
पहलगाम हमले के पश्चात् उत्पन्न भारत-पाकिस्तान संकट ने पुनः क्षेत्रीय स्थिरता की नाज़ुक संरचना को तनाव में डाल दिया है। भारत और पाकिस्तान दोनों की ओर से की गई कार्यवाहियों के परिणामस्वरूप सिंधु जल संधि को अभूतपूर्व रूप से स्थगित कर दिया गया है| इसके पश्चात्, इस्लामाबाद ने घोषणा की है कि वह “भारत के साथ सभी द्विपक्षीय समझौतों को स्थगित रखने के अधिकार का प्रयोग करेगा…जिसमें शिमला समझौता भी सम्मिलित है, परन्तु उस तक सीमित नहीं है।” इस वाक्यांश – “सहित, किन्तु सीमित नहीं” – ने पहले से ही नाज़ुक स्थिति में रणनीतिक अस्पष्टता की एक और परत पैदा की है। यह स्पष्ट नहीं है कि इन द्विपक्षीय समझौतों में परमाणु विश्वास निर्माण उपाय (एनसीबीएम) सम्मिलित हैं, या ये समझौते जारी रहेंगे। यह अस्पष्टता न तो आकस्मिक है और न ही अप्रासंगिक। बढ़ते तनाव के इस दौर में, स्पष्टता में जानबूझकर की गई कमी भविष्य में आंकलन के लिए गुंजाइश छोड़ती है, और साथ ही, इस अनिश्चितता को पैदा करती है कि दक्षिण एशिया में सामरिक स्थिरता को आधार प्रदान करने वाले कुछ प्रभावशाली तंत्र क्रियाशील हैं या नहीं।
एनसीबीएमएस महत्त्वपूर्ण क्यों हैं
ऐतिहासिक रूप से, भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु विश्वास निर्माण उपाय कई बार कठिन समय से गुज़रे हैं| परमाणु सुविधाओं की सूचियों के वार्षिक आदान-प्रदान और बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र परीक्षणों की पूर्व सूचना जैसी व्यवस्थाएं पिछले संकटों के दौरान अस्तित्व में रहे, जैसे कि, 1999 में कारगिल और 2001-2002 के गतिरोध एवं 2019 में पुलवामा-बालाकोट संकट के समय| इस निरन्तरता में, दोनों देश इस बात की पुष्टि करते हुए नज़र आए हैं कि सीमित और बड़े पैमाने पर प्रतीकात्मक जोखिम न्यूनीकरण उपाय भी मूल्यवान हैं। शांति के समय में ये परमाणु विश्वास निर्माण उपाय नियमित अथवा प्रदर्शनकारी लग सकते हैं, लेकिन इनकी वास्तविक उपयोगिता बढ़े हुए तनाव के दौरान महसूस होती है। इनका निलंबन केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि इनके निलंबन से अधिक अनिश्चिता की ओर बदलाव इंगित होता है|
[…] हॉटलाइन एक अग्निशामक यंत्र की तरह है: इसकी उपलब्धता का महत्त्व आपातकालीन स्थिति में, न कि इसके दैनिक उपयोग में| इसे निलंबित करने से पिछले संकटों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा होगा, परन्तु, अगर इसे अभी निलंबित कर दिया जाता है, तो यह संभावित रूप से एक प्रभावशाली संस्थागत ढांचे को ऐसे समय में समाप्त कर देगा जब इसकी आवश्यकता में विस्तार करने की ज़रुरत है।
यदि विद्यमान परमाणु विश्वास निर्माण उपायों को बिना औपचारिक स्वीकृति के स्थगित कर दिया जाता है, तो इसके परिणाम गंभीर होंगे। इनमें से सबसे प्रभावशाली उपाय वे हैं जो अनुपयुक्त व्याख्या को रोकने, वास्तविक समय पर संचार की अनुमति देने और आकस्मिक वृद्धि के जोखिम को कम करने के लिए उद्यत किए गए हैं और ये वही उपाय हैं जो वर्तमान राजनयिक गतिरोध के बीच क्षरण या उपेक्षा के कारण उनके अस्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं| उदाहरण के लिए, परमाणु ग़ैर-आक्रमण समझौते को निलंबित करने से रणनीतिक अस्पष्टता पुनः उत्पन्न हो जाएगी, जहाँ स्पष्टता, चाहे न्यूनतम क्यों न रही हो, रणनीतिक स्थिरता के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र पूर्व-सूचना समझौता, परीक्षण को हमला समझने की भूल के जोखिम को कम करने में प्रमुख भूमिका निभाता है, विशेषकर ऐसे क्षेत्र में जहाँ रणनीतिक चेतावनी के लिए समय न्यूनतम है, तथा