xi jinping plane

अपने पड़ोस में लगभग दो दशकों की सक्रिय कूटनीति के बाद, चीन अब अपने ताकतवर एशियाई प्रतिद्वंद्वियों, भारत और जापान, के सामने अपना सीना चौड़ा कर रहा है। डोकलाम मुद्दे पर भारत के साथ बीजिंग के गतिरोध और विवादित सेंकाकू द्वीपसमूह ( जिसपर चीन और जापान दोनों का दावा है ) के आसपास पानी की निगरानी के निर्णय से संकेत मिलता है कि चीन अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के संकल्प का परीक्षण करने की इच्छा रखता है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के १९वीं पार्टी कांग्रेस में सत्ता के समेकन के बाद, चीन अपनी महान शक्ति होने की स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए अपने संभावित विरोधियों पर प्रभुत्व का दावा करना चाहता है।

असफल अधिपत्य  के परिणाम से बचना

अपने द्विपक्षीय रणनीतिक संरेखण और अमेरिका के साथ त्रिपक्षीय सहयोग के माध्यम से जापान और भारत ने अपनी क्षेत्रीय शक्ति सिद्ध की है। इन भू-राजनीतिक प्रवृत्तियों का सामना करने के लिए, चीन अपने क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों पर आर्थिक और सैन्य अजेयता जताने की कोशिश कर रहा है। जैसा कि यथार्थवादी विद्वान जॉन मीरसाइमर ने कहा है,अराजक अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में आधिपत्य (hegemony ) बनाए रखने की कोशिश राष्ट्र-राज्यों (nation-states) के लिए सबसे सफल रणनीति है। प्रधान अधिपति   शक्ति प्रक्षेपण, धमकी, या फिर कुछ मामलों में अनुशासनात्मकता के माध्यम से अपने इलाके में अपने प्रतिद्वंद्वियों के उदय को कम करने या उनको जवाब देने का प्रयास करेंगे। पर महान शक्तियां आम तौर पर क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों के साथ युद्ध से बचने की कोशिश करती हैं इस डर से कि कहीं ऐसे संघर्ष से उनके सैन्य संसाधन खतम न हो जाएं या फिर राजनीतिक और उसकी आर्थिक प्रभुत्व में बाधा न बन जाएं। अर्थात्, चीन फ्रांस और जर्मनी के अनुभवों को दोहराना नहीं चाहता, जिन्होंने अपने तत्काल प्रतिद्वंद्वियों को हराने के प्रयास में अपने सैन्य पर अधिक बोझ डाल दिया था और उन्हें भारी  पराजय का सामना करना  पड़ा।

चीन का शक्ति प्रक्षेपण: डोकलाम और सेंकाकू

जून में, भारत ने अपने, भूटान, और चीन के बीच सीमा के पास डोकालम पठार पर एक चीनी सैन्य सड़क निर्माण को रोका। भारतीय दृष्टिकोण से, अगर सड़क निर्माण अनियंत्रित चलता रहा तो इससे भूटान के क्षेत्र पर चीन का दावा बढ़ जाएगा। इस क्षेत्र में चीन-भारत सैन्य विवाद की स्थिति में बीजिंग को एक रणनीतिक लाभ भी मिल जाएगा, क्योंकि डोकलम भारत की नाज़ुक सीलीगुड़ी गलियारे के पास स्थित है जो उत्तर-पूर्व हिस्से को भारत की मुख्य भूमि से जोड़ता है। अगर चीन इस “चिकन नेक” पर अपनी पकड़ मज़बूत करता है तो अरुणाचल प्रदेश में तवांग (जिसपर चीन का भी दावा है) सहित पूर्वी सीमा की रक्षा करने की भारत की क्षमता नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी। डोकलम मामले पर चीन के क़दम को भूटान की सुरक्षा प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में भारत की इच्छा को जाँचने का एक प्रयास माना जा रहा है।

जब यह गतिरोध अपने चरम पे था, जो २८ अगस्त को पारस्परिक रूप से सहमत “अवकाश” के माध्यम से समाप्त हुआ, उस समय भूटान और चीन के बीच द्विपक्षीय असहमति पैदा करने के लिए चीनी मीडिया ने भारत की आलोचना की और चीनी शक्ति को भारत से अधिक पेश किया। ग्लोबल टाइम्स के एक संपादकीय में, एक चीनी विद्वान ने कहा कि “न केवल सैन्य रूप से, बल्कि आर्थिक और तकनीकी रूप से भी, इस समय चीन के साथ भारत की कोई तुलना नहीं है।” उन्होंने यह भी याद दिलाया  कि चीन के साथ १९६२ के सीमा विवाद में भारत को भारी कीमत चुकानी पड़ी थी और चेतावनी दी कि १९६२ की तुलना में दोनों देशों के बीच सैन्य अंतर अब कहीं अधिक है। अभी भी चीन डोकलाम के पास चीनी नियंत्रित क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा रहा है

