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हाल की भारतीय पहल, जैसे कि जनवरी 2025 में विदेश सचिव विक्रम मिस्री की तालिबान शासन के विदेश मंत्री के साथ बैठक और नई दिल्ली द्वारा अफ़ग़ान दूतावास का नेतृत्व करने के लिए तालिबान प्रतिनिधि को संभावित रूप से स्वीकार करने के समाचारों ने, काबुल के संबंध में भारत के उद्देश्यों, वर्तमान दृष्टिकोण और भविष्य की दिशाओं के बारे में कई उत्सुकताओं को जन्म दिया है| लेकिन पिछले दो दशकों में अफ़ग़ानिस्तान के साथ भारत की सहभागिता को देखते हुए, इन कार्यों को उसकी पिछली पहलों की निरंतरता के रूप में देखा जा सकता है, जो अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण के साथ-साथ नई दिल्ली के अपने हितों को सुरक्षित करने पर केंद्रित रहे हैं।

अफ़ग़ानिस्तान में भारत के रणनीतिक लक्ष्य

यद्यपि ऐतिहासिक रूप से यह भारत के अफ़ग़ानिस्तान के साथ सभ्यतागत और सांस्कृतिक संबंध सहभागिता को निर्धारित करते हैं, पर हाल के वर्षों में भारत के सामरिक और सुरक्षा उद्देश्य काबुल के साथ उसके संबंधों के लिए महत्त्वपूर्ण चालक रहे हैं। मध्य एशिया के साथ संपर्क नेटवर्क का विस्तार करने की भारत की उत्सुकता, तथा पाकिस्तान से जुड़े भारतविरोधी समूहों को अफ़ग़ान धरती पर समर्थन मिलने के पिछले अनुभव से उत्पन्न गहरी सुरक्षा चिंताएँ अफगानिस्तान में उसकी उपस्थिति को प्रेरित करने वाले महत्त्वपूर्ण कारक रहे हैं। यह कारक स्पष्ट करते है कि तालिबान 2.0 के साथ भारत का वर्तमान जुड़ाव, 1990 के दशक में उसकी तालिबान के प्रतिरुख के बिल्कुल विपरीत है, जब तालिबान के कब्ज़े के उपरांत, भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के साथ अपने संबंधों को पूरी तरह से समाप्त करने का विकल्प चुना था।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अफ़ग़ानिस्तान के साथ भारत की सहभागिता को दो चरणों में समझा जा सकता है| संबंधों का पहला चरण 2001 के बाद शुरू हुआ, जब संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में अल-कायदा को ध्वस्त कर दिया गया और तालिबान को सत्ता से हटा दिया गया, जिसके उपरांत, अफ़ग़ानिस्तान में निर्वाचित सरकार की स्थापना की गई। 2001 के बाद, भारत- अफ़ग़ानिस्तान संबंध सरकारी आदान-प्रदान तक सीमित न होकर, प्रबल लोगों-के-लोगों से संपर्क के द्वारा अधिक व्यापक द्विपक्षीय संबंध में परिवर्तित हो गए| भारत की सहभागीदारी का केंद्र विकास परियोजनाएँ – जिसमें जलविद्युत, स्वास्थ्य, शिक्षा और मानवीय सहायता थी | इस अवधि के दौरान अफ़ग़ानिस्तान को भारत ने करीब 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आर्थिक सहायता प्रदान की है एवं  विकास सहायता के अंतर्गत 500 से अधिक परियोजनाएँ समिल्लित हैं, जो अफ़ग़ानी लोगों के जीवन को उल्लेखनीय रूप से प्रभावित करती है। भारत ने सचेतता से अफ़ग़ानिस्तान में सैन्य हस्तक्षेप करने से प्रविरत रहा है, तथा अपना ध्यान बुनियादी ढांचे, कौशल विकास और क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों पर केंद्रित किया है, जिससे नई दिल्ली को अपार सद्भावना और ‘सॉफ्ट पावर’ प्राप्त हुआ है। यद्यपि, भारत दोहा वार्ता में तालिबान के रुख को देखते हुए अफगानिस्तान में अपने भविष्य के राजनीतिक कदमों के बारे में अनिश्चित था—फिर भी, भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में लोकतंत्र का समर्थन करने के अपने सैद्धांतिक रुख को क़ायम रखा है तथा हमेशा निर्वाचित सरकार के साथ खड़ा रहा।

