2008 के बाद, भारत और पाकिस्तान ने महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय शस्त्र/हथियार नियंत्रण वार्ता नहीं की है, जो 1980 के
दशक के बाद से ऐसी चर्चाओं के बिना सबसे लंबी अवधि है। इस विलम्ब के दो प्रशंसनीय नीतिगत स्पष्टीकरण हैं:
प्रथम, भारत और पाकिस्तान हथियार नियंत्रण पर चर्चा, आम तौर पर “समग्र सुरक्षा संवाद” (Composite
Dialogue Process) के अंतर्गत करते हैं जो कई कारणों — जैसे कश्मीर के लंबित मुद्दे के समाधान ना होने के
कारण — डेढ़ दशक से अधिक समय से ठीक से संचालित नहीं हो पाया है| द्वितीय, द्विपक्षीय हथियार नियंत्रण
वार्ता हेतु कोई समर्पित स्थायी मंच अस्तित्व में नहीं है।
द्विपक्षीय व्यवहारिक हथियार नियंत्रण समझौतों का मौजूदा समूह, तीव्र गति से, विकसित हो रहे सैन्य परिदृश्य में
व्याख्या, कार्यान्वयन और अनुप्रयोग की बढ़ती चुनौतियों के अधीन है| अत: पारस्परिक निरोध को कैसे प्रबल किया
जाए, इसकी आपसी समझ में कमी आई है| नवनिर्वाचित सरकारों के आने से, नई दिल्ली और इस्लामाबाद में, एक
नई ऊर्जा पैदा हुई है, जो भारत-पाकिस्तान के कूटनीतिक रिश्तों को नई दिशा दे सकती है| इस बदलते राजनैतिक
परिपेक्ष में, हथियार नियंत्रण पर एक द्विपक्षीय परामर्श-कर्ता आयोग (Bilateral Consultative Commission)
(बीसीसी) की स्थापना पर विचार करने का यह एक उपयुक्त समय हो सकता है।
1988 से 2008 तक, भारत और पाकिस्तान ने व्यवहारिक हथियार नियंत्रण वार्ता की एक श्रृंखला आयोजित की
थी और कई समझौतों पर हस्ताक्षर भी किए थे| इस प्रयास को पुनः प्रारम्भ करने हेतु दोनों देशों के पास सम्मिलित
राजनैतिक पूंजी उपलब्ध है| एक सुविचारित अधिदेश के साथ हथियार नियंत्रण पर बीसीसी की स्थापना से दोनों
देशों को परस्पर वार्ता में आने वाले व्यवधानों को कम करने में (सुनियोजित) सहायता मिलेगी और दक्षिण एशिया
में हथियार नियंत्रण हेतु एक सार्थक भविष्य भी कायम होगा|
हथियार नियंत्रण और वर्तमान समय
नियमित हथियार नियंत्रण प्रक्रिया का अभाव भारत और पाकिस्तान के अंतर्गत पहले से ही दुर्बल रणनीतिक
स्थिरता को और दुर्बल करता है| मौजूदा समझौते, जैसे परमाणु प्रतिष्ठानों और सुविधाओं के विरुद्ध हमले पर
प्रतिबंध (1988), सैन्य अभ्यास, युद्धाभ्यास और सैन्य आंदोलनों की अग्रिम सूचना (1991), हवाई क्षेत्र के
उल्लंघन की रोकथाम (1991), समझौता ज्ञापन (1999), और अस्त्रविज्ञान प्रक्षेपास्त्र (ballistic missile) के
उड़ान परीक्षण (2005) की पूर्व-अधिसूचना, सभी व्याख्या, कार्यान्वयन और अनुप्रयोग से संबंधित समस्याओं के
अधीन हैं। ये चुनौतियाँ सैन्य प्लेटफार्मों की बढ़ती सघनता और सीमा, नई सैन्य क्षमताओं और तैनाती स्वरूप, बलों
के पुनर्गठन और ‘साइबर’ कार्यक्षेत्र के उद्भव के कारण हैं।
औपचारिक और अनौपचारिक हथियार नियंत्रण चर्चा के बिना, दोनों भारत और पाकिस्तान अनियमित सैन्य
उपक्रमों में संलग्न हो रहे हैं| इनमें ‘पारस्परिक निरोध स्थिरता’ को नज़र अंदाज़ कर के, आधुनिक हथियारों और
आक्रामक सैन्य मुद्राओं का परिचय शामिल है| दोनों भारत और पाकिस्तान प्रतिद्वंद्वी के रूप में, अपनी धमकियों को
