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सितंबर 2024 में, गंभीर राष्ट्रीय आर्थिक संकट प्रारम्भ होने के दो वर्ष के उपरान्त, श्रीलंका में राष्ट्रपति के रूप में अनुरा कुमारा दिसानायके के चुनाव के साथ राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला| पारदर्शिता और सुशासन की कमी के कारण पिछली सरकारों के विरुद्ध अधिक सार्वजिक आलोचना हुई थी जिसने सामाजिक न्याय एवं सुधार की तसदीक़ करने वाले नव-वामपंथी राजनीतिक नेता दिसानायके के उदय का मार्ग प्रशस्त किया था। श्रीलंका की जनता की नज़र में यह परिवर्तन श्रीलंका में दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी या उदारवादी सरकारों के लगभग आठ दशक लंबे राजनीतिक वर्चस्व के बाद एक विराम का संकेत था।

क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक निश्चित रूप से घरेलू मोर्चे पर नव-निर्वाचित राष्ट्रपति के कदमों पर ध्यान केंद्रित करेंगे| विदेश नीति में, दिसानायके खुद को भारत और चीन के बीच अनिश्चितता से निपटने की कोशिश करते हुए पाते हैं। कोलंबो में पिछली सरकारों ने प्रमुख बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं पर चीन और भारत दोनों के साथ सहयोग किया, लेकिन इनमें से कुछ प्रयासों ने संप्रभुता और संसाधन प्रबंधन चिंताओं के आधार पर राष्ट्रवादी सार्वजनिक आक्रोश को जन्म दिया। इस वजह से, दिसानायके की सबसे बड़ी चुनौती उभरती भू-राजनीतिक वास्तविकताओं और सार्वजनिक भावना दोनों के प्रति संवेदनशील रहते हुए उन निर्णयों का पुनर्मूल्यांकन करना होगी।

पृष्ठभूमि

राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के पूर्व दिसानायके और उनकी राजनीतिक पार्टी, जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी), श्रीलंका में भारत के राजनीतिक प्रभाव के विरुद्ध दृढ़ता से खड़ी थी|

1980 और 1990 के दशक में श्रीलंका में भारतीय शांति सेना (आईपीकेएफ) की तैनाती और 13 वें संशोधन जैसे भारत-प्रेरित संवैधानिक सुधारों ने दिसानायके की वामपंथी पार्टी को उत्तेजित कर दिया था| तब से, कई मौकों पर, दिसानायके ने भारत विरोधी बयानबाज़ी का सहारा लिया है| उदाहरण के लिए, दिसानायके ने विपक्षी सांसद के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान भारत-श्रीलंका आर्थिक और तकनीकी सहयोग समझौते के विरुद्ध अभियान का स्वयं नेतृत्व किया था| इसी तरह,  2021 में, दिसानायके और उनके दल ने भारत के साथ ईस्ट कंटेनर टर्मिनल विकास सौदा करने के विरुद्ध विरोध, यह तर्क देते हुए किया कि यह श्रीलंका की संप्रभुता के लिए ख़तरा है।

इस संबंध में, दिसानायके की भारत पर पिछली बयानबाज़ी से ऐसा प्रतीत होता है कि वह एक समय पर नई दिल्ली को एक बड़े भाई के रूप में देखते थे, जो श्रीलंका की घरेलू राजनीति में सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करता था और श्रीलंका के संसाधनों का दोहन करना चाहता था। इसके विपरीत, जबकि दिसानायके हंबनटोटा बंदरगाह से जुड़े चीन के साथ एक विवादास्पद सौदे के विरूद्ध खड़े थे, उन्होंने बीजिंग के प्रति शत्रुतापूर्ण बयानबाज़ी में ज़्यादा हिस्सा नहीं लिया|

राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के कुछ माह पूर्व, हालांकि, दिसानायके ने भारत के प्रति अपना रुख नरम कर लिया था| 2024 के प्रारम्भ में, दिसानायके को नई दिल्ली से वार्तालाप करने का आमंत्रण मिला| यह आमंत्रण दिसानायके को इसलिए दिया गया था क्योंकि भारत ने अंदेशा लगा लिया था कि दिसानायके एक महत्वपूर्ण राजनेता के रूप में एक दिन कोलंबो में सत्ता प्राप्त कर सकते है| यात्रा के उपरांत, दिसानायके ने कहा था कि भारत में उनकी बातचीत लाभदायक रही थी और उनके राजनैतिक दल ने, भारत की चिंताओं, जिसमें उसकी सुरक्षा भी समिल्लित है, उसके प्रति सजगता प्रकट की थी|

दिसानायके की सबसे बड़ी चुनौती उभरती भू-राजनीतिक वास्तविकताओं और सार्वजनिक भावना दोनों के प्रति संवेदनशील रहते हुए उन निर्णयों का पुनर्मूल्यांकन करना होगी।

दिसानायके के चुनाव घोषणापत्र पर एक नज़र डालने से यह स्पष्ट हो जाता है कि दिसानायके श्रीलंका के विकास हेतु चीन और भारत जैसे प्रमुख साझेदारों के साथ किस प्रकार के कार्यों का निर्वहन करना चाहेंगे| घोषणापत्र में इस बात की पुष्टि की गई है कि श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति आर्थिक विकास सुनिश्चित करने में लाभदायक है| इस आधार पर यह भी कहा गया है कि श्रीलंका को “बाहरी कारकों और सत्तारूढ़ दलों के अस्तित्व के विकल्पों” से प्रभावित विदेश नीति अपनाने के बजाय राष्ट्रीय हित से प्रेरित “सम्मानजनक कूटनीति” का विस्तार करना चाहिए| इस संबंध में घोषणापत्र में हिंद महासागर में विदेशी सैन्य ठिकानों और सैन्य समझौतों की स्थापना का विरोध किया गया है। इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए, पिछले कुछ महीनों में दिसानायके की भारत और चीन के प्रति पहुँच का आंकलन करना और यह इसके अतिरिक्त यह भी आंकलन करना उपयोगी होगा कि नई दिल्ली और बीजिंग के प्रति कोलंबो का भविष्य में रुख कैसा रहेगा|

भारत के साथ संबंधों में नवीनतम स्वरुप और चीन के साथ संबंधों में संतुलन

राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के तुरंत बाद दिसानायके ने भारत की आधिकारिक यात्रा की, जहाँ उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों को प्रबल करने हेतु भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य अधिकारियों से मुलाक़ात की| इस यात्रा ने श्रीलंका की “पड़ोसी प्रथम” विदेश नीति और भारत को अपना निकटतम सहयोगी मानने की कोलंबो की दीर्घकालिक रणनीति की पुष्टि की। इस यात्रा ने कोलंबो और नई दिल्ली के आपसी हितों को सुरक्षित करने के लिए सहयोग करने के संकल्प को सुगम बनाया, जिसमें “स्वतंत्र, खुला, सुरक्षित और संरक्षित हिंद महासागर क्षेत्र” सुनिश्चित करना भी समिल्लित है| अधिक विशेष रूप से, संयुक्त वक्तव्य में ऊर्जा, बंदरगाहों और रक्षा में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया| श्रीलंका ने विभिन्न विकास परियोजनाओं में भारत से सहायता मांगी, जिसमें कांकेसंथुराई बंदरगाह का पुनर्विकास और अपने साझा समुद्री मार्गों के माध्यम से नशीली दवाओं/मानव तस्करी को समाप्त करने में सहायता करना समिल्लित है|  इस बीच, भारत ने श्रीलंका में सामपुर सौर ऊर्जा और अंतरराज्यीय विद्युत ग्रिड परियोजनाओं पर कार्य जारी रखने की अपनी इच्छा की पुष्टि की है — इसके परिणामस्वरूप कोलंबो की भविष्य की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए नई दिल्ली पर निर्भरता बढ़ सकती है।