अफ़ग़ानिस्तान-भारत संबंधों की स्थिति का दूसरा चरण अगस्त 2021 के उपरांत प्रारम्भ हुआ, जब अमेरिकी सैनिकों की आनन-फानन में वापसी हुई और अफ़ग़ान बलों की अप्रत्याशित रूप से त्वरित पराजय हुई| प्रारम्भ में, पाकिस्तान समर्थक तालिबान से आक्रामक रुख की संभावनाओं के मध्यनजर  भारत ने अफ़गानिस्तान में अपने वाणिज्य दूतावासों को बंद करने का विकल्प चुना और भारतीय नागरिकों की सुरक्षित वापसी को प्राथमिकता दी। परंतु, भारत तालिबान की स्थिति से आशंकित होते हुए भी  नई दिल्ली ने अतीत से सीख को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र (दक्षिण एवं मध्य एशिया) में अपनी सुरक्षा और रणनीतिक हितों की रक्षा करने के लिए सजग था | 1990 के दशक में तालिबान के साथ भारत के संबंधों की स्थिति ने अफ़गानिस्तान की धरती पर भारत विरोधी समूहों की गतिविधियों पर नज़र रखने की उसकी क्षमता को कम कर दिया था। जबकि काबुल के साथ बीस वर्षों के गहन जुड़ाव ने भारत को अफ़ग़ानिस्तान में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने, क्षेत्र में ‘कनेक्टिविटी’ विकल्पों में विविधता लाने और अपनी सुरक्षा को बेहतर ढंग से बनाए रखने का मौका प्रदान किया| नई दिल्ली ने यह भी माना कि तालिबान 2.0 अपने 1990 के दशक के अवतार की तुलना में अधिक संगठित और स्वतंत्र है और अफ़ग़ानिस्तान में इसकी अधिक वैधता और कम विरोध है। इसलिए, जब गणतंत्र सरकार तीव्रता से विघटित हो गई और अफ़ग़ान सुरक्षा बलों ने अपनी ज़मीन खो दी, तो नई दिल्ली को यह एहसास हुआ कि तालिबान 2.0 अफ़ग़ानिस्तान में नया यथार्थ है| भारत के उच्च-स्तरीय आवश्यक हितों के मधनज़र, नई दिल्ली ने अफ़ग़ानिस्तान में उत्पन्न चुनौतियों का प्रबंधन करने के लिए तालिबान के साथ  वार्तालाप प्रारम्भ करने की संभावनाओं पर समझदारी भरा क़दम उठाया|

जब गणतंत्र सरकार तीव्रता से विघटित हो गई और अफ़ग़ान सुरक्षा बलों ने अपनी ज़मीन खो दी, तो नई दिल्ली को यह एहसास हुआ कि तालिबान 2.0 अफ़ग़ानिस्तान में नया यथार्थ है| भारत के उच्च-स्तरीय आवश्यक हितों के मधनज़र, नई दिल्ली ने अफ़ग़ानिस्तान में उत्पन्न चुनौतियों का प्रबंधन करने के लिए तालिबान के साथ  वार्तालाप प्रारम्भ करने की संभावनाओं पर समझदारी भरा क़दम उठाया|