शीघ्र निर्णय लेने से विनाश हो सकता है। इस समझौते को समाप्त करने से अनुपयुक्त व्याख्या की संभावना में विस्तार होगा, जिससे यह सिद्ध होता है ग़लत अनुमान लगाने की संभावना अब बहुत बढ़ गई है| ऐसा इसलिए भी है क्योंकि 2022 में ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र के मिसफायर की घटना की पृष्ठभूमि में ऐसी ग़लतफ़हमी उत्पन्न हो सकती है| वह घटना शांति के समय हुई थी और संकट में परिवर्तित नहीं हुई थी, परन्तु पूर्ण संकट के संदर्भ में इसी प्रकार की घटना एक अलग प्रकार की प्रतिक्रिया को आमंत्रित करती है|
संकटकालीन हॉटलाइन वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के बीच ग़लतफ़हमी को दूर करने के लिए एक प्रत्यक्ष चैनल प्रदान करती है, विशेषतः ऐसे समय में जब बैक चैनल कूटनीति और तीसरे पक्ष की मध्यस्थता इतनी तीव्र या व्यवहार्य नहीं हो सकती कि तनाव अभिवर्द्धी रोक सके। इसके महत्त्व के बावजूद, भारत और पाकिस्तान के बीच वास्तविक संकट में इस हॉटलाइन का कभी भी उपयोग नहीं किया गया है। इस निरंतर कम उपयोग से दोनों पक्षों की राजनीतिक इच्छाशक्ति और विद्यमान साधनों का उपयोग करने की संस्थागत तत्परता पर प्रश्न चिन्ह लगा हैं|
चूंकि एनसीबीएमएस हॉटलाइन का कभी उपयोग नहीं किया गया है, इसलिए इसके निलंबन के दो संभावित प्रभाव हो सकते हैं। सबसे पहले, व्यावहारिक प्रभाव पहली नज़र में बहुत न्यूनतम लग सकता है – यदि कोई तंत्र कई संकटों के दौरान निष्क्रिय रहा है, तो इसकी अनुपस्थिति से राज्यों के व्यवहार में तुरंत परिवर्तन नहीं आ सकता है| तथापि, यह संचार हेतु संस्थागत मार्गों के महत्त्व को घटाकर आंकता है, विशेष रूप से परमाणु क्षेत्र में। हॉटलाइन जैसी व्यवस्था दैनिक प्रयोग के लिए ईजाद नहीं की गई है| वे असाधारण परिस्थितियों के लिए विद्यमान हैं, जब ग़लत आंकलन, भ्रम या व्याख्या के कारण अनपेक्षित वृद्धि की स्थिति उत्पन्न हो सकती है| इस अर्थ में, हॉटलाइन एक अग्निशामक यंत्र की तरह है: इसकी उपलब्धता का महत्त्व आपातकालीन स्थिति में, न कि इसके दैनिक उपयोग में| इसे निलंबित करने से पिछले संकटों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा होगा, परन्तु, अगर इसे अभी निलंबित कर दिया जाता है, तो यह संभावित रूप से एक प्रभावशाली संस्थागत ढांचे को ऐसे समय में समाप्त कर देगा जब इसकी आवश्यकता में विस्तार करने की ज़रुरत है।
दूसरा, अप्रयुक्त या प्रतीकात्मक समझौतों को भी निलंबित करना द्विपक्षीय विश्वास में गहरी गिरावट तथा परमाणु जोखिम प्रबंधन के सबसे बुनियादी चैनलों के क्षरण को दर्शाता है। पाकिस्तान और भारत ने गत 18 वर्षों में एक भी नए परमाणु विश्वास निर्माण उपाय पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं – और एक दशक से अधिक समय से कोई संरचित परमाणु वार्ता नहीं हुई है – यह दर्शाता है कि न्यूनतम सहयोग के लिए भी कितनी कम राजनीतिक पूंजी विद्यमान है। इस संदर्भ में, हॉटलाइन समझौते का औपचारिक निलंबन न केवल इसकी निष्क्रियता की पुष्टि करता है; बल्कि यह अनुपस्थिति को संस्थागत बना देता है, जिससे स्थिति में कठोरता आएगी, और यह प्रतीत होता है कि दोनों देश बिना किसी सुरक्षा प्रावधानों के वर्तमान संकट से गुज़र रहे हैं।

उपमहाद्वीप में बेपर्दा होती रणनीतिक स्थिरता
भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु सीबीएम की व्यवस्था वर्तमान समय में और भी स्पष्ट और चिंताजनक हो जाती हैं। यहाँ सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौतियों में से एक है राजनीतिक इच्छाशक्ति का क्षरण। यदि भारत और पाकिस्तान परमाणु सीबीएमएस बहाली को मूल्यवान विश्वास-निर्माण तंत्र के रूप में नहीं देखते, तो इनका क्रिन्यान्वयन असंगत और अंततः अप्रासंगिक हो जाएगा। इससे द्विपक्षीय दायित्वों से धीरे-धीरे अलग होने का मार्ग खुलता है और समझौतों की प्रत्यावर्तनीयता सामान्य हो जाती है। भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करना तथा पाकिस्तान द्वारा यह घोषणा करना कि वह शिमला समझौते जैसे द्विपक्षीय समझौतों को स्थगित करने का अधिकार सुरक्षित रखता है, इस परिवर्तन को दर्शाता है। हालाँकि, ये संपूर्ण रूप से निकासी के बजाय सशर्त रुख प्रदर्शित करता है – ये घटनाक्रम चिंताजनक हैं क्योंकि इन दीर्घकालिक ढाँचों को न्यूनतम घरेलू प्रतिक्रिया या अंतर्राष्ट्रीय लागत के बिना, आसानी से निलंबित किया जा सकता है|
वर्तमान भारत-पाकिस्तान संकट इस बात की परीक्षा है कि दोनों देशों के मध्य में संयम का सबसे पतला धागा टिक सकता है या नहीं। परमाणु सीबीएमएस की स्थिति के बारे में अस्पष्टता केवल नौकरशाही की अनदेखी नहीं है; बल्कि इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या दोनों राज्य अभी भी जोखिम कम करने के पक्ष में निवेशित हैं या नहीं -विशेष कर, तब, जब दोनों ही देश अपने परमाणु शस्त्रागारों का गुणात्मक और मात्रात्मक – दोनों ही दृष्टियों से आधुनिकीकरण कर रहे हैं। इस तनाव के मध्य में, पाकिस्तान द्वारा 24 और 25 अप्रैल के लिए विमान कर्मचारियों को सूचना जारी कर अरब सागर में आसन्न बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र परीक्षण का संकेत देना, बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र परीक्षणों की पूर्व सूचना पर समझौते के प्रक्रियात्मक पालन का संकेत है। इस लेखन के समय तक परीक्षण आयोजित नहीं किया गया था। फिर भी, अधिसूचना से पता चलता है कि जोखिम कम करने के मानदंड एक उद्देश्य की पूर्ति करते हैं। वे युद्ध पर अल्प-विराम तो नहीं लगा सकते हैं, परंतु वे ग़लत धारणाओं को सुधारने और बढ़ते तनाव को प्रबंधित करने हेतु मौक़ा प्रदान कर सकते हैं। उनकी अनुपस्थिति उक्त गुंजाइश को समाप्त कर देती है|
वर्तमान भारत-पाकिस्तान संकट इस बात की परीक्षा है कि दोनों देशों के मध्य में संयम का सबसे पतला धागा टिक सकता है या नहीं। […] ऐसे क्षेत्र में जहाँ संकट जल्दी उभरते है और उनकी अभिवर्द्धी की समयसीमा संकुचित होती है, परमाणु विश्वास निर्माण उपाय के कार्यान्वयन के रूप में न्यूनतम भागीदारी की अनुपस्थिति विनाशकारी साबित हो सकती है।
चूंकि, भारत और पाकिस्तान दोनों ही संभावित रूप से लंबे समय से शत्रुतापूर्ण स्थिति का सामना कर रहे हैं, इसलिए परमाणु सीबीएमएस को औपचारिक या अनौपचारिक रूप से समाप्त होने के परिणाम गंभीर हो सकते हैं। यहाँ, ख़तरे केवल सैद्धांतिक नहीं हैं। ऐसे क्षेत्र में जहाँ संकट जल्दी उभरते है और उनकी अभिवर्द्धी की समयसीमा संकुचित होती है, परमाणु विश्वास निर्माण उपाय के कार्यान्वयन के रूप में न्यूनतम भागीदारी की अनुपस्थिति विनाशकारी साबित हो सकती है। वर्तमान में, ऐसा प्रतीत होता है कि दक्षिण एशियाई स्थिरता का भविष्य बड़े समझौतों या कूटनीति पर नहीं, परंतु इस बात पर निर्भर करता है कि बुनियादी सुरक्षा-व्यवस्था के प्रावधानों को निस्तब्ध रूप से विलुप्त होने दिया जाएगा या नहीं|
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This article is a translation. Click here to read the original in English.
Image 1: India-Pakistan Flags via Wikimedia Commons
Image 2: Pakistan Inter Services Public Relations via Anadolu Agency/Getty Images