भारत-चीन भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को परंपरागत रूप से महाद्वीपीय दृष्टि से देखा जाता रहा है, जिसके अंतर्गत दोनों पड़ोसियों के बीच सीमा विवाद उनकी प्रतिस्पर्धा के अन्य पहलुओं पर हावी होता रहा है। हालाँकि, जैसे-जैसे महाद्वीपीय पड़ोसी समुद्र को नियंत्रित कर रहे हैं, और अपने हितों को सुरक्षित कर रहे हैं, हिंद महासागर के द्वीपीय देश बीजिंग और नई दिल्ली के बीच आर्थिक और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के नए स्थानों के रूप में उभर रहे हैं। इस बात का घोतक मालदीव और श्रीलंका में हाल ही में हुए राष्ट्रपति चुनाव तथा पश्चिमी हिंद महासागर (डब्ल्यूआईओ) के द्वीपों, जैसे कोमोरोस, मेडागास्कर, सेशेल्स और मॉरीशस में हाल के घटनाक्रम है| इस क्षेत्र में प्रारंभिक ऐतिहासिक भागीदारी के माध्यम से बढ़त के बावजूद, भारत अब इस बढ़ती प्रतिस्पर्धा में चीन से पिछड़ रहा है। इससे पहले कि बीजिंग भारत को पीछे धकेल दे, नई दिल्ली को इस क्षेत्र में पसंदीदा साझेदार बनने के लिए सुधारात्मक क़दम उठाने होंगे।
इतिहास: एक साझा विभाजक
लगभग दो शताब्दियों पहले, भारत हिंद महासागर के कई देशों में अनुबंधित श्रमिकों का स्रोत था। हालाँकि, बीजिंग के भी मॉरीशस, सेशेल्स और मेडागास्कर जैसे द्वीपीय देशों के साथ अपेक्षाकृत कम ज्ञात रिश्ते थे। 1800 के दशक में, दक्षिणी चीन के लोग औपनिवेशिक बागानों में काम करने के लिए डब्ल्यूआईओ द्वीपों पर आकर बस गए। इन ऐतिहासिक रुझानों ने दोनों आधुनिक शक्तियों को द्वीपीय देशों के साथ प्रबल प्रवासी संबंध, सांस्कृतिक समानताएँ और आर्थिक संबंध प्रदान किए हैं।
1960 और 1970 के दशक में अपनी स्वतंत्रता के उपरांत भारत ने इन ऐतिहासिक संबंधों का लाभ उठाकर विभिन्न हिंद महासागरीय देशों के साथ कूटनीतिक, रक्षा और विकासात्मक साझेदारियाँ स्थापित कीं। 1981 में, नई दिल्ली ने मालदीव के साथ एक व्यापार समझौता किया। भारत ने सेशेल्स रक्षा अकादमी और मॉरीशस में महात्मा गांधी संस्थान की स्थापना में भी सहायता की। सैन्य दृष्टि से भी, नई दिल्ली इस क्षेत्र में कई हस्तक्षेपों में सम्मिलित रही, जिनमें 1986 में सेशेल्स और मालदीव में क्रमशः ऑपरेशन फ्लावर्स आर ब्लूमिंग और 1988 में ऑपरेशन कैक्टस शामिल हैं। ऐसे अभियानों के माध्यम से, भारत न केवल समुद्री पड़ोस में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने में सक्षम रहा, बल्कि राजनीतिक स्थिरता को भी बनाए रखने और उसकी रक्षा करने में समर्थ रहा। यद्यपि चीन भी स्वतंत्रता के बाद से डब्ल्यूआईओ देशों के साथ जुड़ा हुआ है – लेकिन इस क्षेत्र ने बीजिंग के लिए रणनीतिक महत्त्व इक्कीसवीं सदी के प्रारम्भ से ही प्राप्त कर लिया था| नई दिल्ली के विपरीत, बीजिंग ने अधिक व्यापारिक रुख़ अपनाया है, और कई चीनी कंपनियों ने इस क्षेत्र में अपना विस्तार किया है, जो बीजिंग के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव और सैन्य उपस्थिति से जुड़ा हुआ है। कुछ मामलों में, यह दृष्टिकोण विवादास्पद और अलोकप्रिय साबित हुए हैं|
यद्यपि नई दिल्ली ने बीजिंग से दशकों पहले ही हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति स्थापित कर ली थी, लेकिन हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में उसकी उपस्थिति चीन की तुलना में कम हो गई है।
बीजिंग के पीछे रहना