और अधिक विश्वसनीय बनाने हेतु अपने युद्ध शैली के सिद्धांतों को तीव्रता से क्रियान्वित कर रहे हैं। भारत अपनी
“No-First Use” प्रतिबद्धता, अपने परमाणु त्रय के संचालन, अस्त्रविज्ञान प्रक्षेपास्त्र रक्षा निर्माण, उच्च परिशुद्धता
हाइपरसोनिक मिसाइल सिस्टम की तैनाती, ख़ुफ़िया, निगरानी और टोही (ISR) क्षमताओं को बढ़ाने और
एकीकृत करने के उदेश्श्य एवं अपने सशस्त्र बलों के पुनर्गठन हेतु संदेह की भावना उजागर कर रहा है| अपनी दुर्बल
पारंपरिक शक्ति और आर्थिक स्वास्थ्य के कारण, पाकिस्तान तथाकथित “सामरिक परमाणु हथियारों” सहित
विभिन्न श्रेणी (range) के साथ विभिन्न प्रकार के वितरण साधनों को पेश कर “पूर्ण स्पेक्ट्रम निरोध” (full
spectrum deterrence) लागू कर रहा है। पर्याप्त प्रबंधन और संयम के बिना द्विपक्षीय सैन्य प्रतिस्पर्धा ग़लत
अनुमानों, दुर्घटनाओं, या कथित कमज़ोरी के आधार पर पहली “हड़ताल” के आकर्षण के जोखिम के प्रति संवेदनशील
है।
फरवरी 2021 में, कश्मीर सीमा पर युद्धविराम प्रतिज्ञा को नवीनीकृत कर और विद्यमान व्यवहारिक हथियार
नियंत्रण समझौतों का औपचारिक रूप से पालन जारी रखकर, भारत और पाकिस्तान ने क्षेत्रीय शांति और स्थिरता
को प्रबलता प्रदान की थी| इन प्रयासों के पश्चात, अग्रिम रूप से, दोनों भारत और पाकिस्तान के नवनिर्वाचित
सरकारों के मध्य में शांति वार्ता की संभावना में वृद्धि आई थी| उदाहरण हेतु, पाकिस्तान के तीन बार के पूर्व प्रधान
मंत्री, और (पाकिस्तान के) सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के प्रमुख, नवाज़ शरीफ़ ने हाल के महीनों में भारत के प्रति
(सकारात्मक) रुख अपनाया है| इस सन्दर्भ में, ये स्मरण करना अनिवार्य है, कि शरीफ़ ने पहले भी भारत के साथ
रिश्ते सुधारने के प्रयास किए थे और इस मुहिम में फरवरी 1999 में तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री अटल बिहारी
वाजपेयी के साथ “लाहौर घोषणा” पर हस्ताक्षर भी किए थे| भारत आज भी, इन प्रस्तावों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन
कर रहा है, जो आशा की किरण के समान है|
भारत और पाकिस्तान की सरकारें अपने कार्यकाल के पहले दो वर्षों के दौरान साहसी विदेश नीति का प्रमाण देती नज़र
आ रही है| इस संदर्भ में, अगर भारत और पाकिस्तान, स्थायी रूप से, बातचीत अगर पुन: प्रारंभ करते हैं, तो वे संयुक्त
रूप से बीसीसी की स्थापना पर विचार-विमर्श कर सकते हैं| यह प्रस्तावित आयोग भारत और पाकिस्तान को
हथियार नियंत्रण से सम्बंधित मुद्दों पर वार्ता करने हेतु एक स्थायी तंत्र प्रदान कर सकती है — जिसके अंतर्गत,
दोनों हस्ताक्षरकर्ता भारत और पाकिस्तान, विद्यमान समझौतों के उद्देश्यों और कार्यान्वयन को अधिक बढ़ावा देने में
सक्षम हो सकते हैं| भारत और चीन भी इसी तरह के एक आयोग की स्थापना पर विचार-विमर्श कर सकते हैं।
समय के साथ, पाकिस्तान और भारत तथा भारत और चीन के बीच संबंधों में सुधार आने के बाद, तीनों देश
त्रिपक्षीय हथियार नियंत्रण समझौते और एक त्रिपक्षीय आयोग की संभावित स्थापना पर भी विचार-विमर्श कर
सकते हैं। यह ध्यान रखना अनिवार्य है कि सामान्य सुरक्षा मुद्दों, भूमिकाओं और दायित्वों की पहचान से संबंधित
