ARSA

रोहिंग्या मुसलमानों पर म्यांमार की हालिया सैन्य कार्रवाई के कारण पड़ोसी देश बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों का बड़ा पलायन हुआ है। इसजातीय सफाई” के लिए म्यांमार सरकार को संयुक्त राष्ट्र की ओर से गंभीर निंदा का सामना भी करना पड़ा है।

शरणार्थियों की आवाजाही की वजह से यह मुद्दा भारत तक फैल गया है, और हिंदुस्तान में रह रहे  लगभग ४०००० रोहिंग्या शरणार्थियों के प्रति नीति फिर चर्चा में है। रोहिंग्या को निर्वासित करने की अपनी नीति के बचाव में भारतीय सरकार ने हाल ही में उच्चतम न्यायालय में एक गुप्त वर्गीकृत शपथ पत्र जमा किया। इसमें, उसने पाकिस्तान में आधारित आतंकवादी समूहों और इस्लामी राज्य (आईएस) से कथित संबंधों के कारण रोहिंग्या द्वारा खतरे का खुलासा किया। पर इन दावों को अगर गहराई से देखा जाए तो पता चलता है कि भारत में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ कोई निर्णायक प्रमाण नहीं है।

भारत में रोहिंग्या आतंकवाद के खतरे का आकलन

रोहिंग्या के बारे में भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) का संदेह पश्चिम बंगाल में २०१४ के बर्दवान विस्फोट के कारण हो सकता है, जिसमें अन्य लोगों के साथ एक म्यांमार नागरिक मोहम्मद खालिद को गिरफ्तार किया गया था। खालिद रोहिंग्या है, जिसने कबूल किया था की उसकी ट्रेनिंग तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान द्वारा हुई और एनआईए का आरोप है कि उसका संबंध जमात-उल-मुजाहिदीन जैसे बांग्लादेशी आतंकवादी संगठनों से  भी है। तब से, देश में रोहिंग्या शिविरों की कड़ी जांच हो रही है। रोहिंग्या और भारत को निशाना बनाने वाले पाकिस्तान आधारित आतंकवादी समूहों के बीच संबंधों के बारे में भी चिंताएं हैं। उदाहरण के लिए, अराकन रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (एआरएसए) का नेता अताउल्लाह अबू अम्मार कराची में पला बढ़ा है और २०१२ में उसने देश लौटकर लश्कर-ए-तैयबा जैसे समूहों को हथियारों, कर्मियों, और सामरिक समर्थन के लिए लाखों नकद  दिए लेकिन इन समूहों ने अम्मार को अप्रासंगिक बताते हुए उसे कोई सहायता नहीं दी।

नई दिल्ली विशेष रूप से पश्चिम बंगाल के बारे में चिंतित है, जिसकी बांग्लादेश के साथ २००० किलोमीटर लंबी सीमा है, जिसमें से अधिकांश की निगरानी करना मुश्किल है। बांग्लादेश के साथ अन्य राज्य भी सीमा बांटते हैं लेकिन उनमें से अधिकांश की फेंसिंग करने में भारत पिछले कुछ वर्षों में कामयाब रहा है। रोहिंग्या शरणार्थियों के बारे में यह भी रिपोर्ट है कि उन्हों ने भारत-बांग्लादेश सीमा पार कर ली है और वह नकली प्रमाण पत्र बनवा रहे हैं। बांग्लादेश में घरेलू आतंकवाद पर कार्रवाई से भागने वालों की मौजूदगी के साथ साथ इस घटना ने संदेह के लिए और भी सामान उपलब्ध कराया है। २०१४ के बाद से गिरफ्तारी की कोई रिपोर्ट नहीं आई है, पर इसका अर्थ यह हुआ कि खतरा तो है लेकिन काफी कम।

भारत में जगह बनाने में वैश्विक संगठनों को कठिनाईयों

रोहिंग्या मुद्दे  ने आईएस का ध्यान आकर्षित किया है– २०१४ में आईएस ने राखिन राज्य को “जिहाद के लिए प्रमुख क्षेत्र” घोषित किया था। पर आईएस लंबे समय से भारत में अपने इरादों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है, और २०१४ से केवल १०० भारतीय को ही आकर्षित कर सका है जो यात्रा करके सीरिया और अफगानिस्तान पहुंचे हैं। ५० हज़ार माओवादी गौरिल्ला लड़ाकू की तुलना में यह संख्या काफी कम है।