यद्यपि नई दिल्ली ने बीजिंग से दशकों पहले ही हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति स्थापित कर ली थी, लेकिन हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में उसकी उपस्थिति चीन की तुलना में कम हो गई है। जबकि चीन के हिंद महासागर के सभी छह द्वीप देशों में राजनयिक दूतावास हैं, नई दिल्ली के केवल पाँच देशों में ही दूतावास हैं; मेडागास्कर में राजनयिक दूतावास कोमोरोस के काम को भी देखता है। द्वीपों के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों के बावजूद, भारत ने इस क्षेत्र को एक समग्र ढाँचे में पिरोने का प्रयास नहीं किया है। बीजिंग, चीन-हिंद महासागर क्षेत्र मंच और चीन-अफ्रीका सहयोग मंच जैसे क्षेत्र-व्यापी तंत्रों के तहत द्वीपीय देशों के साथ संवाद करता है। नई दिल्ली ने कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन जैसी समुद्री सुरक्षा पहलों का नेतृत्व करने का भी प्रयास किया है। हालाँकि, इस समूह की सदस्यता सीमित है और इसमें हिंद महासागर के सभी द्वीपीय देश समिल्लित नहीं हैं। भारत को भी कई बार इन देशों में हुए राजनीतिक परिवर्तनों से झटका लगा है, जैसे कि जब मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़ू 2023 में सत्ता में आए और प्रारम्भ में बीजिंग की ओर झुके। इसके विपरीत, बीजिंग सक्रिय भागीदारी के माध्यम से द्वीपीय देशों के बीच अपनी एक चीन नीति के लिए समर्थन जुटाने में सफल रहा है।
व्यापार में, भारत और चीन दोनों ही द्वीपीय देशों के साथ व्यापार अधिशेष भोग रहे हैं, परंतु बीजिंग द्वारा निर्यातित वस्तुओं में अधिक विविधता है। चीनी निर्यात भारी मशीनरी, विद्युत उपकरण, विद्युत बैटरियाँ, नाव संचालक शक्ति, वितरण ट्रक, क्रेन और फर्नीचर जैसे पूँजी गहन उद्योगों पर हावी है, जबकि भारतीय उत्पाद बड़े पैमाने पर कृषि पर आधारित है (सेशेल्स को छोड़कर)। यह विविधता बीजिंग को न केवल इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मज़बूत करने में सहायता करती है, बल्कि उसे रणनीतिक रूप से भी मज़बूत बनाती है। उपभोक्ता-केंद्रित कृषि उत्पादों के बजाय पूँजीगत वस्तुओं का निर्यात करके, चीन प्राप्तकर्ता देशों के विविध क्षेत्रों में पैठ बनाने, ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने और विनिर्माण क्षेत्र के विकास में सहायता करने में सक्षम है।
चीन का आर्थिक प्रभाव इन रणनीतिक रूप से स्थित देशों में उसके सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों द्वारा निभाई गई भूमिका के माध्यम से भी प्रकट होता है। बीजिंग सहायता प्रदान करने में सक्रिय है और विदेशी ग़ैर सरकारी संगठनों और निजी संगठनों के माध्यम से निवेश को दिशा प्रदान करता है, तथा इन द्वीपीय देशों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने वाले बुनियादी ढांचे के विकास और समुदाय-उन्मुख परियोजनाओं का नेतृत्व करता है। उदाहरण के लिए, कोमोरोस द्वीप में, जो एक महत्त्वपूर्ण समुद्री जलमार्ग पर स्थित है और हाइड्रोकार्बन भंडारों तथा दुर्लभ मृदा खनिजों का खज़ाना है, वहाँ बीजिंग सक्रिय भूमिका निभा रहा है। मलेरिया उन्मूलन की दिशा में की गई पहलों और सड़कों, हवाई अड्डा परिसरों, स्टेडियमों और सरकारी भवनों जैसे प्रभावशाली बुनियादी ढाँचे के निर्माण के माध्यम से, चीन ने कोमोरोस में अपनी व्यापक उपस्थिति दर्ज कराई है। इसके विपरीत, नई दिल्ली सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों जैसे मौजूदा सरकारी तंत्रों पर अत्यधिक निर्भर है और उसके निजी क्षेत्र की उपस्थिति अधिकांशतः बड़े समूहों तक ही सीमित है।
