
8 अप्रैल, 2025 को म्यांमार की सैन्य सरकार, जिसे तत्मादाव भी कहा जाता है, ने इस वर्ष दिसंबर के दूसरे पखवाड़े और अगले वर्ष जनवरी के पहले पखवाड़े तक बहुदलीय चुनाव कराने की अपनी योजना की पुनः पुष्टि की| राजनैतिक दलों को 9 मई तक अपने पंजीकरण आवेदन दाखिल करने के लिए कहा गया।
इस घोषणा के बावजूद, म्यांमार अभी भी लोकतंत्रीकरण से दूर है। फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट के ज़रिए 2020 के आम चुनाव के नतीजों को रद्द करने के बाद से, सैन्य जुंटा की राज्य प्रशासनिक परिषद (एसएसी) ने म्यांमार के साथ राजनयिक संबंध बनाए रखने वाले अंतरराष्ट्रीय अभिनेताओं की तुष्टिकरण हेतु कई अवसरों पर चुनाव कराने का वादा किया है। हाल ही में आयोजित 2025 बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिम्सटेक) शिखर सम्मेलन के द्विपक्षीय बैठकों के दौरान भी यह वादा दोहराया गया। लेकिन साथ ही, सैन्य जुंटा ने देश में राजनीतिक विपक्षी समूहों को चुप कराने या उन्हें चुनावों से अयोग्य ठहराने के लिए कई कदम उठाए हैं। अगर म्यांमार अपने विद्यमान कानूनों और नियामक ढांचे के तहत चुनाव कराता है, तो उनके स्वतंत्र या निष्पक्ष होने की संभावना नहीं है और इससे केवल और अधिक रोष पैदा होने का जोखिम होगा। इस संबंध में, जबकि म्यांमार के पड़ोसी और रणनीतिक साझेदार चुनावों को देश में तीव्र गति से स्थिरता लाने के साधन के रूप में देख सकते हैं, उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि वे एक दोषपूर्ण चुनावी प्रक्रिया का समर्थन न करें और इस तरह सैन्य जुंटा को अवांछित वैधता प्रदान न करें।
स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने का घोषित संकल्प
म्यांमार के संविधान के अनुसार, आपातकाल समाप्त होने के छह माह के पश्चात्, चुनाव कराना अनिवार्य है। 2021 के तख्तापलट के बाद, सैन्य जुंटा ने आपातकाल की स्थिति में शासन किया है, जिसे चल रहे गृहयुद्ध के उत्तर में बारम्बार विस्तारित किया गया है। आपातकालीन नियम का नवीनतम विस्तार जनवरी 2025 में किया गया तथा यह जुलाई में समाप्त होने वाला है। 2008 के संविधान के अनुसार, जब आपातकालीन शासन समाप्त हो जाता है, तो सत्ता राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा परिषद (एनडीएससी) के पास वापस आ जानी चाहिए और उसके उपरांत चुनाव करवाए जाने चाहिए |
2011 में गठित एनडीएससी का उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों का पर्यवेक्षण करना था, जो सैन्य शासन से अर्ध-नागरिक सरकार में परिवर्तनकाल का प्रतीक था। 2008 के संविधान के अनुच्छेद 201 के अनुसार, परिषद में 11 सदस्य होते हैं—छह सैन्य या सेना द्वारा नामित अधिकारी और पाँच सामान्य नागरिक—जिससे प्रभावी रूप से इस परिषद पर सेना का नियंत्रण हो जाता है। तख्तापलट के उपरांत, उप राष्ट्रपति म्यिंट स्वे—एक पूर्व सैन्य अधिकारी और मुख्य सैन्य समर्थक दल के सदस्य—म्यांमार के कार्यवाहक राष्ट्रपति बनने के कारण इसके अध्यक्ष के रूप में उन्होंने कार्य किया। हालाँकि, जुलाई 2024 में, म्यांमार के सेना प्रमुख और जुंटा के एसएसी के अध्यक्ष, मिन आंग ह्लाइंग ने यह पद ग्रहण किया, जिससे उन्हें आपातकाल की अवधि को आगे बढ़ाने और अपनी इच्छानुसार कानून में संशोधन करने का अधिकार मिल गया।
अगर म्यांमार अपने विद्यमान कानूनों और नियामक ढांचे के तहत चुनाव कराता है, तो उनके स्वतंत्र या निष्पक्ष होने की संभावना नहीं है और इससे केवल और अधिक रोष पैदा होने का जोखिम होगा।
समेकित सैन्य अधिकार की इस पृष्ठभूमि में, आपातकालीन शासन को आगे बढ़ाने के बजाय चुनाव कराने का जुंटा का निर्णय रणनीतिक कारकों से प्रेरित प्रतीत होता है। युद्ध की रणभूमि में सेना की असफलताओं और चुनौतियों को देखते हुए, छह महीने का और आपातकालीन शासन अंतरराष्ट्रीय आलोचना को तीव्रता प्रदान करता है, और संभावित रूप से प्रतिरोध बलों को एकजुट कर सकता है। जुंटा शासन को उम्मीद है कि वह चुनावों को लोकतांत्रिक परिवर्तन की दिशा में एक कदम के रूप में प्रस्तुत कर सकेगा और इस तरह अंतर्राष्ट्रीय दबाव और आलोचना को कम कर पाएगा| इस उद्देश्य से, मिन आंग ह्लाइंग ने विदेशी नेताओं के साथ चर्चा में “स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव” का वादा किया है। इसके अतिरिक्त, जुंटा को उम्मीद है कि चुनावों का उपयोग विद्रोही ताकतों के बीच आंतरिक मतभेदों का लाभ उठाने के लिए किया जाएगा, ताकि छोटे नृजातीय दलों को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