विषयों पर, एक द्विपक्षीय आयोग की तुलना में एक त्रिपक्षीय आयोग का संस्थापन संभावित रूप से अधिक
चुनौतीपूर्ण है|
वर्तमान स्थिति में, एक त्रिपक्षीय आयोग की तुलना में द्विपक्षीय आयोग का निर्माण अधिक आकर्षक है। भारत और
पाकिस्तान ने द्विपक्षीय हथियार नियंत्रण संरचनाएँ, मुद्राएँ और पारस्परिक हित पहले से ही स्थापित किए हैं।
यद्यपि, त्रिपक्षीय संरचनाएँ स्थापित करना दीर्घावधि में लाभ दायक है, वर्तमान समय में, कोई मौजूदा त्रिपक्षीय
ढांचा नहीं है जिसका अनुकरण किया जा सके। फिर भी, तीनों देश प्रतिबद्धताओं, बुनियादी ढांचे, संसाधनों और
रणनीतिक विश्लेषणों को विकसित करने पर काम करना प्रारंभ कर सकते हैं| किसी द्विपक्षीय व्यवस्था को किसी
तीसरे पक्ष के साथ जोड़ने से बातचीत में समन्वय की समस्या पैदा हो सकती है, जिससे कोई भी अंतिम समझौता
राजनीतिकरण और विवादों में घिर सकता है|
द्विपक्षीय सलाहकार आयोग की अनिवार्यता
प्रस्तावित आयोग को सीमित अधिकार के साथ शुरुआत करनी चाहिए तथा निम्नलिखित कार्यों पर ध्यान केंद्रित
करना चाहिए: 1. विद्यमान समझौतों के प्रावधानों के अनुपालन की निगरानी 2. अनुपालन में विश्वास बढ़ाने हेतु
सूचना के स्वैच्छिक और सुविधाजनक आदान-प्रदान — इन दोनों विषयों पर अधिक ध्यान केन्द्रित करना चाहिए|
समय के साथ, भारत और पाकिस्तान को आयोग के अधिकार का विस्तार करने के बारे में सोच विचार भी करना
चाहिए ताकि नए व्यवहारिक और संरचनात्मक हथियार नियंत्रण उपायों के लिए उपयुक्त प्रस्तावों को हथियार
नियंत्रण समझौतों के अंतर्गत लाया जा सके —- तथा सत्यापन प्रयोजनों के लिए राष्ट्रीय तकनीकी साधनों के
संचालन को विनियमित भी किया जा सके|
सीमित अधिदेश के साथ बीसीसी की शुरुआत भारत और पाकिस्तान की विद्यमान हथियार नियंत्रण नीतियों का
पूरक होगी —- जहाँ एक ओर, बीसीसी की स्थापना दोनों परमाणु प्रतिद्वंद्वियों को मौजूदा समझौतों के उद्देश्यों
और कार्यान्वयन को बढ़ाने के लिए नियमित रूप से काम करने की अनुमति देगी — वहीं दूसरी ओर, यह व्यापक
सुरक्षा वार्ता के हिस्से के रूप में प्रबल हथियार नियंत्रण वार्ता हेतु गुणवत्तापूर्ण निवेश का कार्य करेगी| दोनों भारत
और पाकिस्तान के नेताओं ने इस तरह के विचार को समझौता ज्ञापन (MoU) के माध्यम से अपनी स्वीकृति दी थी
— जो आज 1999 की ऐतिहासिक लाहौर घोषणा का अभिन्न अंग है। 1999 की घोषणा के बाद, समग्र वार्ता का
केवल एक दौर (2004-2008) ही संपन्न हो पाया था| सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी के आधार पर, दोनों
भारत और पाकिस्तान ने वार्ता के दौरान द्विपक्षीय हथियार नियंत्रण तंत्र के विचार पर न तो पूरी तरह चर्चा की थी,
और न ही इस मुद्दे को पूर्ण तरह निष्कासित किया था —- ऐसी स्थिति में यह ज्ञात होता है की इस विषय पर
और अधिक विचार करना अनिवार्य है|
ऐतिहासिक रूप से, संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के बीच स्थिरता कूटनीति को सफलतापूर्वक
विकसित किया है, और अमेरिका को इस विरासत को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। इस पहल को
प्रोत्साहन देने हेतु, भावी हैरिस या दूसरा ट्रम्प प्रशासन दक्षिण एशिया के प्रति अमेरिकी नीति पर अपनी छाप
