मध्य पूर्व के दाएश नियंत्रित क्षेत्र पर अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन के हमले के बीच यह सवाल उठ रहे हैं कि दाएश के खतरे की उम्र कितनी है, चाहे वह खतरा अपने गढ़ के भीतर हो या खिलाफत की सीमाओं से बाहर। कुछ लोगों का कहना है कि दाएश अपनी पकड़ बनाये रखेगा जबकि कुछ दूसरे मानते हैं कि उसकी अत्यधिक क्रूरता, असंगत रणनीतियों, अंदरूनी विभाजन और अन्य कारणों की वजह से उसकी स्वयं अंतिम मौत हो जाएगी। हालांकि, जैसे जैसे दाएश मध्य पूर्व में क्षेत्र खो रहा है और उसकी आर्थिक शक्ति घटती जा रही है, वैसे वैसे दक्षिण एशिया में उसकी भविष्य में भूमिका के बारे में दिलचस्पी बढ़ रही है। बांग्लादेश और पाकिस्तान में हाल ही मे हुए दाएश द्वारा हमलों से संकेत मिलता है कि क्षेत्र में उसकी उपस्थिति विस्तारित हो रही है। अफगानिस्तान भी दाएश के बढ़ते खतरों का सामना कर रहा है जहां उसकी उपस्थिति खास कर राज्य के पूर्वी प्रांतों में बेदखल लोगों का पक्ष जीत कर बढ़ रही है। भारत में, दाएश के खतरे को “प्रबंधनीय, लेकिन गंभीर” माना जाता है।
जबकि आतंकवादी संगठन से जुड़े क्षेत्र से पकड़े गए लोगों की संख्या कहीं दूसरे क्षेत्रों की तुलना में छोटी है, लेकिन दक्षिण एशिया में दाएश द्वारा हमलों की बढ़ती तीव्रता, स्तर, और गहनता बढ़ते खतरे का संकेत करते हैं। अपनी वैचारिक अपील के कारण कमजोर व्यक्तियों को कट्टर बनाने के अलावा, मौजूदा आतंकवादी संगठनों से जोड़ने और अपने इरादों को अंजाम देने के लिए इन संबंधों का उपयोग करने की दाएश की प्रवृत्ति पर क्षेत्र में उसके बढ़ते भौगोलिक विस्तार से अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
दक्षिण एशिया में फैलते शिकंजे
यदि दाएश का ध्यान दक्षिण एशिया में क्षेत्र मजबूत करने पर केंद्रित रहा, तो सीरिया और इराक में तेजी से बढ़ने की तुलना में उसको अधिक सामरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। दक्षिण एशिया कि तुलनात्मक राजनीतिक स्थिरता, नरम सांप्रदायिक विभाजन, मजबूत राज्य–रक्षा संस्थान, और स्पष्ट रूप से विभिन्न राजनीतिक–आर्थिक संरचनाएँ और सामाजिक–सांस्कृतिक संदर्भ दाएश को घुसपैठ करने के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान नहीं करते हैं।
लेकिन हाल ही मे हुई घटनाएँ यह संकेत देती हैं कि यह प्रयास शायद व्यर्थ न जाए। 2015 से अब तक, दाएश द्वारा अफगानिस्तान में कम से कम 14 हमले हुए हैं और पाकिस्तान में लगभग इसके आधे, जिसमें सैकड़ों लोग मरे। इन हमलों ने क्षेत्र में इस आतंकवादी समूह की प्रत्यक्ष या संबद्ध उपस्थिति के डर को मजबूत कर दिया है। जबकि बांग्लादेश सरकार इस बात का इनकार करती है कि दाएश ने बांग्लादेश में एक शक्तिशाली उपस्थिति स्थापित कर ली है, पिछले साल जुलाई में बांग्लादेश की होली आर्टिसन बेकरी हमले पर दाएश की छाप पर इनकार नहीं किया जा सकता।
अपने इस नारे का साथ,“बाक़िया व ततमादद ” – यानी बाक़ी है और बढ़ता ही रहेगा – यह आतंकवादी समूह अपने पारंपरिक गढ़ों से परे अपने आधार का विस्तार करने का प्रयास कर रहा है। अपने खिलाफा में घुटन और संभवत:, खराब स्थिति का सामना करने की वजह से, दाएश रूप बदलते और बिखरे मॉडल के लिए स्थानीय संयोगशीलता को त्याग सकता है। क्षेत्रीय आतंकवादी समूहों और स्थानीय फ्रैंचाइज़ी और सहयोगियों के साथ (प्रमुख रूप से दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में) अवसरवादी साझेदारी या “सुविधा के सम्बन्ध” स्थापित करना इन प्रयासों का एक महत्वपूर्ण अंग है। साथ ही साथ, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आतंकवादी जिहादी गुटों को अपील करने में दाएश सफल हो सकत हैं क्योंकि यह गट अपनी वर्तमान शासक से असंतुष्ट हैं। संभवत: दाएश उन्हें अपने विस्तारवादी एजेंडे में सह-चयन कर सकता है। इस योजना के लिए साइबर एजेंडा निस्संदेह महत्वपूर्ण है। दाएश का वर्चुअल सैनिक जो रिमोट-नियंत्रित हमलों का निर्देशन करता है, खतरे से लड़ने की चुनौती को और भी मुश्किल बनाने के लिए तैयार है।