अनुचित खेल का मैदान
अपने नववर्ष के संदेश में, मिन आंग ह्लाइंग ने नागरिकों से जुंटा द्वारा नियोजित चुनावों का समर्थन करने का आह्वान किया, तथा इन चुनावों को देश के बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली में परिवर्तन का भागीदार बताया। एसएसी ने पारंपरिक काग़ज़ी मतदान-पेटी के स्थान पर चुनावी मतदान यंत्र लगाने की योजना की घोषणा की है। इसके अतिरिक्त, मिन आंग ह्लाइंग ने राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय संसदों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली प्रारम्भ करने का वादा किया है, जिसमें नृजातीय समूहों और समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधियों को सम्मिलित किया जाएगा ।
इन वादों के बावजूद, तत्मादाव के हालिया कदमों ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की संभावना को कमज़ोर कर दिया है। सैन्य सरकार ने कई दलों को चुनाव में भाग लेने के अयोग्य ठहराने हेतु राजनीतिक दल पंजीकरण कानून में सुधार किया है। उदाहरण के लिए, जनवरी 2023 में, सैन्य सरकार ने नए संशोधन पेश किए, जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय चुनाव लड़ने वाले दलों को पंजीकरण के तीन महीने के भीतर 100 मिलियन क्यात (लगभग 45,000 अमेरिकी डॉलर) का वित्तपोषण प्राप्त करना होगा, और इन दलों को चुनाव लड़ने के लिए कम से कम 100,000 सदस्य चाहिए होंगे – जो 2020 के चुनावों के दौरान निर्धारित स्तर से 100 गुना अधिक है। ये प्रतिबंध तत्मादाव के प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों और सीमित संसाधनों वाले क्षेत्रीय नृजातीय दलों को अयोग्य घोषित कर देंगे। म्यांमार के चुनावी निकाय, यूनियन इलेक्शन कमीशन (यूईसी) ने 2020 के चुनावों में भाग लेने वाले 90 दलों में से 40 को पहले ही भंग कर दिया है—जिसमें नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) भी शामिल है, जिसने उन चुनावों में विजय प्राप्त की थी – या तो इन आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहने या नए कानून के तहत पंजीकरण करने से इनकार करने के लिए। नए कानून के अंतर्गत नृजातीय राजनीतिक दलों, जैसे अराकान नेशनल पार्टी और डेमोक्रेसी एंड ह्यूमन राइट्स पार्टी पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। दूसरी ओर, नए कानून के तहत पंजीकृत और आगामी चुनावों में भाग लेने की अनुमति प्राप्त 63 पार्टियों में से कई का तत्मादाव के साथ संबंध है। इन कार्यवाहियों से ज्ञात होता है कि तख्तापलट के उपरांत म्यांमार में लोकतांत्रिक सिद्धांतों का किस हद तक क्षरण हुआ है।
युद्धग्रस्त देश में चुनाव कराने में आने वाली सुप्रचालन तंत्र संबंधी कठिनाइयों के साथ-साथ नए कानूनी प्रतिबंध भी लागू किए गए हैं। चुनाव कराने के लिए प्रारंभिक कदम के रूप में, जुंटा ने पिछले साल देश भर में जनगणना कराई थी। लेकिन चूंकि तत्मादाव म्यांमार के 50 प्रतिशत से भी कम क्षेत्र पर नियंत्रण रखता है, इसलिए जनगणना में देश भर के 330 टाउनशिप में से केवल 145 को ही सम्मिलित किया गया। प्रतिरोध बलों द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों में, नागरिकों ने चुनाव अधिकारियों के साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया। इन चुनौतियों से निपटने के लिए, मिन आंग ह्लाइंग ने सेना द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों में चुनावी कार्यवाही प्रारम्भ करने का वादा किया है।
पड़ोसियों को सैन्य जुंटा को वैधता प्रदान नहीं करनी चाहिए
