Osama bin Laden sits with his adviser and purported successor Ayman al-Zawahiri during an interview in Afghanistan, Barack Obama
Osama bin Laden (L) sits with his adviser and purported successor Ayman al-Zawahiri, an Egyptian linked to the al Qaeda network, during an interview with Pakistani journalist Hamid Mir (not pictured) in an image supplied by the respected Dawn newspaper November 10, 2001. Al Qaedas elusive leader Osama bin Laden was killed in a mansion outside the Pakistani capital Islamabad, U.S. President Barack Obama said on May 1, 2011. REUTERS/Hamid Mir/Editor/Ausaf Newspaper for Daily Dawn (AFGHANISTAN – Tags: POLITICS CONFLICT IMAGES OF THE DAY). (Foto: HO/Scanpix 2011)

जहाँ इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया ( या दाएश) इराक में ज़मीन खो रहा है और सीरिया में सिमटता जा रहा है, वहीं अफगानिस्तान और दक्षिण-पूर्व एशिया में खुद को फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रहा है । इस बात का प्रमाण उसके फिलीपींस में प्रयास और ढाका , बांग्लादेश के एक रेस्टोरेंट में २० बंधकों की मौत हैं, जिसमें ज्यादातर विदेशि थे। हालांकि, यह दाएश के पूर्ववर्ती अलकायदा के लिए भी महत्वपूर्ण समय है, जो अपनी नई शाखा अलकायदा इन इंडियन सबकौंटीनेंट (एक्यूआईएस) के माध्यम से दक्षिण एशिया में अपनी उपस्थिति को मज़बूत करने का प्रयास कर रहा है। विशेष रूप से, अलकायदा और एक्यूआईएस ने खुद को दाएश की तुलना मे उदार विकल्प के रूप मे पेश करने के लिए एक आकर्षक कहानी तैयार की है।

जैसे ही दाएश का प्रभाव मध्य पूर्व में घटा, एक्यूआईएस ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति स्थापित कर ली। अलकायदा  ने अपने सहयोगी संगठनों के माध्यम से व्यापक और  वैश्विक पहुंच बना ली है, और अलकायदा के केंद्रीय नेतृत्व से एक्यूआईएस को मिल रहे सीधे मार्गदर्शन को देखते हुए, इस क्षेत्र पर एक्यूआईएस के संभावित प्रभाव के बारे में चिंता करना लाज़मी है। जवाब में, दक्षिण एशिया के सरकारों को दो स्तरों पर आतंकवाद को कम करने का प्रयास करना चाहिए। पहला, राज्यों को समाज के सभी वर्गों के आर्थिक अवसरों के लिए प्रयास करना चाहिए। दूसरा, राज्यों को आतंकवाद विरोधी उपायों पर एक दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए।  हालांकि यहां भारत सरकार के लिए सिफारिशों की पेशकश की जा रही है, लेकिन इसका पूरे क्षेत्र में पारस्परिक रूप से लाभकारी प्रभाव  होगा।

एक्यूआईएस से खतरा

अलकायदा की स्थापना १९८८ में पाकिस्तान में हुई थी पर माना जाता है की मई २०११ में ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद वह गायब हो गया। सितंबर २०१४ में, अलकायदा के वर्तमान नेता अयमान अल जवाहिरी  ने एक्यूआईएस की स्थापना की घोषणा की, और एलान किया कि नई शाखा भारत, म्यांमार, और बांग्लादेश में “कमज़ोरों” की रक्षा करेगी। कुछ हफ्ते बाद, एक्यूआईएस ने भारतीय और अमेरिकी नौसेना के जहाजों को निशाना बनाने के लिए पाकिस्तानी जहाजों पर क़ब्ज़ा करने की साजिश रची और एक प्रभावशाली स्तर की महत्वाकांक्षा और परिष्कार का प्रदर्शन किया।

