क्षेत्र में कनेक्टिविटी और सुरक्षा क्षमताओं को बढ़ाने से ले कर पुरानी नीति संरचनाओं को छोड़ कर पड़ोस में रोब जताने वाले को जवाब देने तक, २०१७ में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की देखरेख में भारत ने अपनी घरेलू और विदेशी राजनीति को अधिक आत्मनिर्भर बनाया और एक मुखर दृष्टिकोण अपनाया। और यह अपेक्षा करने का पर्याप्त कारण है कि यही प्रवृत्ति २०१८ में भी जारी रहेगी क्योंकि २०१९ के चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपनी शक्ति को मजबूत करना चाहे गी।
डोकलाम गतिरोध
पिछले वर्ष की घटनाओं पर विचार करें तो डोकालम घटना सूची में शीर्ष पर आती है। ७३ दिनों के इस सैन्य गतिरोध, जिसमें भारत चीन के विरुद्ध खड़ा रहा, ने यह आशंका पैदा की कि दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले, परमाणु हथियारों से लैस पड़ोसी युद्ध की कगार पर खड़े हैं। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद कई दशकों से शांतिपूर्वक चला आ रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में आक्रामक सीमा घुसपैठ शांति की इस प्रवृत्ति के लिए खतरा बन गया है। अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि इस घुसपैठ की वजह से दोनों पक्ष विवाद को हल करने की कोशिश करेंगे या नहीं, लेकिन अभी के लिए तो यह घटना उनके रिश्तों की चुनौतियों से जुड़ गई है।
इस बार तो कूटनीति के माध्यम से गतिरोध का समाधान हो गया, लेकिन फिर भी चिंता करने के पर्याप्त कारण हैं कि इस तरह के विवाद क्षेत्रीय स्थिरता को बाधित कर सकते हैं। १ दिसंबर को, चीनी सेना ने संकेत दिया कि वह डोकलाम क्षेत्र से अपने सैनिकों को वापस नहीं बुलाएगी, जैसा कि सर्दियों के कठोर महीनों के दौरान होता रहा है, बल्कि सेना की एक बड़ी उपस्थिति बनाए रखेगी। वर्तमान में, भारत को सामरिक सैन्य लाभ हासिल है– उसकी डोकला पोस्ट वास्तविक गतिरोध क्षेत्र पर अपनी नज़र बनाए हुए है। पर चीन ने इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बनाई हुई है, जो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली ज़मीन के पास है, और इस स्थिति में नई दिल्ली के लिए आत्मसंतुष्ट होना भारी पड़ सकता है।
इस संकट का प्रभाव भारत और चीन के बीच चल रही सीमावर्ती वार्ताओं पर निश्चित रूप से तो पड़ेगा ही, पर उसकी क्षेत्रीय सुरक्षा प्रदाता बनने की क्षमताओं की परीक्षा भी लेगा। तकनीकी रूप से तो डोकलाम का विवाद भूटान और चीन के बीच है, भूटानी संप्रभुता की रक्षा के लिए भारत ने हस्तक्षेप किया था। अभी के लिए, क्या भारत चीन के प्रति संतुलन बना सकता है या बनाएगा , यह एक खुला प्रश्न है। लेकिन इस संदर्भ में, भारत-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता लाने के लिए भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के बीच सुरक्षा गठबंधन के दशकों पुराने विचार को पुनर्जीवित करने के हालिया प्रयास महत्वपूर्ण और दिलचस्प है।
क्वाड और भारत
२००७ के बाद से क्वाड पर पहली आधिकारिक स्तर की चर्चा नवंबर में मनीला में दक्षिण पूर्व एशिया राष्ट्र संघ (आसियान) और पूर्वी एशिया के शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी। और हालांकि समूह अभी भी अपरिपक्व अवस्था में, यह देखने योग्य है कि भारत, अमेरिका, और जापान के बीच मालाबार नौसैनिक अभ्यास बड़ा होता जा रहा है और साल गुजरने के साथ साथ अधिक जटिल भी होता जा रहा है। बेशक, भारत ने यह स्पष्ट किया है कि यह समूह किसी एक देश को ध्यान में रख के नहीं बनाया गया है, लेकिन क्वाड बैठक में दिल्ली की भागीदारी से अधिक आत्मविश्वास और मुखर विदेश नीति की दृष्टि का संकेत मिलता है, और यह भी कि भारत अपने मित्र देशों के साथ अधिक निकटता से काम करने की इच्छा रखता है, जिसमें पुराने (जापान) और नए मित्र (अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया) दोनों शामिल हैं। विशेष रूप से, यह ट्रम्प के नेत्रित में अमेरिका की एशिया नीति के साथ अच्छी तरह से मेल खाता है, जिसमें भारत-प्रशांत और दक्षिण एशिया में भारत के लिए व्यापक भूमिका की परिकल्पना की गई है। इस बीच, पाकिस्तान के बाहर से हो कर जाने वाले दो नए भारत-अफगानिस्तान व्यापार मार्गों के उद्घाटन से पता चलता है कि भू-राजनीतिक पहेली के कई टुकड़े कैसे एक साथ मिल रहे हैं।
भारत-इजरायल संबंध