काबुल की राह

भारत ने अफ़ग़ानिस्तान से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने हेतु क्षेत्रीय दृष्टिकोण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को सुनिश्चित करने के लिए  बहुपक्षीय प्रयास प्रारम्भ किए| नवंबर 2021 में, नई दिल्ली ने अफ़ग़ानिस्तान में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के तरीकों पर विचार-विमर्श करने हेतु एक क्षेत्रीय सुरक्षा सम्मेलन की मेज़बानी की, हालाँकि, चीन और पाकिस्तान दोनों ने इस सम्मेलन में भाग लेने से मना कर दिया| भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने दिसंबर 2022 में और उसके उपरांत अक्टूबर 2023 में मध्य एशिया के अपने क्षेत्रीय समकक्षों के साथ एक विशेष बैठक का आयोजन भी किया, इन दोनों बैठकों में अफ़ग़ानिस्तान एक प्रमुख मुद्ददा था। भारत ने मार्च 2023 में अफ़गानिस्तान पर पहले भारत-मध्य एशिया संयुक्त कार्य समूह की मेज़बानी की, जिससे क्षेत्रीय देशों को अपने पड़ोसी देश में सुरक्षा स्थिति और भविष्य की दिशाओं पर चर्चा करने का अवसर प्राप्त हुआ| भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफ़ग़ान लोगों के लिए 20,000 मीट्रिक टन गेहूँ  के वितरण के लिए संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम के साथ भी साझेदारी की, जबकि पाकिस्तान काबुल को भारत की मानवीय सहायता पहुँचाने में अनिच्छुक रहा।

इसके समानांतर, द्विपक्षीय स्तर पर, लगभग नौ महीने के सतर्क विराम के बाद, भारत ने जून 2022 में काबुल में अपना दूतावास पुनः खोलने और अफ़ग़ानिस्तान को सहायता आपूर्ति प्रदान करने हेतु पहला कदम भी उठाया| इस निर्णय को लेने में चार कारक महत्वपूर्ण थे। पहला, भारत अफ़ग़ानिस्तान में मानवीय संकट को लेकर बहुत चिंतित था और अफ़ग़ान लोगों की सुरक्षा के प्रति पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध था। दूसरा, भारत अपने पिछले विकास प्रयासों को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहता था। तीसरा, भारत के प्रति तालिबान का “खुलापन” स्पष्ट होने लगा, क्योंकि तालिबान ने भारत विरोधी कोई भी बयान देने से परहेज़ किया था| चौथा, नई दिल्ली ने यह आभास किया कि तालिबान की जड़ें मज़बूत हैं और भारत के लिए अफ़ग़ानिस्तान तक पहुँचने का रास्ता तालिबान के माध्यम से ही होगा|

अंत:, काबुल स्थित दूतावास  में एक तकनीकी मिशन स्थापित किया जो मानवीय सहायता के वितरण की देखरेख करेगा, जिसमे गेहूँ , चिकित्सा सहायता और भूकंप राहत सहायता शामिल है। तब से, भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में अपने समर्थन में सतत वृद्धि की है| नई दिल्ली ने नशीली दवाओं और अपराध संबंधित मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के साथ साझेदारी की ताकि नशे में लिप्त अफ़ग़ान लोगों को सहायता प्रदान की जा सके, और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद छात्रवृत्ति योजना के माध्यम से अफ़ग़ान छात्रों के लिए छात्रवृत्ति जारी रखी| दिलचस्प बात यह है कि यह योजना अफ़ग़ानिस्तान में रहने वाले अधिकांश छात्रों तक भी पहुँच पाई, जिसमें महिला छात्राओं को प्राथमिकता दी गई।

