हाल ही में एक इंटरव्यू में भारत के नए सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा कि कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत पारंपरिक सैन्य अभियानों के लिए मौजूद है। किसी वरिष्ठ सैन्य अधिकारी का यह पहला बयान है जो इस सिद्धांत के अस्तित्व की पुष्टि करता है। इस वजह से यह बहस फिर छिड़ गई है कि शायद भारत कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत वापस ले आया है। कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत २००१ के संसद हमले के बाद प्रस्तुत किया गया था जिससे कुछ विवाद भी हुआ। इस बयान के निहितार्थ क्या हैं? क्या इसका कोई गहरा सामरिक निहितार्थ है, या यह सिर्फ एक और असफल गीदड़ भभकी है जिससे कुछ खास नही होने वाला ?
कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत कोई नई संकल्पना नहीं है। यह अंततः अप्रभावी ऑपरेशन पराक्रम में तेज़ी से लामबंद करने में भारतीय सेना की असमर्थता से निकला है। इस सीमित युद्ध सिद्धांत (limited war doctrine) में कई हमलों के लिए आठ एकीकृत युद्ध समूहों की त्वरित लामबंदी की परिकल्पना की गई। लक्ष्य था (1) दुश्मन के सेना को महत्वपूर्ण छति पहुँचाना (2) बारगेनिंग चिप के रूप में इस्तेमाल करने के लिए कुछ पाकिस्तानी क्षेत्र पर क़ब्ज़ा बनाए रखना (3) पाकिस्तानी परमाणु प्रतिक्रिया के आरंभ से बचना। इस सिद्धांत के कुछ बुनियादी नियम एक दशक पहले जनरल सुंदरजी कृष्णास्वामी के लेखों में देखे जा सकते हैं जो विकसित हो कर अब “प्रोएक्टिव मिलिट्री ऑपरेशन” से जाना जाता है। हालांकि यह नाम निश्चित रूप से कम विवादास्पद है, दोनों सिद्धांतों का उद्देश्य एक ही है।
सिद्धांत की उपयोगिता
कोल्ड स्टार्ट बहस से दो महत्वपूर्ण सवाल उठते हैं: क्या यह रणनीति भारतीय रक्षा नीति या उसके दिखावे के लिए उपयोगी रही है ? और क्या इस सिद्धांत का सच में इस्तेमाल किया जा सकता है? दोनों का जवाब ना है। कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत और ऑपरेशन पराक्रम के बाद इसके सनसनीख़ेज़ प्रचार से उपमहाद्वीप में काफी अस्थिर करने वाली घटनाएँ हुईं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण घटना यह थी कि पाकिस्तान ने फुल स्पेक्ट्रम डिटरन्स की रणनीति विकसित की और सामरिक परमाणु मिसाइल हत्फ-९ (नस्र) बना लिया।और इसी दौरान ही पाकिस्तान ने ७५० किलोमीटर मारक छमता वाली परमाणु सक्षम बाबर क्रूज मिसाइल और ३५० किलोमीटर मारक छमता वाली परमाणु सक्षम राड एयर क्रूज मिसाइल विकसित की। पाकिस्तान का लक्ष्य यह संकेत देना था कि परमाणु सीमा के तहत लिए गये भारतीय सैन्य कार्रवाई का जवाब परमाणु प्रतिशोध से दिया जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो पाकिस्तानी परमाणु हथियारों का उद्देश्य भारतीय पारंपरिक कार्रवाई को रोकना था।
कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत का महत्वपूर्ण परीक्षण २६ नवंबर २००८ के मुंबई हमलों के बाद हुआ। हालांकि कोल्ड स्टार्ट वास्तव में इसी परिदृश्य के लिये तैयार किया गया था जिसमे पाकिस्तान से आने वाले प्रमुख आतंकी हमले का जवाब भारतीय सैन्य बल अचानक और निर्णायक तरीके से दे सके, इस सिद्धांत का प्रयोग नहीं किया गया। अंत में, कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत ने जो दंडात्मक विकल्प पेश किये थे वह व्यवहार्य नहीं थे। यह सुनिश्चित करने का कोई तरीका नही था कि पाकिस्तानी क्षेत्र में भारत द्वारा पारंपरिक प्रवेश का जवाब परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से नही दिया जायेगा। यह एक चिंता का विषय है जो अब तक बना हुआ है।
इस व्याख्या से कुछ निष्कर्ष निकलते हैं। पहला, यह सच है कि जनरल रावत द्वारा कोल्ड स्टार्ट की चर्चा किसी सेना प्रमुख द्वारा इस सिद्धांत की मौजूदगी का पहला वाक्य है । पर इसके अस्तित्व के बारे में विद्वानों और निर्णय निर्माताओं द्वारा व्यापक रूप से काफी चर्चा हो चुकी है। इस प्रकार से बयान का “ शॉक” मूल्य काफी कम है। दूसरा, और शायद अधिक महत्वपूर्ण भी, पाकिस्तान को जनरल रावत के बयान के बारे में चिंता करने की कोई वजह नहीं है। दो दशकों से उसे कोल्ड स्टार्ट के बारे में पता है और इसको रोकने के लिए उसने कदम भी उठा लिए हैं। विवादास्पद रूप से, इस संबंध में पाकिस्तान द्वारा न्यूक्लियर थ्रेशहोल्ड को कम करना काफी हद तक एक सफल उपक्रम रहा है क्योंकि यह समय समय पर आतंकी हमलों के जवाब में दंडात्मक भारतीय सैन्य कार्रवाई रोकने में सक्षम रहा है।
सामरिक निहितार्थ
जबकी कोल्ड स्टार्ट से संबंधी बयान भारतीय सैन्य सोच में किसी भी गहरे रणनीतिक बदलाव की निशानदेहि नहीं करता है और पाकिस्तान को इससे चिंतित नहीं होना चाहिए, पोस्ट “सर्जिकल स्ट्राइक” युग में इस बयान की एक प्रमुखता है। अगर इसका कुछ भी मतलब है तो वह यह है कि जनरल रावत की टिप्पणी भारत सरकार की नई नीति पर बल देती है जिसके तहत भारत पाकिस्तानी अपराध का जवाब सैन्य बल के प्रयोग के साथ देगा । फिर भी २९ सितंबर, २०१६ को भारत द्वारा की गई “सर्जिकल स्ट्राइक” को कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत का प्रयोग समझना गलत होगा। कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत के अनुसार तीन आक्रमण संरचनाओं में आठ एकीकृत युद्ध समूह के साथ पाकिस्तानी क्षेत्र में हमला करना नियंत्रण रेखा पर तैनात अनियमित बलों पर एक निम्न स्तर आक्रमण नही होगा। यह युद्ध का प्रदर्शन होगा।
अंत में, जब भारतीय सेना प्रमुख यह बयान देते हैं कि पारंपरिक सैन्य अभियानों के लिए कोल्ड स्टार्ट अब भी मौजूद है तो यह याद रखना महत्वपूर्ण हो जाता हैं कि ताली दोनों हाथ से बजती है। स्वचालित सीढ़ी (escalatory ladder) को दो एक्टर प्रभावित करते हैं और यह तय करते हैं कि शत्रुता या युद्धस्थिति पारंपरिक रहेगी या नहीं। इस संबंध में, भारतीय सशस्त्र बलों को ऐसा पारंपरिक युद्ध लड़ने का सिद्धांत चाहिए जो क्षेत्र को परमाणु विनिमय में धकेले बिना इस्तेमाल किया जा सकता है। मौजूदा स्थिति में कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत से इस संबंध में कुछ ज्यादा उम्मीद नही की जा सकती है।
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Image 1: Flickr, Jaskirat Singh Bawa
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