स्थानीय सरकारों सहित प्रासंगिक हितधारक “विलायत खोरासन” जैसे समूहों के खतरे को या तो बढ़ा चढ़ाकर या फिर उसको बहुत कम आंकते हैं, जो कुछ लोगों के ख्याल में एक इस्लामी खलीफा स्थापित करना चाहता है जो दाएश एक उप–समूह हो। अगर दाएश दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय नियंत्रण स्थापित करने में विफल भी रहता है, तब भी वह स्थानीय सहयोगी और वैचारिक संगठनों के जरिए खून खराबा फैला सकते है जिससे क्षेत्र पर खतरनाक प्रभाव पड़ेगा और वह लंबे समय तक अस्थिर बन सकता है।
चुनौती का मुकाबला
यह आवश्यक है कि दक्षिण एशियाई सरकारें पारंपरिक आतंकवादी संरचनाओं से निपटने के लिए एक साथ मिलकर काम करें और असुरक्षित कमजोर लोगों को तकलीफ दिए बगैर इस क्षेत्र में दाएश के विस्तार को रोकें। घरेलू स्तर पर, प्रतिवादी रणनीति के बीच संतुलन, जिसमें सेना, पुलिस और कानूनी कार्रवाई शामिल हैं, और पुनर्स्थापनात्मक या “दिल और दिमाग” जीतने वाला दृष्टिकोण आवश्यक है। जहाँ आतंकवाद से मुकाबले के लिए गतिरोध क़दम उठाते रहना आवश्यक है, वहीं पर केवल इस तरह के दृष्टिकोण पर भरोसे से प्रभावित लोगों के बीच शिकायत, आक्रामकता और बदले के चक्र जैसी समस्याओं को हल नहीं किया जा सकता, जिससे लोग अंततः कट्टरपंथी हो सकते हैं। अधिक सूक्ष्म आतंकवाद विरोधी रणनीतियों की आवश्यकता है जो कट्टर बनने के पीछे के कारणों को हल कर सके। इससे स्थायी और परिवर्तन लाने वाले समाधान अधिक मुमकिन हैं।
इस प्रकार, चरमपंथी प्रचार के खिलाफ “काउंटर नैरेटिव” (counter narrative) पैदा करने और प्रसार करने की आवश्यकता पर ज़ोर देना चाहिए। कट्टरता (radicalization) समाजीकरण की एक प्रक्रिया है, इसलिए इसका मुकाबला समाजीकरण के माध्यम से ही होना चाहिए । हालांकि कठोर, सामयिक, और अनजान उपदेशों को लागू करने के बजाय,लोगों की ग्रहणशीलता बढ़ाने के लिए सरकारों को काउंटर नैरेटिव का प्रचार करने के लिए विश्वसनीय, स्थानीय लोगों का इस्तेमाल करना चाहिए। काउंटर नैरेटिव अभियान और संदेश को विशिष्ट क्षेत्रों के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, भौगोलिक और जनसांख्यिकीय विषमताओं के अनुरूप होना होगा।
क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य से, यह आवश्यक है कि आतंकवाद से लड़ने के प्रयासों में राज्य खुफिया और सूचना साझाकरण, कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच सहयोग और “सर्वश्रेष्ठ तरीकों ” के माध्यम से एक दूसरे का सहयोग करें। इस चुनौती का मुकाबला करने में राज्यों को द्विपक्षीय बाधाओं से परे देखना होगा, जो अपनी पहुंच और एजेंडे में वैश्विक है। आतंकवाद प्रादेशिक सीमाओं का सम्मान नहीं करता; अपने हमले का शिकार बनाने में भेदभाव से काम नहीं लेता। दक्षिण एशियाई देशों के लिए अपनी आबादी को चरमपंथी विचारधारा के प्रभाव से दूर रखने के अवसर अब ख़त्म हो रहे हैं क्योंकि सैन्य असफलताओं की वजह से दाएश संचालन के विकेन्द्रीकृत नेटवर्क बनाना चाहता है।यह महत्वपूर्ण होगा कि सरकारें तत्काल और आक्रामक रूप से सभी उपलब्ध आतंकवाद–विरोधी अवसरों का लाभ उठाएं।
दाएश का उदय अचानक नहीं हुआ है , बल्कि बहु–राजनीतिक मंथन की एक निरंतर प्रक्रिया ने इस द्विभाषी शक्ति को जन्म दिया है। दक्षिण एशिया में एक नाजुक स्थिति सामने आ रही है, और चेतावनी की घंटी बज रही है। हालांकि अभी तक आतंकित होने का कोई कारण नहीं है, परंतु इनकार करना भी विवेकपूर्ण नहीं होगा।
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