दुनिया भर के नेते एक अमेरिकी राष्ट्रपति के तरीकों को अपना रहे हैं, पहले ऐसा नहीं होता था। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिकी विदेश नीति के बारे में लंबे समय से चली आ रही धारणाओं को फिर से जांचने के लिए दोस्त और दुश्मन दोनों देशों को मजबूर किया है। ट्रम्प ने अपने कई पूर्ववर्ती प्रतिबद्धताओं को खत्म कर दिया है, जैसे पेरिस जलवायु समझौता और ट्रांस-पसिफ़िक पार्टनरशिप (टीपीपी) से समर्थन वापस ले लिया है, अफ़गानिस्तान में अमेरिकी सेना को चालक के अस्थान पर रखा है, और अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ़ स्टेट के विदेशी राजनयिक मामलों के लिए राजनीतिक नियुक्तियों की संख्या को काफ़ी कम किया है । भारत-अमेरिका के करीबी संबंध के लिए वाशिंगटन के द्विदलीय समर्थन के बावजूद, अमेरिकी राष्ट्रपति के इरादों की अनिश्चितता ने भारतीय सामरिक समुदाय में कुछ असहजता पैदा की है। हालांकि, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया अमेरिका की यात्रा और राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ उनकी पहली मुलाक़ात इस बात की पुष्टि करती है कि भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक समझ अभी भी मज़बूत है। जब तक दोनों पक्ष भारत-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक अनुरूपता को प्राथमिकता देते हैं, समान चिंता के क्षेत्रों पर पारदर्शी और सुसंगत संचार सुनिश्चित करते हैं, और संबंधों के पारस्परिक रूप से लाभकारी तत्वों को मज़बूत करने पर विशेष ध्यान देते हैं, विशेष रूप से रक्षा सहयोग करते हैं, तब तक साझेदारी किसी भी ख़तरे में नहीं हो सकती हैं।
अमेरिकी सामरिक कमी का भय
यह चिंताएं ज़रूर हैं कि क्या ट्रम्प की “अमेरिका फ़र्स्ट” की नीति का मतलब है कि अमेरिका का संपूर्ण रणनीतिक छंटनी होगा? हालांकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि इस बयानबाज़ी का कोई स्पष्ट विदेशी नीति आयात है या नहीं, या फिर यह बयानबाज़ी घरेलू दर्शकों था जो अपने नेता को अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं पर राष्ट्रीयता को प्राथमिकता देते हुए सुनना चाहते थे। जो बिकुल निश्चित है वह यह है कि नई दिल्ली को एक ऐसे वॉशिंगटन का सामना करना है जो एक ऐसे राष्ट्रपति के नेतृत्व में है जिसकी रूचि केवल इस बात में है कि कैसे अमेरिका अपने विदेश नीति से तुरंत और तत्कालीन लाभ उठा सकता है। इस मायने में, भारत और अमेरिका के बीच दोस्ती की शर्तों में कुछ बदलाव हो सकता है। जैसा कि एक भारतीय सामरिक विश्लेषक ने टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत को अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए अधिक लचीला और व्यावहारिक दृष्टिकोण विकसित करना होगा।
भारत को अमेरिकी राष्ट्रपति से व्यवहार करना सीखना होगा जिनकी सहिष्णुता अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के लिए अगर न्यूनतम न सही अस्थिर ज़रूर लगती है । ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति ट्रम्प इस बात पर ज़ोर दे रहे हों कि अमेरिका को अपने नेतृत्व की भूमिका के लिए अतिभारित कर दिया गया है जबकि अधिकांश अन्य देश, उनके अनुसार, अमेरिका द्वारा संचालित अंतरराष्ट्रीय प्रणाली से लाभ उठा रहे हैं और इस प्रणाली के मुफ्त सवार (free rider) हैं। पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने के बाद या अपने वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में नाकाम रहने के लिए नाटो सहयोगियों को डाँटने के बाद दिए गए उनके भाषण में इस तरह का एक विचार काफ़ी स्पष्ट था। इसके विपरीत, वॉल स्ट्रीट जर्नल के लिए अपने लेख में मोदी ने लिखा था कि अमेरिका के साथ भारत की मित्रता का नया आयाम उनकी “वैश्विक उपकार के लिए साझेदारी” है। विश्व स्तर पर यह साझेदारी कैसे विकसित होगी, आने वाले समय में नेताओं को इसका पता लगाना होगा।
अभिबिन्दुता के क्षेत्र और अगला क़दम
