इस महीने की शुरुआत में, प्रधान मंत्री के.पी. ओली कार्यभार संभालने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत गए। जैसा कि आम तौर पर द्विपक्षीय दौरों में होता है, उस हिसाब से इस दौरे में कुछ ही नए समझौतों की घोषणा हुई और प्रधान मंत्री ओली ने पिछली परियोजनाओं को जल्दी पूरा करने पर ज्यादा ज़ोर दिया। लेकिन इस यात्रा का महत्व था नेपाल-भारत रिश्तों में सकारात्मक परिवर्तन, जो पिछले तीन वर्षों से तनाव-ग्रस्त थे। अगर पहले भारत नेपाल पर ठोस जमाता था तो इस यात्रा से ओली ने यह सफलतापूर्वक बदल दिया और नेपाल-भारत संबंधों की बुनियाद दोस्ती पर रखी जो दो बराबर स्वतंत्र देशों के बीच होती है।
दोस्ती के नए नियम
नवनिर्वाचित ओली ने भारत की यात्रा इसलिए की ताकि २०१५ से दोनों देशों के बीच आ गई कड़वाहट का अंत किया जा सके। रिश्ते तब खराब हुए जब भारत ने अनौपचारिक व्यापार प्रतिबंध लागू करके संविधान में संशोधन करने के लिए नेपाल को मजबूर करने की कोशिश की। इस यात्रा के दौरान, ओली ने भारत की ओर दोस्ती का हाथ तो बढ़ाया पर यह भी बिलकुल स्पष्ट कर दिया कि यह दोस्ती आपसी सम्मान और एक दूसरे की गरिमा और संप्रभुता के प्रति सम्मान पर आधारित होगी।
१९५० के भारत-नेपाल शांति एवं मैत्री समझौते के कारण और भारत के बड़े पड़ोसी होने से, परंपरागत रूप से नई दिल्ली का प्रभाव काठमांडू के घरेलू मामलों पर पड़ा है। पर अब नेपाल में कई लोगों का मानना है कि इस संधि ने नेपाल की संप्रभुता को कमजोर कर दिया है और समय आ गया है कि नेपाल एक पूरी तरह स्वतंत्र देश के रूप में उभरे। चुनाव में बड़ी जीत प्राप्त करने के बाद और २७५ सदस्यीय संसद के दो-तिहाई समर्थन के साथ, ओली इस भावना का प्रतिनिधित्व करते हैं और उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि नेपाल और भारत दोनों को एक दूसरे की चिंताओं और संवेदनाओं के बारे में अवगत होना होगा।
सीमा के पार बिजली व्यापार का मुद्दा इसका एक उदाहरण है। यात्रा के दौरान, ओली ने साफ कहा कि भारत के साथ सीमा पार बिजली व्यापार २०१४ के द्विपक्षीय समझौते के अनुसार किया जाना चाहिए जो आम बिजली मार्किट में सभी अधिकृत / लाइसेंस प्राप्त प्रतिभागियों के लिए सीमा पार इंटरकनेक्शन की गैर-भेदभावपूर्ण रसाई देता है, और यह बिजली व्यापार भारतीय विद्युत मंत्रालय द्वारा २०१६ में जारी की गई दिशा निर्देशों के अनुसार नहीं होना चाहिए जो दूसरे देशों के हाइड्रो पॉवर डेवलपर्स को एक बार की मंजूरी के साथ भारत में बिजली निर्यात करने से रोकती हैं। नेपाल ने पहले भी कहा था कि ये नियम भेदभावपूर्ण हैं और २०१४ के समझौते की भावना के विपरीत हैं, और इस चिंता को ओली ने अपने नई दिल्ली की यात्रा के दौरान दोहराया।
ऐसा लगता है कि भारत अब नेपाल की चिंताओं के प्रति अधिक ग्रहणशील है, क्योंकि ओली का चीन के साथ घनिष्ठ संबंध है, और बीजिंग पिछले कुछ सालों से काठमांडू के साथ दोस्ती बढ़ा रहा है। २०१५ की नाकाबंदी के बाद एक विकल्प की तलाश में, नेपाल अपने उत्तरी पड़ोसी चीन की तरफ झुका। चीन और नेपाल ने २०१६ में व्यापार और पारगमन संधि पर हस्ताक्षर किया और पिछले साल तो नेपाल बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) से भी जुड़ गया। पनबिजली परियोजनाओं से लेकर अवसंरचना के निर्माण तक के लिए, चीन नेपाल में अपनी जगह बना रहा है और साथ ही नेपाली राजनीतिक नेतृत्व के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध भी बना रहा है।
