भारत और चीन के बीच 2020 के लद्दाख संकट ने संबंधों पर अपेक्षा से अधिक प्रभाव डाला है। उल्लेखनीय प्रवृत्ति के स्वरूप देखा गया है कि भारत-चीन प्रतिस्पर्धा महाद्वीपीय सीमा तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि इसका महत्वपूर्ण समुद्री आयाम भी हमारे समक्ष प्रस्तुत हुआ है| भारतीय नीति अब सार्वजनिक रूप से हाल के वर्षों में हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की नौसैनिक और आर्थिक उपस्थिति में उल्लेखनीय वृद्धि और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर इसके प्रभाव को लेकर चिंतित है| नई दिल्ली के लिए समुद्री क्षेत्र उसकी क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और विकास से जुड़ा हुआ है। इसी कारणवश, भारत ने समुद्री क्षेत्र को सुरक्षित करने हेतु बहुआयामी दृष्टिकोण (multipronged approach) अपनाया है, जिसके अंतर्गत भारत ने साझेदारी का एक नेटवर्क विकसित किया है| इसके अतिरिक्त, भारत ने हिंद महासागर क्षेत्र में प्रतिकूल हस्तक्षेप (adversarial intervention) या व्यवधान (disruption) को रोकने हेतु, क्षेत्र में अपनी नौसैनिक उपस्थिति में भी बढ़ोतरी की है|
भारत और चीन प्रतिस्पर्धा का पहले से ही व्यापक क्षेत्रीय प्रभाव रहा है, क्योंकि दोनों देश भिन्न रूप से, हिंद महासागर क्षेत्र में अपने प्रभाव क्षेत्र को विस्तारित करने के इच्छुक रहे हैं| इस उभरते संदर्भ में, भारत और चीन तथा हिंद महासागर क्षेत्र के भिन्न प्रतिस्पर्धी दृष्टिकोण के कारण इस क्षेत्र में, अधिक अशांति उत्पन्न होने की संभावना है।
चीन की गणना में हिंद महासागर क्षेत्र
चीन के लिए, हिंद महासागर क्षेत्र, जनसंख्या के रूप से जीवंत क्षेत्र होने के कारण उत्कृष्ट व्यापार की सम्भावनाओं को जन्म देता है। चीन के लिए, हिंद महासागर क्षेत्र से जुड़ना एक आर्थिक अनिवार्यता है और (इस उदेश्य की सिद्धि के लिए) चीन को क्षेत्रीय देशों की सरकारों से राजनीतिक समर्थन की आवश्यकता है ताकि चीन (इन क्षेत्रीय देशों) के बाज़ारों और संसाधनों पर अपना सिक्का जमा सके |
बेल्ट एंड रोड पहल इस लक्ष्य प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण साधन है, जो चीनी नेतृत्व को दक्षिण चीन सागर से परे, चीन को अपनी भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक उपस्थिति स्थापित करने का प्रबल अवसर प्रदान करता है। चूंकि भूमि बेल्ट घटक को सुरक्षा संबंधी मुद्दों या एशिया भर में विवादित सीमाओं के कारण चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए समुद्री मार्ग व्यापार घटक की रीढ़ बन गया है, क्योंकि समुद्र सभी के लिए मुक्त और खुले हैं।हालांकि समुद्री डाकुओं और अन्य समुद्री चुनौतियों से व्यापार मार्गों की रक्षा के लिए सैन्य उपस्थिति आवश्यक है, लेकिन निगरानी उद्देश्यों के लिए संभावित रूप से पनडुब्बियों और अनुसंधान जहाजों जैसी दोहरे उपयोग वाली संपत्तियों का उपयोग करने का बीजिंग का दृष्टिकोण नीति निर्माताओं और विद्वानों दोनों के लिए संदिग्ध है। इसके अतिरिक्त, जब महामारी ने देशों को अपने भीतर देखने और घरेलू मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने हेतु मजबूर किया, जिससे वैश्विक कॉमन्स में शक्ति शून्यता पैदा हो गई, तो चीन ने इस कमी को पूरा किया।