ऐसे क़यास लगाए जा रहे हैं कि भारत की अफ़ग़ानिस्तान नीति पाकिस्तान के तालिबान के साथ बिगड़ते संबंधों के कारण प्रफुलित हो रही है। अब से पहले तक, तालिबान को ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तानी सेना का संरक्षण प्राप्त रहा है, जिसके कारण तालिबान-भारत संबंधों का निर्धारण हुआ है| पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान में गणतंत्र सरकार की पराजय और काबुल में तालिबान के क़ब्ज़े को अपनी रणनीतिक विजय के रूप में देखा था| हालाँकि, डूरंड रेखा पर तालिबान की अडिगता, अफ़गानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर तारबंदी करने का घोर विरोध और पाकिस्तान के विरुद्ध तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) की कार्रवाइयों को रोकने की स्पष्ट अनिच्छा ने पाकिस्तान की अपेक्षाओं पर पानी फेर दिया, जिससे द्विपक्षीय संबंधों में तनाव बढ़ रहा है। पाकिस्तान के साथ बढ़ती तनाव को देखते हुए, तालिबान नए गठबंधन की खोज कर रहा है, इस दिशा में तालिबान  भारत को एक प्रबल अर्थव्यवस्था वाले विश्वसनीय और सतत साझेदार के रूप में देखता है| हालांकि, इस्लामाबाद के साथ तालिबान का बढ़ता तनाव भारत-तालिबान जुड़ाव का चालक नहीं है, परंतु मौजूदा हालात नि:संदेह विश्वास बढ़ाने और भारत- अफ़ग़ानिस्तान के बीच अधिक सकारात्मक संबंध बनाने में सहायक है।

भविष्य की दिशा और विचारणीय प्रश्न

ऐसा प्रतीत होता है कि नई दिल्ली छोटे कदम उठाएगी और अगले कुछ वर्षों में अफ़ग़ानिस्तान में भारत की भूमिका में धीमा विस्तार होगा, जिसमें सबसे पहले कुछ विकास परियोजनाओं का पुनर्जीवीकरण सम्मिलित है| परन्तु, ऐसा लगता है कि नई दिल्ली की अफ़ग़ान नीति अफ़ग़ानिस्तान के आंतरिक घटनाक्रमों तथा इस पर क्षेत्रीय प्रतिक्रियाओं के साथ उभर रही है, इसलिए, अभी भारत की दीर्घकालिक रणनीति के बारे में केवल सीमित आंकलन ही किया जा सकता है। हालांकि, तालिबान को औपचारिक मान्यता दिए बिना, भारत की सहभागीदारी सीमित रहेगी।

भारत ने अब तक अफ़ग़ानिस्तान में मध्यमार्गीय रूख अपनाया है – काबुल में अपनी उपस्थिति बरकरार रखना तथा औपचारिक मान्यता दिए बिना तालिबान के साथ मिलकर अपने हितों की रक्षा करना। अफगानिस्तान को मान्यता देने के मामले में भारत का मत अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ संरेखित है, लेकिन इसकी वर्तमान सहभागीदारी का उद्देश्य अफ़ग़ान नागरिकों का कल्याण, सतर्कता से अपने  सुरक्षा हितों को रक्षित करना, रणनीतिक उद्देश्यों को पोषित करना, एवं क्षेत्रीय स्थिरता को पाना है। हालाँकि, तालिबान के प्रति नई दिल्ली का आगामी रुख इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या तालिबान भारतीय चिंताओं को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध हो सकता है या नहीं।