जापान के साथ विवादित क्षेत्र पर पूर्वी चीन सागर में चीन की गतिविधियाँ डोकलाम में चीन के बर्ताव से मेल खाती हैं। जुलाई में, जापानी नियंत्रित सेनकाकू द्वीप समूह के आसपास के पानी पर निगरानी के लिए चीन ने चार गश्त जहाज भेजे थे। उनका घोषित अभियान चीन के “ डियायू द्वीपसमूह” के आसपास के समुद्रों की निगरानी करना था। हालांकि ये कार्रवाई नई नहीं हैं, क्योंकि बीजिंग ने कम से कम १९९९ से इस क्षेत्र में समुद्री निगरानी दल और युद्धपोत भेजे हैं। फिर भी, ऐसा लगता है कि द्वीपों पर जापान के नियंत्रण को कम करने के लिए ये ताज़ा कार्रवाईयां बढ़ रही हैं। २०१३ में पूर्वी चीन सागर में एक एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन ज़ोन की स्थापना करने के बाद, हो सकता है अपनी दक्षिण चीन सागर रणनीति को दोहरा कर बीजिंग अपनी स्थिति पर जोर देते रहने की कोशिश कर रहा हो ताकि उसके संभावित  विरोधी पीछे हट जाएं।

यथास्थिति की रक्षा के लिए सहयोग

डोकलाम और सेंकाकू  के आस पास के पानी के मामले दर्शाते हैं कि क्षेत्रीय सहकर्मियों के साथ पूरे पैमाने पर टकराव के बजाय, चीन भारत और जापान के खिलाफ दो सूक्ष्म रणनीति का प्रयोग करता है। पहला, क्षेत्रीय स्तर पर भारत और जापान को रोकने के लिए चीन दक्षिण एशिया में पाकिस्तान और पूर्वी एशिया में उत्तरी कोरिया जैसे प्रोक्सी पर निर्भर है। दूसरा, चीनी अपनी सैन्य क्षमताओं का संदेश देने के लिए सीमित सैन्य गतिरोधों में शामिल होता है। इन दोनों रणनीतियों के साथ, चीन का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि  ये दोनों क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी चीन के प्रभुत्व में बाधा न डालें।

यह स्पष्ट संकेत है कि जब तक भारत और जापान चीन की प्राथमिकताओं को स्वीकार नहीं करता चीन और उसके एशियाई प्रतिद्वंद्वियों के बीच अधिक राजनयिक और सामरिक झड़पें फिर से बढ़ सकते हैं। आगे के वर्षों में अमेरिकी प्रशासन चीन के दृढ़ता से कैसे निपटेगी, इसके बारे में अनिश्चितता को देखते हुए, भारत और जापान को बेहतर रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है। इसी तरह, दोनों देशों को अपने सहयोग को मजबूत करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि चीन नेविगेशन की स्वतंत्रता और एक नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की यथास्थिति को नकार न सके। इसी समय पर, अमेरिका को अपनी संधि सहयोगी जापान और बढ़ते रणनीतिक साझेदार भारत के साथ अपनी प्रतिबद्धताओं को  स्पष्ट करना चाहिए और दोनों देशों के रक्षा बलों के आधुनिकीकरण में सहायता करनी चाहिए।

Editor’s note: To read this article in English, please click here.

***

Image 1: APEC 2013 via Flickr

Image 2: MEAphotogallery via Flickr

Posted in:  
Share this:  

Related articles

سی پیک کو بچانے کے لیے، پاکستان کی چین پالیسی میں اصلاح کی ضرورت ہے Hindi & Urdu

سی پیک کو بچانے کے لیے، پاکستان کی چین پالیسی میں اصلاح کی ضرورت ہے

پاکستان کے وزیر اعظم شہباز شریف رواں ماہ کے اوائل میں صدر شی جن پنگ اور دیگر اعلیٰ چینی حکام سے ملاقاتوں کے بعد تقریباََ خالی ہاتھ وطن واپس پہنچ گئے ہیں۔ چین نے واضح انضباطِ اوقات ( ٹائم لائن) کے تحت پاکستان میں بڑے منصوبوں کے لئے سرمایہ کاری کا وعدہ نہیں کیا۔ اس […]

آبدوزیں بحرہند میں ہندوستان کی ابھرتی ہوئی قوت کی کلید ہیں Hindi & Urdu

آبدوزیں بحرہند میں ہندوستان کی ابھرتی ہوئی قوت کی کلید ہیں

شمال مغربی بحر ہند میں سمندری تجارت گزشتہ چھ ماہ…

بی جے پی کے زیرِقیادت گلگت بلتستان پر بھارتی  بیان بازی Hindi & Urdu

بی جے پی کے زیرِقیادت گلگت بلتستان پر بھارتی  بیان بازی

بھارتیہ جنتا پارٹی (بی جے پی) کے زیرِ قیادت بھارتی…