रोहिंगिया की भर्ती में कमी का एक संभावित कारण यह हो सकता है कि आईएस आतंकवादि विशेष रूप से शिक्षित और शहरी पृष्ठभूमि से आते हैं। इसके कारण आईएस के लिए भारत में रह रहे रोहिंगिया को निशाना बनाना मुश्किल हो जाता है, जो कि मुख्य रूप से शरणार्थी शिविरों में रहते हैं और बुनियादी सुविधाओं के लिए भी उनको घर बदलना पड़ता है। टेक्नोलॉजी और इन्टरनेट, जो कि आईएस भर्ती का मुख्य तरीका है, उस तक रोहिंगिया नहीं पहुँच सकते। इन लोगों की भर्ती का एकमात्र तरीका उनसे सीधा संपर्क करना है और यह भारत में आईएस समर्थकों की अनुपस्थिति के कारण एक मुश्किल संभावना है। इन चुनौतियों को देखते हुए, भारतीय भूमि पर आईएस से प्रेरित रोहंग्या-आक्रामक हमलों की संभावना बहुत ही कम है।

दूसरी तरफ, अलकायदा ने अपने एक बांग्लादेश मूल के ब्रिटिश नागरिक कार्यकर्ता समि उर रहमान, जिसको २०१४ में बांग्लादेश में रोहिंग्या की भर्ती के लिए जेल में रखा गया था, के माध्यम से अधिक प्रभावी रणनीति तैयार कर ली है। २०१७ में, रहमान ने कथित तौर पर भारत में शरणार्थियों की सूची बना कर म्यांमार में लड़ने के लिए भेजने का प्रयास किया था लेकिन यह प्रयास कामयाब नहीं हुआ और रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया। ये हलचल १२ सितंबर को अल-क़ायदा के क्षेत्रीय सहयोगी, भारतीय उपमहाद्वीप आधारित अल-क़ायदा (एक्यूआईएस) द्वारा जारी किए गए हमले की घोषणा का पर्दर्शन हैं। इस घोषणा में, एक्यूआईएस ने विशेष रूप से “बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान और फिलीपींस में सभी मुजाहिद लड़ाकों को अपने मुस्लिम भाइयों की मदद करने के लिए बर्मा चलने का आवाहन किया था।” हालांकि, आईएस की तरह, भारत में एक्यूआईएस की कमज़ोर उपस्थिति के कारण उसकी पर्याप्त कार्रवाई करने की क्षमता सीमित है।

भारत के रोहिंगया का आतंकवादियों से कोई वास्तविक नाता नहीं

भारत में रोहंगिया आबादी तक पहुंने में असफलता और भारतीय खुफिया एजेंसियों द्वारा शरणार्थी शिविरों की निरंतर निगरानी के अलावा, वैश्विक जिहादी समूहों को एक और कठिनाई का सामना करना पड़ता है: एआरएसए को विश्व स्तर पर अपनी विश्वसनीयता खोने का डर है और वह जिहादी समूह नहीं बनना चाहता और इसलिए उसने अलकायदा और आईएसआईएस जैसे अपराधी समूहों से मदद खारिज की है।

हालांकि  तुलनात्मक  निष्क्रियता के रिकॉर्ड का मतलब पूर्ण सुरक्षा नहीं होता, लेकिन रोहंग्या आतंकवाद के खतरे को ज़रूर अनुपात से अधिक बढ़ाया चढ़ाया गया है। शायद भारत में रोहंगिया हिंसा के न होने का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि इस तरह के संबंधों को उजागर करने में अति सतर्क मीडिया विफल रही है। देश में पांच साल की उपस्थिति के दौरान  १५ छोटे अपराध के मामलों को छोड़कर रोहंग्या द्वारा की गई कोई महत्वपूर्ण घटना मीडिया ने दर्ज नहीं की है। रोहिंग्या को सुरक्षा के लिए खतरा बताने पर सरकार का जोर अपने कट्टर समर्थकों को खुश करने और अपनी हिंदुत्ववादी पार्टी का आभास बनाए रखने का एक तरीका हो सकता है। हालांकि, एक नैतिक अंतरराष्ट्रीय छवि को बनाए रखने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि भारत रोहंग्या खतरे को सनसनीखेज ना  बनाए।

Editor’s Note: To read this article in English, please click here.

***

Image 1: Andrew Mercer via Flickr

Image 2: Parveen Negi/India Today via Getty Images

Share this:  

Related articles

مودی بائیڈن مذاکرات ۲۰۲۳: جنوبی ایشیا کے لیے اہم نکات Hindi & Urdu

مودی بائیڈن مذاکرات ۲۰۲۳: جنوبی ایشیا کے لیے اہم نکات

جون میں بھارتی وزیراعظم نریندر مودی امریکہ کے پہلے سرکاری…

چین جنوبی ایشیا میں: سی پیک اور انڈوپیسفک پاک چین تعاون کا جزوِ لازم Hindi & Urdu
چین جنوبی ایشیا میں: بعد از امریکی انخلاء، چین افغانستان تعلقات کا ارتقاء Hindi & Urdu

چین جنوبی ایشیا میں: بعد از امریکی انخلاء، چین افغانستان تعلقات کا ارتقاء

تعارف کابل سے عجلت میں ہونے والے امریکی انخلاء کے…