चीन इस क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति भी बढ़ा रहा है। अमेरिकी रक्षा विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार, बीजिंग द्वारा विदेशी सैन्य ठिकानों के लिए चुने गए कुछ स्थलों में से कई हिंद महासागर में स्थित हैं। ऐसे समाचार हैं कि कोमोरोस हिंद महासागर में अगले चीनी अड्डे के रूप में उभर सकता है। इस संबंध में, बीजिंग नियमित रूप से सर्वेक्षण-सह-अनुसंधान पोत भेज रहा है, जो गहरे समुद्र में अन्वेषण और जल के नीचे की स्थलाकृति, लवणता, समुद्री धाराओं और आसपास के वातावरण से संबंधित महत्त्वपूर्ण डेटा के संग्रह में शामिल हैं, जो गहरे समुद्र में खनन में सहायता करते हैं। इसके अतिरिक्त, ग्रे ज़ोन युद्ध के एक हिस्से के रूप में, चीन द्वारा प्रायोजित नागरिक मछली पकड़ने वाले बेड़े के रूप में कार्यरत हैं, जिनका चीनी तटरक्षक बल और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध है। 2024 में, चीन ने मालदीव के साथ एक गुप्त रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए, उस समय जब भारतीय रक्षा कर्मियों को मालदीव छोड़ने के लिए कहा गया था। इन घटनाक्रमों ने नई दिल्ली के लिए बढ़ते समुद्री ख़तरे और बीजिंग द्वारा भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यापक रणनीतिक हितों के लिए उत्पन्न किए जा रहे बड़े जोखिमों के बारे में धारणा को मज़बूत करने में सहायता की है।

फ़ासले को सीमित करना
महाद्वीपीय पड़ोस में भयंकर प्रतिस्पर्धा के विपरीत, समुद्री क्षेत्र में भारत और चीन कड़ी प्रतिस्पर्धा के प्रारंभिक चरण में हैं, जिसका उद्देश्य हिंद महासागर के रणनीतिक रूप से स्थित द्वीप देशों में अधिक प्रभाव प्राप्त करना है| 2015 में, बीजिंग के बढ़ते प्रभाव को मात देने हेतु भारत ने क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास (सागर) ढांचा प्रारम्भ किया, जिसने हिंद महासागर में नई दिल्ली की भूमिका को नया रूप दिया| इसके उपरांत, सहयोग और एकीकरण को और अधिक सुनिश्चित करने हेतु इसे सुरक्षा और विकास के लिए पारस्परिक और समग्र उन्नति (महासागर) दृष्टिकोण/नीति तक विस्तारित किया गया। 2024 में, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में अपना तीसरा कार्यकाल प्रारम्भ करते समय अपने शपथ ग्रहण समारोह में हिंद महासागर के द्वीपीय देशों के प्रमुखों को आमंत्रित किया। उसी वर्ष, चुनौतियों की परिवर्तित हो रही प्रकृति से निपटने के लिए, भारत ने मॉरीशस के अगालेगा द्वीप समूह में एक हवाई पट्टी का उन्नयन और एक जेटी का विकास भी किया, जिससे पी8आई पोसाइडन जैसे बड़े विमान निगरानी और टोही के लिए उड़ान भर सकेंगे। पूरी तरह से विकसित जेटी बड़े जहाज़ों को बंदरगाह पर लंगर डालने और मानवीय कार्यों को अंजाम देने में भी सक्षम बनाएगी।
फिर भी, चीन से प्रतिस्पर्धा करने के लिए, नई दिल्ली को हिंद महासागर में एक व्यापक सुरक्षा प्रदाता और एक केंद्रीय क्षेत्रीय खिलाड़ी के रूप में अपनी भूमिका को मज़बूत करने के लिए क़दम उठाने होंगे।
सर्वप्रथम, भारत को (महासागर) दृष्टिकोण/ नीति की ओर बढ़ते हुए द्वीपीय देशों के साथ अपने राजनयिक, संस्थागत, सैन्य और आर्थिक जुड़ाव को विकसित करना होगा | विशेष रूप से, नई दिल्ली को ऐसी संस्थागत व्यवस्थाओं को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा जो घरेलू राजनीतिक परिवर्तनों के समय संबंधों को स्थिरता प्रदान करेंगे|