चीन ने इस क्षेत्र में कई तरीकों से पैठ बना ली है। रणनीतिक रूप से, चीन ने कंबोडिया, म्यांमार और मालदीव में दोहरे उपयोग वाले बंदरगाहों की मौजूदगी और पनडुब्बी जेटी जैसे बुनियादी ढांचे के विकास पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है, जिसे भारतीय विश्लेषक, चीन द्वारा भारत की घेराबंदी करने के रूप में देखते हैं | सैन्य दृष्टि से, चीन ने अपने बेड़े की संख्या बढ़ाकर 370 से अधिक जहाज़, कर ली है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में अधिक है | चीन ने भारत के क्षेत्रीय विरोधी पाकिस्तान के साथ अपनी साझेदारी को को भी मज़बूत किया है, और पाकिस्तान को वायु-स्वतंत्र प्रणोदन प्रौद्योगिकी (air-independent propulsion technology) से सुसज्जित आठ उन्नत हंगोर श्रेणी की पनडुब्बियाँ प्रदान किए हैं| चीन द्वार पाकिस्तान को पनडुब्बियाँ प्रदान करने से दक्षिण एशिया में समुद्री हथियारों की दौड़ को बढ़ावा मिला है। संयोगवश, इन पनडुब्बियों का नामांकन पीएनएस हंगोर के नाम पर हुआ है, जो पाकिस्तानी डीजल-हमलावर पनडुब्बी थी, जिसने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय युद्धपोत खुखरी को उसके कैप्टन एमएन मल्ला सहित डुबो कर अपना शिकार बनाया था| इन घटनाक्रमों ने भारतीय रणनीतिक समुदाय में, और व्यापक रूप से हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी कार्यवाही के तर्क और निहितार्थ पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है|
सामरिक संपत्ति: मछली पकड़ने वाले बेड़े और अनुसंधान पोत
हिंद महासागर क्षेत्र के जलक्षेत्र में अपनी गश्त में वृद्धि के अतिरिक्त, PLAN ने संवेदनशील डेटा एकत्र करने जैसे संभावित रणनीतिक उद्देश्य हेतु मछली पकड़ने वाले बेड़े और अनुसंधान जहाज़ों का उपयोग करना प्रारम्भ किया है | जनवरी 2020 में, भारतीय नौसेना ने पश्चिमी हिंद महासागर भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone) के बाहर PLAN के साथ एक बड़े चीनी मछली पकड़ने वाले ट्रॉलर को देखा। 2020 में, कुछ अन्य ऐसी घटनाएं भी सामने आईं हैं | इन घटनाओं ने हिंद महासागर क्षेत्र में अवैध, अप्रतिबंधित और अनियमित (IUU) मछली पकड़ने के खतरे के बारे में सूचित किया है| इसके अलावा, नावों द्वारा अपनी स्वचालित पहचान प्रणाली (एआईएस) को बंद कर, ईईजेड में स्थान ट्रैकिंग को रोकने के प्रयासों ने, या एआईएस स्पूफिंग का सहारा लेने के कारण — इन घटनाओं ने एक संभावित राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को भी जन्म दिया है |
इसी संदर्भ में, आईओआर में चीनी हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण और उपग्रह ट्रैकिंग अनुसंधान जहाजों (satellite tracking research vessels) की बढ़ती उपस्थिति — जिनका उपयोग पीएलए अपने “आंख और कान” के रूप में पूर्व-परीक्षण बढ़ाने के लिए करती है— भारत के एक लिए गहन चिंता का विषय बनकर उभरा है| विभिन्न रिपोर्टों और आधिकारिक भारतीय खातों के आधार पर, यह कहा जा सकता है कि, ये जहाज ने केवल, भूवैज्ञानिक अनुसंधान, बाथिमेट्रिक डेटा संग्रह, समुद्र तल का नमूनाकरण और पानी के नीचे वर्तमान प्रोफाइलिंग, बोया बिछाने और रखरखाव कर, सकते हैं, बल्कि अन्य विपरीत उद्देश्यों को भी अंजाम दे सकते हैं | इसी संदर्भ में, विशेषज्ञों के अनुसार, इन जहाजों में सोनार लगे हैं, जो पनडुब्बी की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए आवश्यक समुद्र के नीचे के डेटा को एकत्रित करते हैं, और अन्य सैन्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए, मिसाइल से संबंधित डेटा एकत्र करने में भी सक्षम रहते हैं| इस बात का प्रमाण, हमें आईओआर के पानी में इन जहाजों के समय को लेकर मिल सकता है — वे आम तौर पर पूर्वी हिंद महासागर में तभी नज़र आते हैं जब, भारत सरकार मिसाइल परीक्षण से पहले हवाई क्षेत्र को खाली करने के लिए वायुसैनिकों (एनओटीएएम) को नोटिस जारी करती है या बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में उपग्रह प्रक्षेपण करती है| ये संदिग्ध समुद्री गतिविधियाँ, जो दक्षिण चीन महासागर में हमें समुंद्री विषयों पर चीन के अक्रमक रुख के बारे में सचेत करती हैं, अब ये भारत के लिए भी चिंता का विषय बनती जा रही हैं।