तो, भारत-अमेरिका सामरिक भागीदारी को कैसे विकसित और मज़बूत किया जा सकता है? दोनों नेताओं के लिए तार्किक क़दम यह होगा कि वे भारत-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक समन्वय बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करें। आक्रामक चीन के उदय का सामना करने का भू-राजनीतिक तर्क दोनों देशों को एक साथ लाया था। यह रणनीतिक चुनौती अभी तक बाकी है, और यही वाशिंगटन और नई दिल्ली में समन्वित रणनीतिक सोच की ज़रुरत और द्विपक्षीय संबंधों के सामयिक बाधाओं को दूर करने में धैर्य को अनिवार्य बनाते हैं। इस मामले में विदेशी नीति के लिए क्या ट्रम्प वाले दृष्टिकोण के किसी समस्या का संकेत है ? शायद यही सबसे महत्वपूर्ण चुनौती है।
मोदी के दौरे के दौरान दोनों नेताओं द्वारा दिए गए संयुक्त वक्तव्य में सामान्य रूप से पूरे भारत-प्रशांत क्षेत्र में नौपरिवहन, ओवर फ्लाइट, और व्यापार की स्वतंत्रता का सम्मान करने के महत्व पर ज़ोर दिया। यह प्रधान मंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के बीच “एशिया-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र के लिए 2015 के अमेरिका-भारत संयुक्त रणनीतिक दृष्टि” जो विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर में इस तर के अभ्यास के महत्व की तरफ इशारा करता है, से कहीं अधिक अस्पष्ट था। एक तरफ, यह रिपोर्ट सामने आई है कि ट्रम्प प्रशासन दक्षिण और मध्य एशिया को जोड़ने वाली नई सिल्क रोड की पहल को दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया को जोड़ने वाला इंडो-पैसिफिक आर्थिक कॉरिडोर को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है। दूसरी तरफ, अपने एक बेल्ट एक रोड पहल के साथ जिसको भारत ने साफ़ तौर पर खारिज कर दिया है दूसरे देशों को जीतने के लिए चीन की कूटनीति दिन-रात काम कर रही है। इस संदर्भ में, वाशिंगटन और नई दिल्ली को अपनी स्वाधीनता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की आवश्यकता के बारे में सामान्य संदर्भों के बजाय अपनी रणनीतियों को साझा करना चाहिए और रणनीतिक चिंताओं के बारे में पारदर्शी रूप से संवाद करना चाहिए।
भारत और अमेरिका के बीच तेजी से बढ़ती रक्षा सहयोग, जो मिल-टू-मिल अभ्यासों की अन्तरसंक्रियता और बढ़ती रक्षा व्यापार से स्पष्ट है, संगम का एक और बढ़ता क्षेत्र है। भारत और अमेरिका को भारत की अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी की ज़रूरत और अमेरिका की बाज़ार की ज़रूरत के बीच सही संतुलन बनाना होगा। भारत में लॉकहीड मार्टिन और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स के बीच एक सहयोग के रूप में भारत में एफ 16 प्लांट खोलने की दिशा में प्रगति और भारत में निहत्थे समुद्री निगरानी करने वाली ड्रोनों की बिक्री की अनुमति इस क्षेत्र में एक उद्देश्य की सतत भावना को दर्शाती है। जबकि रक्षा क्षेत्र में पारस्परिक रूप से लाभकारी लेनदेन उत्साहजनक हैं, और इसको अति महत्वपूर्ण सामरिक अभिसरण द्वारा निर्देशित होना होगा। इस तरह की दृष्टि में किसी भी तरह की कमी से दोनों पक्षों पर नौकरशाही बाधाओं का सामना करने के लिए रक्षा सहयोग की क्षमता पर असर पड़ेगा।
निष्कर्ष
भारत और अमेरिका ने “इतिहास के असमंजस” को दूर करने और भारत-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए सामरिक साझेदारी की स्थापना के लिए एक लंबा रास्ता तय किया है। यह दोनों देशों के लिए सामरिक मूर्खता होगी अगर वे इस तरह की समझदारी को ख़त्म करते हैं। “अमेरिका फ़र्स्ट ” जैसे राजनीतिक बयानबाज़ी का मतलब स्वयं-केंद्रित और आंतरिक सोच होता है और इससे अमेरिकी वैश्विक नेतृत्व के बारे में पूर्वधारित धारणाओं को नुकसान पहुँचता है। इसी तरह , व्यक्तिगत और संस्थागत बातचीत के माध्यम से नई दिल्ली को वाशिंगटन को समझाना होगा कि “अमेरिका फ़र्स्ट ” और “मैक अमेरिका ग्रेट अगेन” का मतलब वैश्विक साझेदारी को छोड़ना नहीं है । जैसा कि प्रधान मंत्री मोदी ने कहा कि “मैं इस के बारे में बहुत स्पष्ट हूँ कि एक मज़बूत, ख़ुशहाल, और सफल अमेरिका भारत के हित में है। इसी तरह, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का विकास और इसकी बढ़ती भूमिका अमरीका के हित में है।”
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Image 1: White House Office of the Press Secretary, U.S. Government