवासियों को शरण देने की पेशकश की थी, लेकिन, यह आभास लगाया गया था कि इस उदार शरणार्थी नीति के चलते, भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में प्रतिरोध की भावना उत्पन्न होगी |
साथ ही, चूंकि बांग्लादेश में हिंदू संपत्तियों और प्रतिष्ठानों पर हमलों की खबरें, तेज़ गति से सुर्ख़ियाँ बटोर रही थी, इसलिए हिंदू शरणार्थियों को प्रवेश न देने से मोदी सरकार की छवि को नुकसान पहुँचने की भी आशंका थी | इस परिस्थिति में, नई दिल्ली मुश्किल में पड़ गई है। संभावित शरणार्थी संकट को रोकने के लिए, भारत सरकार को अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के साथ द्विपक्षीय संवाद करना चाहिए |
इसके अलावा, भारत को बांग्लादेश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और संस्थाओं को मज़बूत करने की वकालत करनी चाहिए। भारत को विपक्षी ताकतों के गठबंधन के विकास के लिए उपलब्ध राजनयिक प्रणालियों का उपयोग करना चाहिए, तथा ध्यानपूर्वक, इस गठबंधन में उदारवादियों, तकनीकतंत्रवादियों (technocrats) और रूढ़िवादी गुटों को भी सम्मिलित कर, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे भारत के हितों के प्रति, द्वेष की भावना उजागर नहीं करेंगे | भारत को प्रतीकात्मक रूप से हसीना से दूरी बनानी चाहिए ताकि यह दिखाया जा सके कि भारत आगे बढ़ने हेतु तत्पर है और केवल हसीना की पार्टी अवामी लीग का सहयोगी नहीं है, बल्कि समस्त बांग्लादेश का सहयोगी है |
बांग्लादेश में मौजूदा संकट भारत के लिए गंभीर रणनीतिक चुनौतियों पेश कर रहा है जिसका सामना भारत को आने वाला समय में करना होगा — जिसमें सीमा सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक व्यवधान आदि प्रमुख हैं |इसी कारण, भारत को सतर्क रहना होगा और बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य में आने वाले परिवर्तनों के अनुकूल ढलने के लिए उद्यत रहना होगा |
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Image 1: Former-Prime Minister Hasina via Flickr
Image 2: Muhammad Yunus via Wikimedia Commons