२०१६ भारत के लिए एक ऐसा साल रहा जिसमे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई रुख मोड़ देने वाली घटनाएँ हुईं। नरेंद्र मोदी की सरकार आतंकवाद के मुद्दे को लेकर व्यस्त रही, जिस वजह से पाकिस्तान के प्रति नीतियों में आक्रामक बदलाव आया। जबकि विदेश नीति के मुद्दे पर अमरीकी संबंधों में ठोस प्रगति हुई, जो चीन को चिंतित करने के लिए काफी था। देश निरंतर परिवर्तन की स्थिति में है और सरकार के सामने कई ऐसे राजनीतिक-आर्थिक मुद्दे हैं जिन पर नए साल में मोदी सरकार को ध्यान देना होगा। इन चुनौतियों का प्रभाव विदेश नीति पर भी संभव है।
आतंकी घटनाएँ
२०१६ में पाकिस्तान से जुड़े हुए कई आतंकी हमले हुए जिन्होंने मोदी और भारत की विदेश नीति के लिए विपरीत परिस्थितियाँ पैदा कीं। दिसंबर २०१५ में, एक साहसिक कदम लेते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने नवाज़ शरीफ से मिलने के लिये पाकिस्तान की यात्रा की। इस नई पहल के फ़ौरन बाद पठानकोट हमला हो गया जिसने साल के अंत में इस यात्रा से बनी सद्भावना को प्रभावहीन कर दिया। इस घटना की जांच करने के लिए भारत ने पाकिस्तान को अनुमति तो दी लेकिन इससे द्विपक्षीय संबंधों की स्थिति में कोई सुधर न हुआ। पठानकोट हमले के बाद नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल) पर गोलीबारी और हताहत होने के साथ-साथ उच्चस्तरीय हिंसा भी जारी रही, और फिर हुआ 18 सितम्बर का उरी हमला। दो दशक में किसी भी कश्मीर हमले की तुलना में इस हमले में सब से अधिक सैनिक हताहत हुए।
ये साल पाकिस्तान के प्रति मोदी के दृष्टिकोण में परिवर्तन का साल भी रहा। भारत ने कूटनीतिक और सैन्य शक्ति का प्रयोग करके पाकिस्तान की उप-पारंपरिक आक्रामकता का जवाब दिया। भारत ने न सिर्फ “सर्जिकल स्ट्राइक” के द्वारा पाकिस्तान को दो तुक जवाब दिया बल्कि सार्वजनिक रूप से इसका प्रचार भी किया। इस कार्रवाई ने न ही पाकिस्तान को प्रतिष्ठात्मक और सैनी रूप से नुकसान पहुँचाया, बल्कि उसकी रेड लाइन्स का भी परीक्षण किया। भारतीय प्रतिक्रिया केवल सैन्य हमले तक सीमित नहीं रही बल्कि भारत ने राजनयिक स्तर पर सभी अंतर्राष्ट्रीय मंचों जैसे हार्ट आफ एशिया सम्मेलन, बिम्सटेक, और ब्राजील रूस भारत चीन दक्षिण-अफ्रीका (ब्रिक्स) गठबंधन पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कोशिश की। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) शिखर सम्मेलन का रद्द होना भी इसका उदाहरण है। उप-परंपरागत हिंसा की समाप्ति पर मजबूर करने के उद्देश्य से पाकिस्तान पर और दबाव डालने लिए भारत ने लंबे समय से चली आ रही सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को स्वतंत्र रूप से ख़त्म करने की धमकी दी। २०१६ में दो अलग-अलग भाषणों में प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान के दो नाजुक मुद्दों, बलूचिस्तान और सिंधु जल संधि, को छेड़ा। उम्मीद की जा सकती है कि २०१७ में भारत इन महत्वपूर्ण मुद्दों को उठा कर पाकिस्तान पर दबाव डाल पाएगा।
अमेरिका–चीन–भारत त्रिकोण
पिछले वर्ष, अमेरिका और भारत के संबंधों में लगातार मजबूती तथा दूसरी ओर चीन-भारत संबंधों में गिरावट स्पष्ट दिखाई दी। भारत और अमेरिका ने लेमोआ (LEMOA) पर हस्ताक्षर किया, जबकि अमरीकी कांग्रेस ने राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकार अधिनियम (एन डी ए ए ) २०१७ पास किया जो भारत को “प्रमुख रक्षा साथी” का दर्जा प्रदान करता है तथा प्रभावपूर्ण ढंग से भविष्य की सभी अमरीकी सरकारों को बाध्य करता है कि वे भारत को “प्रमुख रक्षा साथी” मानें। दूसरी ओर, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता का चीनी विरोध, ब्रिक्स मंच में पाकिस्तान का निरंतर बचाव और यूनाइटेड नेशनस मे जैश-ए-मोहम्मद के मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने के मामले में उसके “तकनीकी होलड” ने भारत को परेशान रखा। इन घटनाओं के कारण भारत की अमेरिका और चीन के बीच शक्ति-संतुलन लाने वाली ताक़त बनने की इच्छा मे बदलाव आना निश्चित है।