भारत को (महासागर) दृष्टिकोण/ नीति की ओर बढ़ते हुए द्वीपीय देशों के साथ अपने राजनयिक, संस्थागत, सैन्य और आर्थिक जुड़ाव को विकसित करना होगा |
द्वितीय, चूंकि द्वीपीय राष्ट्र युद्ध और शांति दोनों ही समय में रक्षा की पहली पंक्ति होते हैं, इसलिए भारत को अपने सैन्य सहयोग को बढ़ाने की आवश्यकता है। इसमें न केवल अधिक रक्षा राजनयिक की नियुक्ति सम्मिलित होनी चाहिए, बल्कि द्वीपवासियों की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले उन्नत आधुनिक हथियारों में रक्षा सहयोग भी सुनिश्चित होना चाहिए, जिसमें उन्नत निगरानी ड्रोन और बड़े सैन्य जहाज़ शामिल हैं जो उनके बड़े ईईजेड (विशेष आर्थिक क्षेत्र) में गश्त में सहायता कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, नई दिल्ली को इन देशों के सशस्त्र कर्मियों के लिए क्षमता निर्माण प्रदान करना जारी रखना चाहिए और भारत में प्रशिक्षण के और अधिक पाठ्यक्रम प्रारम्भ करने चाहिए।
तृतीय, पूंजीगत वस्तुओं पर अधिक ज़ोर देने के अलावा, पर्यटन और चलचित्र जैसे उद्योग आर्थिक विविधता लाने के बेहतरीन अवसर प्रदान करते हैं। हिंद महासागर के द्वीप पारिस्थितिकी और पर्यटन के केंद्र हैं, और इन देशों के साथ भारत के ऐतिहासिक और प्रवासी संबंधों के बावजूद, इनमें से कई देशों में यूरोप से अधिक पर्यटक आते हैं। नई दिल्ली को पर्यटन संस्थानों के साथ सहयोग को संस्थागत बनाना चाहिए ताकि उन्हें भारतीयों के लिए पर्यटन स्थलों के रूप में भी बढ़ावा दिया जा सके। इसी प्रकार, विश्व में विशेष रूप से प्रदर्शित चलचित्र के सबसे बड़े निर्माताओं में से एक होने के नाते, भारत का चलचित्र उद्योग इन दर्शनीय स्थलों को भारतीय दर्शकों के लिए बढ़ावा देने और भारत और हिंद महासागर के देशों के बीच सांस्कृतिक संबंध बनाने में भूमिका निभा सकता है। आर्थिक संबंधों में और विविधता लाने के लिए, खाद्य एवं पेय पदार्थ, आतिथ्य, परिवहन और संचार जैसे आर्थिक क्षेत्रों में निजी क्षेत्र के सहयोग को संस्थागत बनाने के प्रयास भी किए जाने चाहिए।
अंतिम लेकिन महत्त्वपूर्ण बात यह है कि प्रत्येक देश में, नई दिल्ली को सभी राजनीतिक दलों के साथ संबंध विकसित करने होंगे। जिन दलों के साथ उसके ऐतिहासिक संबंध हैं, उनकी ओर अत्यधिक झुकाव उस देश के लिए अच्छा संकेत नहीं है जो इस क्षेत्र में अपना दबदबा बनाए रखने की आकांक्षा रखता है। इस विविध दृष्टिकोण की संभावित सफलता मॉरीशस में देखी जा सकती है, जहाँ मालदीव के विपरीत, नई दिल्ली ने सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ संबंध विकसित किए हैं, और सरकार बदलने के बावजूद ये संबंध लगातार प्रगाढ़ होते रहे हैं।
जैसा कि विदेश मामलों पर भारतीय संसदीय समिति की एक हालिया रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का नेतृत्व उसके भू-राजनीतिक और आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि, ऐसा प्रभावी ढंग से करने के लिए, भारत को द्वीपीय देशों के प्रति खुलापन, समन्वय और समझदारी दिखानी होगी, और कूटनीति और प्रभुत्व, परंपरा और परिवर्तन, तथा प्रभाव और अखंडता के बीच उत्तम संतुलन बनाए रखना होगा।
Views expressed are the author’s own and do not necessarily reflect the positions of South Asian Voices, the Stimson Center, or our supporters.
This article is a translation. Click here to read the original in English.
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