छोड़ सकता है, जिससे इस क्षेत्र में अधिक पारदर्शिता और स्थिरता को बढ़ावा मिल सकता है| पहले कदम के रूप
में, वाशिंगटन को दक्षिण एशियाई मामलों में अपनी रुचि पुनः प्रदर्शित करते हुए, भारत और पाकिस्तान के बीच
एक परिष्कृत शक्ति संतुलनकर्ता (sophisticated power balancer) के रूप में अपनी भूमिका सिद्ध करनी
चाहिए| भारत के साथ अपनी विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी के समानांतर, संयुक्त राज्य
अमेरिका अफ़्ग़ानिस्तान से सटे अशांत सीमावर्ती क्षेत्रों में आतंकवाद की बढ़ती लहर के विरूद्ध इस्लामाबाद द्वारा
हाल ही में प्रारंभ की गई मुहिम “अज़्म-ए-इस्तेहकाम” के अंतर्गत पाकिस्तान को सैन्य सहायता प्रदान कर सकती है|
इसके अतिरिक्त, अमेरिका एक मज़बूत और कुशल ढांचे के साथ एक गैर-नाटो सहयोगी (Non-NATO ally) के रूप
में पाकिस्तान की स्थिति को पुनर्जीवित कर सकती है| संयुक्त राज्य अमेरिका पाकिस्तानी वस्तुओं पर पर टैरिफ भी
कम कर सकती है तथा हरित ऊर्जा, आईटी, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन और सुशासन के क्षेत्र में इस्लामाबाद के साथ
सहयोग विकसित करने के अवसर भी खोज सकती है|
इसके अतिरिक्त, अमेरिकी राष्ट्रपति का एक गैर-निजी दूत बीसीसी के ऊपर संयुक्त रूप से विचार करने के लिए,
दिल्ली और इस्लामाबाद का दौरा भी कर सकता है। वाशिंगटन आयोग की स्थापना और संचालन में औपचारिक
या अनौपचारिक तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करने की अपनी इच्छा भी व्यक्त कर सकती है| इस प्रक्रिया
को सामान्य रूप से, पूरक बनाने के लिए ट्रैक II कूटनीति का भी सहारा लिया जा सकता है| अंततः, भारत और
पाकिस्तान एक दूसरे के परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमलों के निषेध से संबंधित अपने सबसे पुराने परमाणु समझौतों में
से एक का उत्सव मनाने हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन भी कर सकते हैं और इस अवसर के दौरान
बीसीसी की स्थापना की घोषना भी कर सकते हैं|
1988 से 2008 तक, भारत और पाकिस्तान ने किसी भी अन्य विरोधी युग्म की तुलना में अधिक व्यवहारिक
हथियार नियंत्रण समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे, जिससे अप्रत्याशित संकटों को टालने के लिए व्यावहारिक
व्यवस्था का सजग निर्माण हुआ था| जबकि मौजूदा समझौते ग़लत व्याख्या के अधीन हैं, जो उभरते सैन्य माहौल में
उनके कार्यान्वयन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं, दोनों भारत और पाकिस्तान की नई सरकारों के
समक्ष यह एक दुर्लभ अवसर है! नई दिल्ली और इस्लामाबाद को बीसीसी के रूप में, दक्षिण एशिया में रणनीतिक
स्थिरता बनाए रखने हेतु —मौजूदा राजनीतिक पूंजी के कारण सुनहरा अवसर मिला है —- क्योंकि बीसीसी के
माध्यम से नई दिल्ली और इस्लामाबाद रणनीतिक स्थिरता बनाए रखने की दिशा में एक ठोस कदम उठा सकते हैं
और एक विशिष्ट और पारस्परिक रूप से सहमत जनादेश के साथ बीसीसी की स्थापना कर सकते हैं|
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Image 1: Joshua Song, Flickr
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