क्षेत्रीय स्तर पर भी, दिसानायके हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में भारत की बढ़ती भूमिका और महत्वाकांक्षाओं का समर्थन करने के इच्छुक प्रतीत होते हैं। उदाहरण के लिए, उन्होंने कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन (सीएससी) को जारी रखने पर सहमति जताई, जो समुद्री सुरक्षा पर केंद्रित क्षेत्रीय आईओआर राज्यों का एक बहुपक्षीय समूह है। जबकि यह समूह तस्करी, अंतरराष्ट्रीय अपराध और आतंकवाद का मुकाबला करके कोलंबो की क्षेत्रीय सुरक्षा का समर्थन कर सकता है, इसे भारत द्वारा बीजिंग के नुकसान के लिए, आईओआर में खुद को “क्षेत्रीय सुरक्षा प्रदाता” के रूप में परिचय देने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है, जिससे चीन व्यथित हो सकता है|

हालाँकि, दिसानायके पहले से ही भारत और चीन के साथ संबंधों को संतुलित करने की दिशा में सतर्क रहे हैं। नई दिल्ली की अपनी यात्रा के तुरंत बाद, दिसानायके ने जनवरी 2025 में बीजिंग का दौरा किया। बीजिंग के साथ जुड़ाव के पीछे का विचार श्रीलंका के लिए चीन की आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क तक पहुँच प्राप्त करने के साथ-साथ हिंद महासागर क्षेत्र के भीतर नौसैनिक सेवा केंद्र के रूप में श्रीलंकाई बंदरगाहों को आगे बढ़ाने के लिए वित्तीय सहायता प्राप्त करना था| ऋण पुनर्गठन और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए चीन का समर्थन विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक क्षेत्रीय और वित्तीय केंद्र के रूप में श्रीलंका की भूमिका को प्रबल करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, अपने दौरे पर, दिसानायके ने हंबनटोटा औद्योगिक क्षेत्र में 3.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तेल शोधशाला के लिए पुनः वार्तालाप किया, मुद्रा विनिमय समझौते को जारी रखा और डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं में मज़बूत सहयोग भी प्रदान किया| बदले में, दिसानायके ने “एक चीन नीति” के लिए लंबे समय तक समर्थन की पेशकश की और हंबनटोटा बंदरगाह और कोलंबो बंदरगाह सिटी जैसी परियोजनाओं को जारी रखने पर सहमति जताते हुए चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के प्रति श्रीलंका की प्रतिबद्धता को दोहराया। ये कार्य प्रदर्शित करते हैं कि दिसानायके चीन के साथ संबंधों को गहराई प्रदान करने के साथ-साथ भारत के साथ संबंधों को भी प्रबल बनाना चाहते हैं|

श्रीलंका की संप्रभुता की रक्षा और जनभावना का प्रबंधन

भारत और चीन के साथ दिसानायके की भागीदारी से यह निर्धारित होता है कि वह श्रीलंका के विकास के लिए दोनों देशों का लाभ उठाने की अपेक्षा कर रहे हैं, साथ ही उन्हें, आश्वस्त भी कर रहे हैं कि देश गुटनिरपेक्ष रहेगा। तथापि, यह बढ़ी हुई भागीदारी श्रीलंका की दो क्षेत्रीय शक्तियों पर निर्भरता बढ़ा सकती है और श्रीलंका की संप्रभुता की रक्षा के लिए दिसानायके की मुखर प्रतिबद्धता को दुर्बल कर सकती है।

उदाहरण के लिए, दिसंबर में नई दिल्ली यात्रा के तुरंत बाद और जनवरी में बीजिंग यात्रा से पहले, दिसानायके ने भारत के साथ श्रीलंका के त्रिंकोमाली तेल भंडार के संयुक्त विकास को जारी रखने का निर्णय लिया। इस कदम से यह निश्चित होता है कि इसका उद्देश्य बीजिंग यात्रा के बारे में भारतीय आशंकाओं को शांत करना था| हालाँकि, यह सौदा श्रीलंका को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए नई दिल्ली पर अधिक से अधिक निर्भर बना सकता है। विशेष रूप से, यह देखते हुए कि जलाशय महत्वपूर्ण (नौपरिवहन के लिए प्रयोग होने वाली) अंतर्राष्ट्रीय समुद्री मार्गों के पास स्थित है, भारत इस बंदरगाह पर अपने परिचालन अधिकार का उपयोग श्रीलंका को चीन की आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क में गहराई से एकीकृत होने से रोकने के लिए कर सकता है। एक विपक्षी राजनेता के रूप में, दिसानायके ने इसी तरह के सौदों का विरोध किया था | यह स्पष्ट नहीं है कि अब जब वह सत्ता में हैं, तो वे इस तरह की विदेश नीति प्रतिबद्धताओं के लिए जनता का समर्थन हासिल करेंगे|