भारत का समुद्री दृष्टिकोण और खतरों के प्रति प्रतिक्रिया
हिंद महासागर के प्रति भारत का समुद्री दृष्टिकोण इस क्षेत्र में उसकी विदेश नीति का विस्तार है, जो इस अहसास पर आधारित है कि भारत की निजी सुरक्षा और उसका विकास हिंद महासागर क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। इसी संदर्भ में, चीन की धमकियों का उत्तर देने के लिए, और समुद्री क्षेत्र में अपने हितों की रक्षा हेतु, एवं अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करने के लिए — भारतीय नौसेना ने तीन-आयामी दृष्टिकोण अपनाया है: जिस में, क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को बढ़ाना, आईओआर को लाभ पहुंचाने के लिए अतिरिक्त-क्षेत्रीय साझेदारी को बढ़ाना, और अपने स्वदेशी रक्षा कार्यक्रम के माध्यम से क्षेत्रीय क्षमता विकसित करना प्रमुख नीतियाँ हैं|
2018 से, भारतीय नौसेना हिंद महासागर में मिशन-आधारित तैनाती (mission-based deployments) कर रही है, जिससे समुद्र के आठ प्रवेश बिंदुओं के आसपास, भारतीय जहाजों की चौबीसों घंटे उपस्थिति सुनिश्चित हो चुकी है| भारत ने इस क्षेत्र में प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता बनने की अपनी इच्छा और क्षमता का प्रदर्शन, क्षेत्रीय आपदाओं के दौरान बचाव और राहत अभियान और पश्चिमी हिंद महासागर में पुनः उभर रहे समुद्री डकैती के प्रयासों को विफल करने के कार्यों को भली भांति संपन्न करके किया है| लक्षद्वीप द्वीपसमूह में आईएनएस जटायु, पश्चिमी हिंद महासागर में कारवार के पास आईएनएस कदम्बा, तथा मॉरीशस के अगलेगा द्वीप में भारतीय नौसेना के नए अड्डे, भारतीय परिचालन पहुँच (operational reach) को प्रमाणित करते हैं, तथा हिंद महासागर क्षेत्र में शक्ति प्रक्षेपण (force multiplier) के रूप में बल गुणक (power projection) के कार्यों को भी संपन्न करते हैं|
नई दिल्ली ने महसूस किया है कि समुद्री खतरे अंतरराष्ट्रीय हैं और इसलिए संयुक्त प्रयास की आवश्यकता है। इसलिए, हाल के वर्षों में समान विचारधारा वाले क्षेत्रीय देशों में नौसेना के जहाजों की तैनाती और बंदरगाहों का दौरा, हिंद महासागर क्षेत्र में, भारतीय समुद्री कूटनीति की विशेषता रही है, जो पूर्वी ओर पर फिजी और पश्चिमी ओर पर दक्षिण अमेरिका तक फैली हुई है। नौसेना अभ्यासों के बहुपक्षीय प्रारूप जैसे कि ‘मिलन’, ‘मालाबार’ और ‘आसियान भारत’ के नौसैनिक अभ्यासों, द्विपक्षीय प्रारूप, साथ ही समन्वित गश्त (coordinated patrol) और मार्ग अभ्यास (passage exercises) हाल के वर्षों में, अपने दायरे और आवृत्ति में तेज हुआ है। संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और अन्य साझेदार, अंतरराष्ट्रीय कानून और नियम-आधारित व्यवस्था को प्राथमिकता देने हेतु, भारत-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री डोमेन जागरूकता और सूचना-साझाकरण विकसित करने हेतु, भारत के साथ साझीदारी मज़बूत कर रहे हैं | भारत में, गुरुग्राम स्थित सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (Information Fusion