Today’s announcements will give greater strength to fight corruption, black money, terror & counterfeit currency. #IndiaFightsCorruption pic.twitter.com/TwxHL0YlL9
— Narendra Modi (@narendramodi) November 8, 2016
मुख्य घरेलू घटनाएँ
साल के अंत में मोदी ने वितीय दृष्टि से काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से उच्च मूल्य की मुद्राओं के विमुद्रीकरण की घोषणा की। इस कदम का उद्देश्य जनता की प्रशंसा और समर्थन जुटाना और आने वाले विधानसभा चुनावों में लाभ हासिल करना था। हालांकि, लिक्विडिटी की कमी और कैश की भयानक आवश्यकता ने बैंकिंग प्रणाली द्वारा सभी तैयारियों को अपर्याप्त साबित कर दिया। आम जनता को हुई असुविधा और अर्थव्यवस्था पर पड़े अल्पकालिक प्रभाव के कारण मोदी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नकारात्मक प्रचार और नाकामी ने प्रधानमंत्री के खिलाफ विपक्ष को एकजुट कर दिया है। इससे भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। असफल अर्थव्यवस्था के साथ-साथ ख़राब चुनावी परिणाम शासन को धर्म आधारित राजनीति अपनाने पर मजबूर करे सकता है, जिससे नीति निर्माण तथा शासन के असली मुद्दों से जनता का ध्यान हट सके।
साल के अंत में आर्मी स्टाफ के एक नए चीफ लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत की नियुक्ती भी हुई। यह महत्वपूर्ण इस लिए भी है क्योंकि ऐसा बहुत कम हुआ है की शीर्ष पदों के लिए वरिष्ठता के सिद्धांत को नज़र अंदाज़ किया गया है और रावत अपने आतंकवाद विरोधी अनुभव के लिए जाने जाते हैं। भारत ने अग्नि ५ मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया, जिसकी रेंज ५००० किलोमीटर से अधिक है। इस नवीनतम परीक्षण ने इस मिसाइल को सर्विस में शामिल कर दिया है और चीन के खिलाफ़ भारत की परमाणु प्रतिरोधक क्षमता को और विश्वसनीय कर दिया है।
निष्कर्ष
२०१६ में हुई विदेश नीति, सुरक्षा तथा आर्थिक घटनाओं का २०१७ पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल है। फिर भी, चुनावी प्रदर्शन के संबंध में, या नियमित रूप से सरकार चलाने की क्षमता में बाधा डालने के संबंध में,अगर इसका घरेलू स्तर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, तो इससे विदेश नीति और क्षेत्रीय सुरक्षा भी प्रभावित होगी। और इस कारणवर्ष पाकिस्तान को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। चीन के विपरीत, पाकिस्तान के प्रति नीति कही अधिक भावनात्मक मुद्दा है जिसका इस्तेमाल राजनीतिक स्वार्थों के लिए कई राजनीतिक दलों और संगठनों द्वारा किया जाता है। इसकी संभावना प्रबल है कि राजनीतिक लाभ पाने के लिए घरेलू स्तर पर जो राष्ट्रवादी बयानबाजी की जाती है वह कार्रवाई विदेश नीति को परोक्ष और अपरोक्ष रूप से प्रभावित करे। २०१७ में, परिस्थितियाँ अमेरिका-भारत संबंधों के लिए अनुकूल रहेंगी, और यह वर्ष २०१६ के पथ पर ही चलेगा। इसका सीधा असर भारत-चीन संबंधों पर पड़ेगा जो स्वाभाविक रूप से संघर्ष उन्मुखी होते जा रही हैं।
Editor’s note: To read this article in English, click here.
***
Image 1: Prime Minister’s Office (India)
Image 2: @narendramodi, Twitter