रिपब्लिकन उम्मीदवार डॉनल्ड जे. ट्रम्प की विजय के साथ, संयुक्त राज्य अमेरिका के चुनावों से संबंधित अटकलों और उत्साह का अब अंत हो गया है | अमेरिका के चुनावी इतिहास में, 100 से अधिक वर्षों में यह प्रथम बार हुआ है कि कोई उम्मीदवार एक बार पहले राष्ट्रपति पद से निष्कासित होने के उपरान्त राष्ट्रपति बना है और परस्पर कार्यकाल के बिना ही सत्ता में वापस आ गया है। ट्रम्प की जीत का प्रभाव न केवल घरेलू स्तर पर पड़ेगा, बल्कि इस चुनाव परिणाम का असर पूरी दुनिया में दिखेगा |
इस समीकरण में दक्षिण एशिया कोई अपवाद नहीं है और दक्षिण एशिया ट्रम्प के “अमेरिका फर्स्ट” दृष्टिकोण के अंतर्गत विदेश और सुरक्षा नीति के सन्दर्भ में विशेष रूप से प्रभावित होगा| भारत, पाकिस्तान, और अफ़ग़ानिस्तान दक्षिण एशिया के साथ अमेरिका के अधिक जुड़ाव की आशा कर रहे हैं| परन्तु, अगर ट्रम्प की पहली पारी और उनका हालिया चुनाव अभियान हमारे लिए एक मापदण्ड है, तो वाशिंगटन की दक्षिण एशिया नीति हिंद-प्रशांत क्षेत्र हेतु उनके दृष्टिकोण से निर्देशित होगी| यह दृष्टिकोण ट्रम्प 1.0 के दौरान प्रदर्शित हुआ था|
प्रथम ट्रम्प प्रशासन द्वारा प्रतिपादित “इंडो-पैसिफिक रणनीति” का मूल उद्देश्य सहयोगियों और साझेदारों की सहायता से चीन के संशोधनवादी और बलपूर्वक व्यवहार के विरुद्ध “इंडो-पैसिफिक” में नियम-आधारित व्यवस्था सुनिश्चित करना था| बाइडेन प्रशासन ने चीन के साथ रणनीतिक प्रतिस्पर्धा को आगे बढ़ाते हुए चीन को एक “बढ़ता खतरा” करार दिया था और विभिन्न रणनीतिक क्षेत्रों में चीन के प्रभुत्व को कम करने के लिए सशक्त कदम उठाए थे| ट्रम्प 2.0 बीजिंग के विरुद्ध अधिक कठोर रुख अपनाकर बाइडेन की नीति को लागू करेंगे| इस सन्दर्भ में, अमेरिकी राष्ट्रपति-निर्वाचित ट्रम्प पहले ही चीन से आयात पर 60 प्रतिशत से अधिक टैरिफ़ लगाने का संकेत दे चुके हैं।
पिछले ट्रम्प और बाइडेन दोनों प्रशासनों के तहत अमेरिकी इंडो-पैसिफिक रणनीति की आधारशिला के रूप में भारत की भूमिका से पता चलता है कि यह ट्रम्प 2.0 में भी एक प्रमुख भागीदार होगा। संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच हितों का संगम, विशेषकर उभरते चीन की चुनौती, इस कूटनीतिक संबंध के प्रमुख प्रेरक हैं। भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी पूर्ववर्ती ट्रम्प कार्यकाल में विस्तारित हुई| इसका प्रमाण दोनों देशों के अंतर्गत विभिन्न आधारभूत रक्षा समझौतों की पूर्ति से लगाया जा सकता है — इन समझौतों ने भारत के लिए उत्प्रेरक का काम किया और इन समझौते के कारण, वाशिंगटन ने भारत को प्रमुख हथियारों की बिक्री हेतु मंज़ूरी दी, तथा चीन के साथ सीमा पर गतिरोध के दौरान भारत को सहायता भी प्रदान की। परिणामस्वरूप, अब अमेरिका ने भारत को उच्च पद्धति प्रदान की है और ऐसी अपेक्षा की जा सकती है कि अमेरिका ट्रम्प 2.0 के दौरान भी भारत का लाभार्थी रहेगा| ऐसी परिस्थिति में, पाकिस्तान और शेष दक्षिण एशिया के साथ अमेरिकी संबंधों पर प्रभाव पड़ने की प्रबल आशंका है|