२०१४  के बाद से, एक्यूआईएस ने बांग्लादेश में कई हमलों की ज़िम्मेदारी भी ली। यह हमले अलकायदा के हिस्बा शैली के हमलों से मेल खाते हैं जिसमें धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगर्स और राजनेताओं, एलजीबीटी समुदाय, और सूफी तीर्थस्थानों को निशाना बनाया जाता है। पुरे क्षेत्र में इन घटनाओं को देखते हुए, एक्यूआईएस की लोगों को भर्ती करने और संसाधन उत्पन्न करने की क्षमता को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।

अपनी वर्तमान अभिव्यक्ति में, अलकायदा और एक्यूआईएस वास्तव में अपने सापेक्ष संयम के कारण समर्थकों को दाएश की तुलना में ज्यादा आकर्षित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, अलकायदा ने निर्दोष मुसलमानों, महिलाओं, बच्चों और निहत्थे कमजोर वर्गों की हत्या में दाएश की क्रूरता की रणनीति की निंदा की है। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, एक्यूआईएस नास्तिकों, गैरमुसलमानों और इस्लाम के आलोचकों को निशाना बनाने के लिए हिस्बा शैली के हमलों का इस्तेमाल करता है। इससे यह बात समझी जा सकती है कि यह शरीया लॉ को आगे बढ़ाने और एक्यूआईएस को इस क्षेत्र के मुसलमानों के बीच और अधिक स्वीकार्य संस्था बनाने का प्रयास है।

दक्षिण एशिया में इस संकटग्रस्त प्रक्षेपवक्र के बावजूद, उम्मीद की जा सकती है कि दक्षिण एशिया में एक्यूआईएस ठोस पकड़ नहीं बना पायेगा। विशेष रूप से, भारत मे विविधता का एक समृद्ध इतिहास है जहां हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, पारसी, सिख, ईसाई और यहूदी सभ मिलकर रहते हैं। नतीजतन, भारत में मुसलमानों के बीच सांप्रदायिकता उस स्तर पर नहीं पहुंची है जैसा मध्य पूर्व में सुन्नी और शिया समुदायों के बीच है।

इंडोनेशिया जैसे कई मुख्य रूप से मुस्लिम देशों ने इराक और सीरिया के लिए समान संख्या में विदेशी सैनिक नहीं भेजे हैं। वैकल्पिक रूप से, राजनीतिक वैज्ञानिक और अन्य समीक्षकों के अनुसार ट्यूनीशिया और सऊदी अरब जैसे देशों में भर्ती दरों की वृद्धि के विभिन्न कारण हैं, जिसमें राजनीतिक दमन, आंतरिक अस्थिरता और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभाव शामिल हैं। हालांकि, भारत १७.७ करोड़ मुसलमानों की आबादी वाला एक अपेक्षाकृत बहुलवादी समाज है। और भले ही हाल में भारत में मुस्लिम समुदाय के प्रति भेदभाव और हिंसा में चिंताजनक बढ़ौतरी हुई हो, उसके बावजूद मुसलमान उग्रवाद के कम शिकार होंगे। उग्रवाद पर यह प्रतिरोध तब देखा गया जब २०१५ मे भारत में लगभग ७०,००० मौलवियों ने दाएश, तालिबान और अलकायदा के खिलाफ एक साथ फतवा दिया।

इन सकारात्मक संकेतकों के बावजूद, दक्षिण एशिया में एक्यूआईएस का संभावित प्रभाव चिंताजनक है। पिछले महीने, अलकायदा ने कश्मीर में ज़किर मुसा को अपना नेता घोषित किया और यह पहली बार है कि एक अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी समूह ने औपचारिक रूप से कश्मीर में अपनी उपस्थिति की घोषणा की है। कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच वर्तमान तनाव को देखते हुए कम उम्मीद की जा सकती है कि एक्यूआईएस से निपटने के लिए संयुक्त प्रतिक्रिया विकसित करने में दोनों देश एक दूसरे पर भरोसा करेंगे। इसी तरह, भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव की घटनाओं का लाभ हिंसक उग्रवादी और आतंकवादी समूह उठा सकते हैं क्योंकि उनको युवा सिपाहियों की तलाश है। भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि कश्मीर मुद्दे को हल करने के लिए कश्मीरियों को गले लगाने की आवश्यकता है। इससे यह संकेत मिलता है कि बातचीत पर अब नया केंद्र बिंदु होगा, लेकिन भविष्य में हालात कैसे विकसित होते है यह कह नहीं जा सकता।