भारत का अफ़ग़ानिस्तान के प्रति उभरता रूख अपनी पड़ोस प्रथम नीति के अनुरूप है, जो उसके रणनीतिक और सुरक्षा हितों के मध्यनज़र क्षेत्र में स्थिरता को प्राथमिकता देता है। इसके अनुसार, भारत को तालिबान की आवश्यकता यह सुनिश्चित  करने के लिए होगी कि अफ़ग़ान भूमि का उपयोग भारत विरोधी आतंकवादी गुटों द्वारा न किया जाए। 1999 में इंडियन एयरलाइंस की उड़ान संख्या आई सी-814 के अपहरण से मिली सीख को भारतीय नीति निर्माता नज़रंदाज़ नहीं कर सकते। इसके अतिरिक्त, अफ़ग़ानिस्तान और अस्थिर अफ़गानिस्तान-पाकिस्तान सीमा से उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियाँ क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर जोखिमों को पैदा कर सकती हैं| संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट (2024) के अनुसार, “अफ़ग़ानिस्तान से उत्पन्न आतंकवाद अधिकांश परिदृश्यों में इस क्षेत्र और उससे भी आगे असुरक्षा का कारण बनेगा” और “अल-कायदा से जुड़े संगठनों और टीटीपी के बीच अधिक सहयोग टीटीपी को ‘विस्तृत क्षेत्र के खतरे’ में परिवर्तित कर सकता है।” इसके साथ ही, इस्लामिक स्टेट-खोरासान प्रोविंस (आईएसकेपी) का बढ़ता ख़तरा नई दिल्ली की नींद उड़ा रहा है। यद्यपि, भारत द्वारा हाल में की गई पहलों से यह संकेत मिलता है कि वह टीटीपी गतिविधियों के प्रसार और आईएसकेपी चुनौती को उजागर करने के लिए एक क्षेत्रीय दृष्टिकोण अपनाएगा तथा आतंकवाद-निरोध के लिए क्षेत्रीय सहयोग की मांग करेगा, इन प्रयासों में, भारत तालिबान को क्षेत्रीय सुरक्षा का दायित्व लेने के लिए ज़ोर देगा।

भारत ने अब तक अफ़ग़ानिस्तान में मध्यमार्गीय रूख अपनाया है—काबुल में अपनी उपस्थिति बरकरार रखना तथा औपचारिक मान्यता दिए बिना तालिबान के साथ मिलकर अपने हितों की रक्षा करना।[…] लेकिन तालिबान के प्रति नई दिल्ली का आगामी रुख इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या तालिबान भारतीय चिंताओं को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध हो सकता है या नहीं।

आज, तालिबान ने अफ़गानिस्तान में सत्ता पर एकाधिकार कर लिया है और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में सफल रहा है, जिसे वे अपनी सबसे बड़ी ताकत मानते हैं। हालाँकि उन्होंने विकसित शासन के लक्षणों का अनुकरण करने, आर्थिक सुधार के संकेत देने और अफ़ग़ान नागरिकों और क्षेत्रीय हितधारकों को सुरक्षा आश्वासन प्रदान करने के कड़े प्रयास किए हैं, पर तालिबान ने समावेशी सरकार और लड़कियों की शिक्षा के मुद्दों पर कोई नरमी नहीं दिखाई है। इसलिए, भारत-तालिबान सहभागिता के भविष्य में इस कट्टरता का आंकलन और मूल्यांकन करना होगा। भारत की अफ़ग़ान नीति चुनौतियों से मुक्त नहीं है – तालिबान की ऐतिहासिक और वैचारिक पृष्ठभूमि, उसकी की मान्यता के लिए बढ़ती महत्वाकांक्षाएँ और ग़ैर-राज्य कर्ताओं से उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियों इसकी मिसाल है| लेकिन, नई दिल्ली की उभरती कूटनीतिक स्थिति उसके आर्थिक लक्ष्यों और क्षेत्र में राजनीतिक स्थिरता की आवश्यकता के साथ-साथ उसके सुरक्षा हितों को सुनिश्चित करने की जरूरतों से आकार ले रही है, ये सब  भारत को साहसिक रणनीतिक विकल्प अपनाने के लिए मजबूर कर रहे है। दक्षिण एशिया क्षेत्र में भारतीय विदेश नीति ने संभावित जोखिमों को संतुलित करते हुए राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने का विकल्प चुना है, और भारत की अफ़ग़ानिस्तान नीति, इसमें अपवाद नहीं है।

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This article is a translation. Click here to read the original article in English.

Image 1: Randhir Jaiswal via X

Image 2: via Free Malaysia Today

Views expressed are the author’s own and do not necessarily reflect the positions of South Asian Voices, the Stimson Center, or our supporters.

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