
हाल के दिनों में, भारत-अफ़ग़ानिस्तान संबंध एक अभिनव उपक्रम के साथ तेज़ी से विस्तार कर रहे हैं, विशेष रूप से इस संबंध के आधारशिला के रूप में काम कर रहे हैं। पिछले महीने, 60 टन अफ़ग़ान औषधीय पौधों को ले जाने वाला एक विमान नई दिल्ली में उतरा, और इस तरह अफ़ग़ानिस्तान-भारत वायु गलियारे का उद्घाटन हुआ। उड़ान के अवसर पर एक समारोह में, अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने अफ़ग़ानिस्तान को “निर्यातक देश” में बदलने की आशा व्यक्त की।
केवल पिछले वर्ष ही वायु मार्ग की स्थिति अनिश्चित थी क्योंकि पाकिस्तान ने अफ़ग़ान सामान को ज़मीनी रास्ते से भारत पहुँचने की अनुमति देने से बार-बार इनकार किया। सुरक्षा संबंधी चिंताओं के अलावा, शायद यह इनकार इस वजह से होगा कि भारत-अफ़ग़ान व्यापार से पाकिस्तान के आर्थिक और रणनीतिक हितों पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा। पाकिस्तानी निर्यातकों का अफ़ग़ान बाज़ार पर भरोसा है, इसलिए अफ़ग़ानिस्तान में भारत के सस्ते अच्छे सामानों के प्रवेश से स्थानीय पाकिस्तानी व्यवसायों को नुकसान पहुँचाएगा। दूसरा यह कि पाकिस्तान के माध्यम से अफ़ग़ान के व्यापार मार्गों तक पहुँचने से भारत-अफ़ग़ान सहयोग मज़बूत होगा, इस प्रकार पाकिस्तान अपने पश्चिमी और पूर्वी सीमाओं में घिर जायेगा।
एक बंदरगाह विहीन देश के रूप में, अफ़ग़ानिस्तान ने परंपरागत रूप से व्यापार के लिए पाकिस्तान पर भरोसा किया है। दोनों पक्षों ने 1965 में अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान ट्रांज़िट ट्रेड एग्रीमेंट (एपीटीटीए) पर हस्ताक्षर किया था, और इसके अन्तर्गत अफ़ग़ानिस्तान को पाकिस्तान के माध्यम से अन्य देशों में शुल्क-मुक्त सामान ले जाने का अधिकार दिया गया था। इस संधि के अनुसार, भारत तक पहुँचाने के लिए अफ़ग़ानिस्तान को लाहौर की वाघा सीमा का प्रयोग करने का अधिकार है। इन अनुकूल शर्तों के बावजूद, काबुल अपनी व्यापारिक क्षमता को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है और वर्तमान के निर्यात में 221 देशों में से 151 वें स्थान पर है। विद्रोह, आतंकवाद, और आवर्ती नागरिक अशांति अफ़ग़ानिस्तान के विकृत व्यापार में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
हालांकि, अफ़ग़ानिस्तान के पास अपने निर्यात नेटवर्क के विस्तार के लिए उपयुक्त चैनलों की कमी भी है। भारत के नज़रिए से, अफ़ग़ानिस्तान न केवल विस्तारित व्यापार प्रदान करता है बल्कि भारत की निरंतर ऊर्जा की ज़रूरतों के लिए मध्य एशियाई गणराज्यों (CARs) का एक महत्वपूर्ण मार्ग भी है। इस दिशा में, ईरान में भारत के चाबहार बंदरगाह का निर्माण ज़मीनी और वायु मार्गों से अफ़ग़ानिस्तान पहुँचने की कोशिश और पाकिस्तान पर काबुल की निर्भरता कम करने की इच्छा का पूरक है। रणनीतिक रूप से, चाबहार बंदरगाह ग्वादर बंदरगाह पर एक महत्वपूर्ण नियंत्रण भी है। ग्वादर बंदरगाह का प्रस्तावित चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) में एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में चीनी वित्तीय सहायता के साथ विस्तार हो रहा है।
इन हितों को देखते हुए, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व भारत सरकार ने पाकिस्तान को बाईपास करने के लिए निर्भीक क़दम उठाने में कोई झिझक नहीं दिखाई है। द्विपक्षीय और बहुपक्षीय रूप से, प्रधान मंत्री मोदी ने पिछले साल दिसंबर में एशिया के छठे मंत्रिस्तरीय दल के सम्मेलन में पाकिस्तान को आतंक प्रायोजक राज्य के रूप में लेबल करने का प्रयास किया था। फ़रवरी और मई 2017 में सीमा संबंधी हमलों के बाद अफ़ग़ानिस्तान के साथ सीमा क्रोसिंग्ज़ को बंद करने के पाकिस्तान के फ़ैसले ने सुरक्षा चिंताओं को संबोधित किया हो, लेकिन इससे पाकिस्तान-अफ़ग़ान व्यापार भी कमज़ोर हुआ है। सीमा बंदी से अफ़ग़ान अर्थव्यवस्था को न केवल नुकसान पहुँचा है बल्कि अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तानी निर्यात भी कम हुआ है। इसके अलावा काबुल और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नज़र में इस्लामाबाद की प्रतिष्ठा भी प्रभावित हुई है। इन घटनाओं के बीच, भारत ने एयर फ़्रेट कॉरिडोर के लिए अपनी नई प्रतिबद्धता की घोषणा की है।
अल्पावधि में, भारत अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान संबंधों में बिगाड़ से फ़ायदा उठाएगा , हालांकि वायु गलियारे की व्यवहार्यता और सफलता तभी संभव होगा जब दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में अच्छी बढ़ोतरी होगी। वर्तमान में भारत-अफ़ग़ान व्यापार 800 मिलियन डॉलर से अधिक का है। यह दोनों देशों के निर्यातकों के हित में है कि वायु गलियारे जैसे अभिनव दृष्टिकोणों के माध्यम से व्यापार को बढ़ावा मिले , लेकिन बढ़ते द्विपक्षीय व्यापार की लंबी अवधि की आशंकाएँ पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंधों से प्रतिबंधित रहेगा।
वायु गलियारे का उद्घाटन पाकिस्तान के लिए संभावित नकारात्मक नतीजों के साथ भारत-अफ़ग़ान संबंधों में एक महत्वपूर्ण विकास का इशारा देता है। हालांकि, भारत और अफ़ग़ानिस्तान अभी तक भूगोल की ज़रूरी समस्या को दूर नहीं कर पा हैं, जिसमें पाकिस्तान अभी भी अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया में भारत की पहुँच को नियंत्रित करता है। वर्तमान में, भारत अफ़ग़ानिस्तान के साथ निकट आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंधों का त्याग करने के लिए तैयार है। अंततः सभी क्षेत्रीय हितधारकों और सभी रेसर्वेशन्स को संबोधित करते हुए एक व्यापक व्यापार साझेदारी को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पाकिस्तान को अपनी तरफ़ से उन विकल्पों को खोजने का प्रयास करना चाहिए जो अपने स्वयं के हितों के साथ-साथ पूरे क्षेत्र के हितों को भी आगे बढ़ाए।
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Image 1: Flickr, Narendra Modi