Centre-Indian Ocean Region) और क्वाड इंडो पैसिफिक मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (IPMDA) पहल का लक्ष्य समान विचारधारा वाले क्षेत्रीय भागीदारों को “लगभग वास्तविक समय, एकीकृत और लागत प्रभावी समुद्री डेटा प्रदान करना” है। हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के साथ, भारत अपना जुड़ाव, इन देशों की रक्षा आपूर्ति पूरी करने के लिए कर रहा है | इसके अतिरिक्त, भारत इन सभी देशों को, उपकरण प्रदान कर रहा है ताकि ये देश चीन के सामने खड़े हो सके और अपने हितों की रक्षा कर सकें| 2020 से भारत ने मालदीव, सेशेल्स, वियतनाम और म्यांमार जैसे क्षेत्रीय देशों को क्षमता निर्माण मंच (capacity building platforms) उपहार में दिए हैं। 2022 में फिलीपींस द्वारा भारत की स्वदेशी रूप से निर्मित ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल की खरीद और इंडोनेशिया, वियतनाम और मलेशिया जैसे अन्य देशों द्वारा दिखाई गई रुचि देश के “आत्मनिर्भर भारत” जैसे घरेलू रक्षा उत्पादन कार्यक्रम को भी बढ़ावा देती है| रणनीतिक स्तर पर, नई दिल्ली ने दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस की संप्रभुता का समर्थन किया है और दोनों देशों के बीच आर्थिक और रक्षा साझेदारी में अब वृद्धि आ रही है| इसके अलावा, हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के साथ रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने के लिए, भारत ने 2024 की शुरुआत में फिलीपींस, मोजाम्बिक, जिबूती और तंजानिया सहित कई एशियाई और अफ्रीकी देशों में पहली बार अपने रक्षा अताशे तैनात करना प्रारम्भ किया है।
भविष्य में प्रतियोगिता का विस्तार
चीन और भारत अब केवल भू-भाग के लिए नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि, यह संघर्ष एक क्षेत्रीय मुद्दे के रूप में प्रबल हो गया है| हिंद महासागर क्षेत्र में चीन प्रमुख शक्ति के रूप में उभरना चाहता है, और बहुध्रुवीय एशिया के विचार को, इसी वजह से संयुक्त रूप से ख़ारिज़ कर रहा है| इस कारण हेतु, हिंद महासागर क्षेत्र का समुद्री क्षेत्र नई दिल्ली और बीजिंग के बीच प्रतिस्पर्धा का एक और रंगमंच बन गया है| दुर्भाग्य से, इस प्रतिस्पर्धा ने चीन की नौसैनिक उपस्थिति और तैनाती को हिंद महासागर क्षेत्र विकसित किया है, जिस की वजह से, अस्थिरता की संभावना में वृद्धि हुई है|
चीन के विपरीत, हिंद महासागर के बारे में भारत का दृष्टिकोण, अधिकांश क्षेत्रीय देशों के दृष्टिकोण से मिलता जुलता है — जिन में नौवहन की स्वतंत्रता, सुरक्षित व्यापार, सभी देशों के लिए हिंद महासागर की खुली पहुँच, और विवादों का पारस्परिक समाधान एवं नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था की स्थापना शामिल हैं | हिंद महासागर रिम एसोसिएशन, हिंद महासागर नौसैनिक संगोष्ठी, और क्वाड जैसी कई वार्ता पहलों में भारत की सक्रिय भूमिका, को वार्ता और बहुपक्षवाद के संदर्भ में, क्षेत्रीय मुद्दों का समाधान करने में सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा सकता है। हालांकि, चीन ने दक्षिण चीन सागर मुद्दे में, अंतरराष्ट्रीय कानून का परस्पर अनादर किया है, जिसका सीधा प्रभाव हिंद महासागर क्षेत्र के देशों पर पड़ सकता है|
नई दिल्ली और इस क्षेत्र के अन्य देशों को भविष्य में अधिक तनावपूर्ण समुद्री माहौल के लिए तैयार रहना चाहिए।
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Image 1: SpokespersonNavy via X.
Image 2: Indian and U.S. Navies via Flickr.