इस बढ़ते रिश्ते को देखते हुए, नई दिल्ली ने अपनी विदेश नीति को बदल दिया है और नेपाल को फिर से लुभाने की कोशिश कर रहा है। जनवरी में, भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ओली को चुनाव जीतने पर बधाई देने के लिए दो बार फोन किया, जबकि भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अपनी फरवरी की अनौपचारिक यात्रा मे नेपाल के साथ सहयोग बढ़ाने का संदेश लाई थी। और ओली की भारत की राजकीय यात्रा के लिए, मोदी ने धूमधाम से उनका स्वागत किया।
संपर्क बढ़ाने पर बल
ओली की यात्रा के दौरान, दोनों प्रधानमंत्रियों ने अमलेखगानु-मोतिहारी तेल पाइपलाइन के साथ साथ बीरगंज में एकीकृत चेकपोस्ट (आईसीपी) का उद्घाटन किया। चूंकि नेपाल का ५८ प्रतिशत आयात भारत से आता है, इसलिए आईसीपी का संचालन एक योग्य कदम है, क्योंकि उम्मीद है कि यह लोगों के आवाजाही के साथ-साथ सीमा पार व्यापार के पारगमन को बढ़ाएगा। और पेट्रोलियम पाइपलाइन सड़क से ईंधन परिवहन के लिए एक विकल्प हो सकती है।
लेकिन द्विपक्षीय वार्ताओं में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा था नेपाल और भारत के बीच संपर्क बढ़ाना। जबकी ओली ने मुख्य रूप से नई परियोजनाओं की घोषणा करने के बजाय पिछली परियोजनाओं को समय पर पूरा करने पर बल दिया, तीन नए समझौतों में से दो रेल और अंतर्देशीय जलमार्ग के माध्यम से संपर्क बढ़ाने से संबंधित थे।
यह महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत नेपाल से संपर्क बढ़ाने के लिए चीन के कदमों पर चल रहा है। फिलहाल, भारत से सीधी नेपाल तक कोई कार्यात्मक रेल लिंक नहीं है। भारत के जयनगर और नेपाल के जनकपुर के बीच जो अंग्रेजों के ज़माने का रेल लिंक था उसका उन्नतीकरण चल रहा है, जिसमें काफी देरी हुई है। बीजिंग के काठमांडू के साथ संपर्क बढ़ाने और आर्थिक जुड़ाव के निरंतर प्रयासों को नई दिल्ली नेपाल में अपने सामरिक महत्व के लिए गंभीर खतरा मानता है, और इसलिए वह चीन की पहल का मुकाबला अपनी खुद की पहल से करने की कोशिश कर रहा है। ओली की भारत यात्रा के दौरान जिस काठमांडू-रक्सौल रेल परियोजना की घोषणा हुई है वह चीन की नेपाल-तिब्बत रेल परियोजना की बराबरी करने की कोशिश हो सकती है।
यह भारत की चाल है जिससे नेपाल सरकार को सावधान रहने चाहिए। भारत और चीन दोनों के लिए नेपाल में और नेपाल के साथ काम करने के लिए पर्याप्त जगह है। जब तक नई दिल्ली नई परियोजनाओं के साथ साथ पिछली प्रतिबद्धताओं को पूरा करती है, तब तक इसका नेपाल-भारत संबंधों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
नेपाल और भारत अब यहाँ से कहां जाएँ ?
भारत में प्रधान मंत्री ओली की यात्रा को दो मोर्चों पर सफल माना जाना चाहिए। पहला, ओली और मोदी के बीच दोस्ती का दोनों पड़ोसियों के बीच बेहतर और नवीनीकृत संबंधों के लिए प्रतीकात्मक मूल्य है। दूसरा, पिछले रुझानों के विपरीत, ओली ने भारत में नेपाल के आंतरिक मामलों पर चर्चा न करके राजनीतिज्ञता का परिचय दिया है और यह स्पष्ट कर दिया कि देश का राष्ट्रीय हित किसी भी चीज के नीचे नहीं होगा। नेपाल और भारत के रिश्ते बेहतर हो सकते हैं यदि नई दिल्ली काठमांडू को बराबरी की जगह दे और यदि दोनों देश यह मान लें कि सहयोग पारस्परिक हितों पर आधारित होना चाहिए।
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