2000 के दशक में, आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक युद्ध ने पाकिस्तान को संयुक्त राज्य अमेरिका का एक प्रमुख साझेदार बना दिया| लेकिन ट्रम्प के निर्णय और बाइडेन द्वारा दो दशकों के बाद 2021 में अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के कार्यान्वयन ने अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों को बिगाड़ दिया| परिस्थिति तब और विपरीत हो गई जब वाशिंगटन ने इस्लामाबाद पर तालिबान को समर्थन देने और तालिबान को पाकिस्तान में पनाह देने का आरोप लगाया| इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान को तब और अधिक निराशा का सामना करना पड़ा जब अमेरिका ने न केवल पाकिस्तान को अपनी हिंद-प्रशांत नीति से अलग कर दिया बल्कि दक्षिण एशिया में भारत को अपने सबसे महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में चिन्हित कर दिया।
पाकिस्तान के प्रति ट्रम्प की विदेश नीति संभवतः चीन के साथ प्रतिस्पर्धा और भारत-अमेरिका साझेदारी की बदलती धाराओं द्वारा निर्देशित होगी। इस्लामाबाद पर दक्षिण एशिया में आतंकवाद के विरुद्ध ठोस कार्यवाही करने और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के माध्यम से चीनी निवेश पर निर्भरता कम करने का दबाव भी बना रहने की उम्मीद है| दरअसल, ट्रम्प पाकिस्तान पर चीन के साथ अपने सामरिक और आर्थिक संबंधों को कम करने का दबाव भी डाल सकते हैं।
राष्ट्रपति-निर्वाचित ट्रम्प के चार वर्ष के कार्यकाल का स्थायी असर अफ़ग़ानिस्तान पर भी हो सकता है| ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल की तरह ही अंतर्राष्ट्रीय खर्च में कटौती करने का वादा किया है, ताकि वह अपने “अमेरिका फर्स्ट” दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित कर सकें| ऐसी परिस्थिति में, अफ़ग़ानिस्तान को अमेरिका द्वारा दी जाने वाली आर्थिक सहायता काम हो सकती है| इस दृष्टिकोण से अफ़ग़ानिस्तान में मानवीय संकट के परस्पर बढ़ने के भी कयास लगाए जा सकते है| बाइडेन प्रशासन के विपरीत, ट्रम्प प्रशासन के अफ़ग़ानिस्तान में खाद्य सुरक्षा, मानवाधिकार और महिला शिक्षा पहलों का समर्थन करने की संभावना तब तक कम है जब तक इन पहलों का सीधा रणनीतिक लाभ अमेरिका को नहीं होता|
अफ़ग़ानिस्तान के प्रति ट्रम्प का दृष्टिकोण विनाशकारी सिद्ध हो सकता है क्योंकि इससे खाद्य सुरक्षा प्रणाली दुर्बल हो सकती है और आर्थिक मंदी आ सकती है। इससे एक शून्य पैदा हो सकता है और रूस, चीन, तथा पाकिस्तान जैसे देश इस शून्य की पूर्ति हेतु दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपने पैर जमाने का प्रयास कर सकती हैं| हालाँकि, कुछ संकेत मिले हैं कि ट्रम्प अफ़ग़ानिस्तान को क्षेत्रीय शक्तियों के अधीन नहीं रहने देंगे, उदाहरण हेतु, ट्रम्प ने बगराम एयर बेस से अमेरिकी सैनिकों की वापसी पर असंतोष व्यक्त किया था और दावा किया था कि इस एयर बेस का प्रयोग चीन के विरुद्ध किया जा सकता था| लेकिन व्यावहारिक रूप से क्या होता है, यह देखना अभी बाक़ी है।
अंततः ट्रम्प की विदेश नीति दक्षिण एशिया की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था को महत्त्वपूर्ण आकार देगी (और ट्रम्प की विदेश नीति के अंतर्गत) हिंद-प्रशांत क्षेत्र के बदलते इतिहास में भारत का प्रमुख योगदान रहेगा| दुर्भाग्यवश, पाकिस्तान को संभवतः वाशिंगटन और बीजिंग दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने हेतु कठिन परिश्रम करना होगा। इस सन्दर्भ में, यदि ट्रम्प का “अमेरिका प्रथम” दृष्टिकोण काबुल का त्याग करती है, तो अफ़ग़ानिस्तान को संभवतः बाहरी शक्तियों की सहायता लेने की आवश्यकता हो सकती है|
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Image 1: Gage Skidmore via Flickr (cropped)
Image 2: Spc. De’Yonte Mosley via U.S. Army