एक्यूआईएस का मुकाबला : क्षेत्रीय सहयोग और आर्थिक अवसर

दक्षिण एशिया की सरकारों को एक्यूआईएस के खतरे से अपनी लोकतांत्रिकताओं की सुरक्षा के लिए कदम उठाने की जरूरत है। भारत  के लिए सुझाव यह है कि वह इस समस्या से कुछ इस तरह निपटे जिससे अन्य दक्षिण एशियाई देशों को परस्पर लाभ हो सके।

भारत को अफगानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और जहां तक ​​संभव हो, पाकिस्तान के साथ जिहादी भर्ती का विरोध करने के लिए आतंकवाद विरोधी प्रयासों, इंटेललेजेन्स साझाकरण , और सोशल मीडिया की निगरानी के संबंध में अपनी साझेदारी को मजबूत करना चाहिए। यह पहल बहुपक्षीय संगठनों, जैसे दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन, या द्विपक्षीय संवाद के माध्यम से हो सकते हैं। ऐसी साझेदारी एक्यूआईएस की गतिविधियों को बाधित कर सकती है और स्थानीय मुस्लिम आबादी के भीतर लोकप्रियता हासिल करने से पहले  उसकी गति को रोक सकती है। दोनों आंतरिक और बहुपक्षीय रूपों से, २००२ के बाली बम विस्फोटों के बाद इंडोनेशिया के “डी रैडिकलाइज़ेशन प्रोग्राम” के संदर्भ में तैयार किए गए प्रयासों को लागू करने में भारत को समर्थन और सहयोग करना चाहिए। अंत में, आतंकवाद के प्रति एक सक्रिय दृष्टिकोण के साथ साथ समाज के सभी क्षेत्रों में समान आर्थिक अवसर प्रदान करना होगा ।  दक्षिण एशियाई सरकारों को  सांप्रदायिक भेदभाव को हल करने के साथ साथ समान अवसरों की बाधाओं को भी दूर करने का प्रयास करना होगा, क्योंकि यह आर्थिक रूप से कमज़ोर युवाओं के कट्टरपंथी बनने का रास्ता हैं।

एक साथ यह सारे कदम अलकायदा और एक्यूआईएस की गतिविधि को सीमित और उसके संभावित समर्थकों के गढ़ को कम कर सकते हैं और असंतुष्ट मुसलमानों को समाज से वापस जोड़ सकते हैं।

Editor’s note: To read this article in English, please click here.

***

Image 1: Hamid Mir via Wikimedia Commons

Image 2: Kashmir Global via Flickr

Share this:  

Related articles

पर्वतों से समुद्री तटों तक: गलवान के पश्चात् भारत-चीन प्रतिस्पर्धा Hindi & Urdu
جنوبی ایشیا میں بائیڈن کے ورثہ کا جائزہ Hindi & Urdu

جنوبی ایشیا میں بائیڈن کے ورثہ کا جائزہ

ریاستہائے متحدہ امریکہ ، 20 ویں صدی کے وسط سے…

سی پیک کو بچانے کے لیے، پاکستان کی چین پالیسی میں اصلاح کی ضرورت ہے Hindi & Urdu

سی پیک کو بچانے کے لیے، پاکستان کی چین پالیسی میں اصلاح کی ضرورت ہے

پاکستان کے وزیر اعظم شہباز شریف رواں ماہ کے اوائل میں صدر شی جن پنگ اور دیگر اعلیٰ چینی حکام سے ملاقاتوں کے بعد تقریباََ خالی ہاتھ وطن واپس پہنچ گئے ہیں۔ چین نے واضح انضباطِ اوقات ( ٹائم لائن) کے تحت پاکستان میں بڑے منصوبوں کے لئے سرمایہ کاری کا وعدہ نہیں کیا۔ اس […]