भारत का मुखर और आत्मविश्वास से भरपूर विदेश नीति दृष्टिकोण मोदी की जुलाई में इजरायल यात्रा से भी स्पष्ट है, जो कि एक भारतीय प्रधान मंत्री द्वारा यहूदी राज्य की पहली आधिकारिक यात्रा थी। १९९२ में भारत और इजरायल के बीच कूटनीतिक संबंध स्थापित होने के बाद से संबंधों में काफी वृद्धि हुई है, पर मोदी के पहले भारत इस साझेदारी की पूर्ण क्षमता को स्वीकार करने के लिए अनिच्छुक था इस डर से कि कहीं इससे अरब देश नाराज़ न हो जाएँ। पर २०१४ से, मोदी सरकार ने इन पुरानी नीति संरचनाओं को रद्द करने की कोशिश की है: भारत ने इजरायल और अरब राज्य नीतियों को अलग अलग रखा है, और भारत-इजरायल द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के लिए जो कुछ कर सकता था किया है, रक्षा, कृषि और और जल टेक्नोलॉजी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में साझेदारी बढ़ा कर।
कश्मीर
कश्मीर में राज्य के पुनर्जीवित उग्रवाद-विरोधी अभियान “ऑपरेशन ऑल आउट” ने १९ नवंबर तक लगभग २०० उग्रवादियों को मार गिराया। सेना ने कहा है कि सर्दी के मौसम में उसके प्रयासों में कोई कमी नहीं होगी। क्योंकि यह एक निरंतर ऑपरेशन है, इसलिए इतनी जल्दी राजनीतिक स्तर पर इसके प्रभाव का आकलन करना गलत होगा। उदाहरण के लिए, अक्टूबर में, केंद्र सरकार ने इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के पूर्व डायरेक्टर दिनेश शर्मा को जम्मू-कश्मीर में भारत के वार्ताकार के रूप में नियुक्त किया, लेकिन उन्होंने अभी तक अपने पूर्ववर्तियों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन नहीं किया है।
पर ऐसा लगता है कि २०१६ कि अशांति के बाद, जो कि आतंकवादी नेता बुरहान वाणी की हत्या के बाद २०१७ में भी जारी रही, सरकार चीजों को बदलने में सक्षम रही है। दक्षिण कश्मीर में हिंदु तीर्थयात्रियों पर लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी हमला के बाद, जो २०१७ में नागरिकों पर एकमात्र बड़ा हमला था, सरकार पर दबाव था। जुलाई के हमले ने ऑपरेशन ऑल आऊट को हवा दी, और तब से यह आतंकवाद-विरोधी आपरेशन जारी है। अपेक्षित तौर पर, पुलिस और सैन्य पदों पर भी जवाबी हमले हुए हैं, लेकिन अभी तक सरकार का ही पलड़ा भरी लग रहा है।
आर्थिक सुधार
इस वर्ष मोदी के मुखर नीति निर्माण का दूसरा उदाहरण वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) रहा। आजादी के बाद से, देश में यह सबसे बड़ा कर सुधार है। यह भारत की दो ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था को जोड़ता है और उसे प्रभावी रूप से एक बाजार में रूपांतरित करता है। यह सहकारी संघवाद के लिए एक बड़ी जीत है पर इस कर सुधार में लगभग दो दशक लग गए और अभी भी इसमें कमियाँ हैं। शायद यही उम्मीद की जा सकती थी, पर यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मोदी प्रशासन सुधार जारी रखती है, खासकर जब वह अपने पांच साल के कार्यकाल के आखिरी चरण में प्रवेश कर रही है, और सभी राजनैतिक दल अगले साल होने वाले चुनाव के लिए तैयार हो रहे हैं।
राज्य चुनाव और भाजपा
इस संदर्भ में, २०१७ के राज्य चुनाव, जो कि यकीनन सत्तारूढ़ दल के मध्य-अवधि का आकलन हैं, कुछ अहम जानकारी प्रदान करते हैं। वर्ष के पहले भाग में पांच राज्यों, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर, में चुनाव हुए। पंजाब में कांग्रेस ने एक दुर्लभ जीत हासिल की, जबकि भाजपा ने उत्तर प्रदेश जीता और अन्य सभी राज्यों में भी सरकार बनाने में कामयाब रही। दिसंबर में भाजपा ने दो चुनावी जीत हासिल कीं, एक हिमाचल प्रदेश में जो कि एक कांग्रेस-भाजपा युद्धभूमि राज्य है और दूसरी गुजरात में, जो कि भाजपा का गढ़ है। साल के दौरान, भारतीय इलेक्टोरल कॉलेज ने भाजपा नेता रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति और वेंकैया नायडू को उपराष्ट्रपति बनाया। भाजपा ने राज्य सभा में भी अपनी ताकत बढ़ाई, जहां पहली बार वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। २०१८ के मध्य से, उसे बहुमत हासिल होगी, और इससे किसी भी कानून के आसानी से पारित होने की संभावना है।
सत्तारूढ़ गठबंधन राज्य के सभी स्तरों पर शक्ति को मजबूत कर रहा है और नए साल में संतोष के साथ प्रवेश करेगा। पर क्या सुधार, उत्पादन, और विकास की गति को वह कायम रख पाएगा, यह देखना बाकी है।
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