दिसानायके की चीन के साथ हालिया भागीदारी, विशेष रूप से हंबनटोटा औद्योगिक क्षेत्र और कोलंबो बंदरगाह सिटी को विकसित करने हेतु — श्रीलंका में देश की संप्रभुता के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं| चूंकि चीन के पास हंबनटोटा बंदरगाह पर परिचालन अधिकार है, इसलिए वह बंदरगाह को अपने आईओआर आपूर्ति श्रृंखला केंद्र में बदल सकता है और भविष्य में इसे सैन्य अड्डे में परिवर्तित कर सकता है| इसी तरह, कोलंबो बंदरगाह सिटी के विकास में चीन का प्रभाव श्रीलंका को चीन पर आर्थिक रूप से अधिक निर्भर बना सकता है। बदले में, बीजिंग इस लाभ का उपयोग कोलंबो और नई दिल्ली के बीच घनिष्ठ संबंधों में बाधा उत्पन्न करने के लिए भी कर सकता है।

भारत और चीन के साथ दिसानायके की…बढ़ी हुई भागीदारी श्रीलंका की दो क्षेत्रीय शक्तियों पर निर्भरता बढ़ा सकती है और श्रीलंका की संप्रभुता की रक्षा के लिए दिसानायके की मुखर प्रतिबद्धता को दुर्बल कर सकती है।

अगर श्रीलंका बीजिंग और नई दिल्ली पर अधिक निर्भर रहेगा तो देश की संप्रभुता की रक्षा करने और रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने की क्षमता को चुनौती मिलेगी|  इस जोखिम को कम करने के लिए, दिसानायके को अपने क्षेत्रीय और वैश्विक जुड़ाव में विविधता लानी चाहिए, जापान (जिसने पहले से ही देश में कई निवेश किए हैं) या दक्षिण कोरिया जैसे देशों को बुनियादी ढांचे के विकास में अधिक सार्थक रूप से समिल्लित करके  जबकि कतर और सऊदी अरब जैसी तेल-समृद्ध खाड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ प्रबल वित्तीय सम्बन्ध स्थापित करने चाहिए| समय के साथ, इससे श्रीलंका को भारत और चीन दोनों पर वित्तीय और रणनीतिक निर्भरता से मुक्ति मिल सकती है।निस्संदेह, दिसानायके अनिश्चित रणनीतिक परिदृश्य के माध्यम से श्रीलंका पर नियंत्रण कर रहे हैं। पिछली सरकारों के तहत, श्रीलंका की विदेश नीति अक्सर घरेलू राजनीतिक अनिवार्यताओं या एक क्षेत्रीय या वैश्विक शक्ति के साथ वैचारिक संरेखण से प्रभावित होती थी। इससे श्रीलंका की संप्रभुता के लिए विनाशकारी परिणाम हुए। श्रीलंका की विदेश नीति को राष्ट्रीय हित पर आधारित करने के दिसानायके के घोषित संकल्प में बहुत सारे वायदे अन्तर्निहित हैं| लेकिन, इसे सफल बनाने के लिए, दिसानायके को अपने देश के विदेशी संबंधों में विविधता लाने के साथ-साथ, श्रीलंका में भारत और चीन के द्वयधिकार को कम करना होगा |

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This article is a translation. Click here to read the original in English.

Image 1: Anura Kumara Dissanayake via X

Image 2: MEAphotogallery via Flickr

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