विपक्षी दलों के लिए सीमित स्थान और नियोजित चुनावों में उनकी सीमित भागीदारी के बावजूद, चुनाव फिर भी करवाए जा सकते हैं। म्यांमार में विपक्षी दलों की भागीदारी के बिना भी चुनाव आयोजित करने का इतिहास रहा है—हाल ही में, 2010 में ऐसा हुआ था| यह जुंटा की अंतरराष्ट्रीय आलोचना का मुक़ाबला करने और चुनावी मान्यता के माध्यम से अपने शासन के लिए वैधता प्राप्त करने की मंशा से उपजा है। म्यांमार के पड़ोसी देश—विशेष रूप से भारत, चीन और थाईलैंड—2021 के तख्तापलट के बाद उत्पन्न राजनीतिक संकट का समाधान करने का आग्रह कर रहे हैं। ऑपरेशन 1027 के उपरांत, अक्टूबर 2023 में प्रारम्भ किया गया वह विद्रोही जवाबी हमला जिसने सीमा पार अस्थिरता को और बढ़ा दिया, यह आह्वान और भी आवश्यक हो गया है। जुंटा ने अब नियोजित चुनावों को राजनीतिक समाधान के मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया है।
जब सैनिक शासकों ने आंशिक रूप से अपनी विद्यमान कूटनीतिक भागीदारी को बनाए रखने हेतु प्रथम बार चुनावों का प्रस्ताव रखा था, तो पड़ोसी देशों ने विभिन्न स्तरों पर समर्थन व्यक्त किया था, जिनमें से प्रत्येक ने अपने-अपने रणनीतिक हितों के मध्यनजर पक्ष रखा। चीन ने “सर्व समावेशी चुनाव” के लिए समर्थन की पेशकश की है, क्योंकि वह सेना को स्थिरता की मुख्य गारंटर और म्यांमार में अपने आर्थिक हितों के रक्षक के रूप में देखता है। भारत ने हस्तक्षेप न करने की अपनी नीति पर कायम रहते हुए “म्यांमार के स्वामित्व वाले” और “म्यांमार के नेतृत्व वाले” लोकतांत्रिक परिवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया है। थाईलैंड ने खुद को दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) के ढांचे के साथ जोड़ लिया है और तदनुसार सभी घरेलू हितधारकों को शामिल करने के महत्त्व पर बल दिया है| बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने सैन्य जुंटा की चुनाव योजना का समर्थन या विरोध करने वाला कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। महत्तवपूर्ण बात यह है कि सभी पड़ोसी इस स्थिति को म्यांमार का आंतरिक मुद्दा मानते हैं और जबकि वे जुंटा को समाधान के लिए प्रोत्साहित करते हैं, वे सीधे हस्तक्षेप करने के लिए अनिच्छुक हैं।
सभी हितधारकों को, ख़ासकर म्यांमार के पड़ोसियों को, नियोजित चुनावों के लिए किसी भी तरह का समर्थन देते समय सावधानी बरतनी चाहिए। अनुचित और प्रतिबंधित चुनाव केवल अधिक अराजकता को जन्म देंगे और म्यांमार के लोगों में और अधिक आक्रोश की स्थिति उत्पन्न होगी|
इस प्रकार का उदासीन दृष्टिकोण म्यांमार में संकट के स्थायी और शांतिपूर्ण समाधान के उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकेगा। ऐसे समय में जब तत्मादाव विद्रोही ताकतों के हाथों विलुप्त हुए क्षेत्र को पुनः प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहा है, ऐसे में, आधिकारिक बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान एसएसी अध्यक्ष को गले लगाने से ग़लत संदेश जाने का ख़तरा बढ़ा है| सभी हितधारकों को, ख़ासकर म्यांमार के पड़ोसियों को, नियोजित चुनावों के लिए किसी भी तरह का समर्थन देते समय सावधानी बरतनी चाहिए। अनुचित और प्रतिबंधित चुनाव केवल अधिक अराजकता को जन्म देंगे और म्यांमार के लोगों में और अधिक आक्रोश की स्थिति उत्पन्न होगी|
अब तक, जुंटा लोगों को यह भरोसा दिलाने में विफल रहा है कि वह वास्तविक सुलह प्रक्रिया के लिए प्रतिबद्ध है। उदाहरण के लिए, देश में आए विनाशकारी 7.7 तीव्रता के भूकंप के कुछ ही दिनों के पश्चात् सेना ने घातक हवाई हमले प्रारम्भ कर दिए। इन परिस्थितियों में, वैश्विक अभिनेताओं को—जो अभी भी सैन्य शासन के साथ कूटनीतिक रूप से जुड़े हुए हैं, विशेष रूप से भारत, चीन, थाईलैंड और बांग्लादेश—सैन्य शासन की वैधता की कमी को स्वीकार करना चाहिए और चुनावों के अस्तित्व के बजाय चुनावों की प्रकृति और कार्यप्रणाली पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
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This article is a translation. Click here to read the original in English.
Image 1: USDP in 2020 via Wikimedia Commons
Image 2: Min Aung Hlaing via Getty